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श्रम शक्ति में महिला भागीदारी बढ़े

बढ़ती महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर निरंतर सरकारी हस्तक्षेप का परिणाम है. स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं में वृद्धि के साथ महिलाओं के लिए काम के अवसर बढ़ रहे हैं.

डॉ बरना गांगुली ( आर्थिक मामलों की जानकार)

मनोज नारायण ( आर्थिक मामलों की जानकार)

हर साल आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियों को प्रतिबिंबित करने के साथ-साथ लैंगिक समानता के लिए चल रही लड़ाई को भी उजागर किया जाता है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के लिए इस वर्ष का विषय ‘महिलाओं में निवेश: प्रगति में तेजी लाना’ है. प्रगति के बावजूद महिलाओं को अर्थव्यवस्था में समान भागीदारी हासिल करने में बड़ी बाधाओं का सामना करना पड़ता है. महिलाओं की क्षमता का निर्माण करने और सीखने, कमाने व नेतृत्व क्षमता को मजबूत करने के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. जीवन के सभी पहलुओं में महिलाओं और लड़कियों के अधिकार सुनिश्चित करना समृद्ध और न्यायपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं को सुरक्षित करने का एकमात्र तरीका है. जी-20 शिखर सम्मेलन की घोषणा में ‘महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास’ और ‘लैंगिक-समावेशी जलवायु कार्रवाई’ पर ध्यान केंद्रित किया गया है. यह भी पुष्टि की गयी है कि लैंगिक समानता मौलिक महत्व की है. जी-20 देश लैंगिक वेतन अंतर और डिजिटल विभाजन को पाटने पर भी ध्यान देंगे तथा महिलाओं के लिए अच्छे काम और गुणवत्ता वाली नौकरियों तक समान पहुंच सुनिश्चित करेंगे. इस पृष्ठभूमि में महिलाओं की भागीदारी पर चर्चा एक प्रासंगिक बिंदु है.


विकासशील देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी आर्थिक विकास, बढ़ती शैक्षिक उपलब्धि, गिरती प्रजनन दर और सामाजिक मानदंडों सहित विभिन्न प्रकार के सामाजिक-आर्थिक कारकों से प्रेरित है. भारत में महिला रोजगार का महिला सशक्तीकरण से आंतरिक संबंध है. लैंगिक असमानताओं को कम किये बिना कोई भी विकास लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता. वर्ष 2011-12 और 2022-23 के बीच बिहार में महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर के बारे में देखा गया है कि 2011-12 में नौ प्रतिशत से 2022-23 में 23.9 प्रतिशत की तेज वृद्धि हुई है. एनएसओ और नवीनतम पीएलएफएस रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण और शहरी बिहार में इसमें क्रमशः 15.7 और 5.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई. वर्ष 2011-12 में 78.5 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में केवल नौ प्रतिशत महिलाएं श्रम शक्ति में भाग ले रही थीं, लेकिन एक दशक बाद 2022-23 में 77.6 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले 23.9 प्रतिशत महिलाएं श्रम शक्ति में भाग ले रही हैं. नीति आयोग के अनुसार, राज्य में महिला और पुरुष की औसत वेतन आय का अनुपात भी 2018 और 2020-21 के दौरान 0.65 से बढ़कर 0.75 हो गया है. इस प्रकार राज्य में लिंग अंतर धीरे-धीरे कम हो रहा है.


विश्व बैंक की रिपोर्ट ‘रीशेपिंग नॉर्म्स: ए न्यू वे फॉरवर्ड’ से पता चलता है कि आर्थिक विकास और आय के बढ़ते स्तर कई आयामों में अत्यधिक उच्च लिंग अंतर को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. कई कारण कार्य बल में महिलाओं की भागीदारी को निर्धारित करते हैं. आईएलओ का अनुमान है कि महिलाओं के लिए सृजित हर पांच नौकरियों में से चार अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में हैं, जबकि पुरुषों के लिए यह अनुपात हर तीन नौकरियों में से दो का है. बिहार में, पीएलएफएस 2022-23 के अनुसार, कुल महिलाओं में से 70.9 प्रतिशत स्व-रोजगार में हैं, 22.5 प्रतिशत आकस्मिक श्रमिक हैं और 6.7 प्रतिशत नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारी हैं. साल 2022-23 में लगभग 76.5 प्रतिशत महिलाएं कृषि कार्य में लगी हुई हैं, जबकि पुरुषों के लिए यह हिस्सेदारी 41.1 प्रतिशत है. केवल 0.1 प्रतिशत महिलाएं पेशेवर और तकनीकी गतिविधियों, 0.3 प्रतिशत प्रशासन, 4.4 प्रतिशत शिक्षा और 1.4 प्रतिशत स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं में हैं.


यह देखा गया है कि देखभाल अर्थव्यवस्था का नेतृत्व महिलाएं करती हैं. आम तौर पर सामान्य चिकित्सक, दंत चिकित्सा और आयुष श्रेणियों में पुरुषों का वर्चस्व है, जबकि नर्सों की श्रेणी में महिलाओं का दबदबा रहता है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल के अनुसार, 2013 में बिहार में केवल 358 महिला स्वास्थ्य सहायक थीं, जो 2021-22 में बढ़कर 13,425 हो गयी. उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण के अनुसार, उच्च शिक्षा में महिला शिक्षकों की संख्या 2012-13 में केवल 17.5 प्रतिशत थी, जो 2022-23 में बढ़कर 23.5 प्रतिशत हो गयी. साल 2017-18 और 2020-21 के दौरान बिहार में तृतीयक शिक्षा शिक्षक या प्रोफेसर के बीच महिलाओं का अनुपात 19.94 से बढ़कर 21.36 प्रतिशत हो गया. वर्तमान में 43.6 प्रतिशत महिलाएं बिना किसी सामाजिक सुरक्षा लाभ के काम कर रही हैं, 46.3 प्रतिशत सवैतनिक छुट्टी के लिए पात्र नहीं हैं और 34.3 प्रतिशत के पास कोई लिखित नौकरी अनुबंध नहीं है. स्पष्ट है कि विभिन्न चुनौतियों के बावजूद बिहार में पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं की कार्य भागीदारी दर में वृद्धि हुई है.


बढ़ती महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर निरंतर सरकारी हस्तक्षेप का परिणाम है. राज्य सरकार की पहल, जैसे सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण, प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण आदि, ने महिला भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि में योगदान दिया है. स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं में वृद्धि के साथ महिलाओं के लिए काम के अवसर बढ़ रहे हैं. सरकार ने चार श्रम संहिताओं को सरल बनाकर अधिसूचित किया है- वेतन संहिता 2019, औद्योगिक संबंध संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी स्थिति संहिता 2020. श्रम संहिताएं, अन्य बातों के अलावा, प्रवर्तन में पारदर्शिता और जवाबदेही लायेंगी और काम के माहौल को महिलाओं के लिए उपयुक्त बनायेंगी. महिला श्रमिकों के लिए समान अवसर और अनुकूल कार्य वातावरण के लिए श्रम कानूनों में कई सुरक्षात्मक प्रावधान शामिल किये गये हैं, जैसे सवैतनिक मातृत्व अवकाश को 12 से बढ़ाकर 26 सप्ताह करना, माताओं के लिए 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश, तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लेने के साथ-साथ कमीशनिंग माताओं के लिए, प्रतिष्ठानों में अनिवार्य क्रेच सुविधा का प्रावधान, पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ रात की पाली में महिला श्रमिकों को अनुमति देना आदि. इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हम सभी को चुनौतियों का सामना करने और बेहतर भविष्य बनाने के लिए एक साथ आना चाहिए, जिससे समावेशी समाज का निर्माण हो सके.
(ये लेखकद्वय के निजी विचार हैं.)

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