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भोलेनाथ की नगरी काशी में किसको मिलेगा जनता का आशीर्वाद

मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ रहे हैं

बाबा भोलेनाथ की नगरी और भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में काशी की अलग ही पहचान है. लेकिन राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो गंगा के किनारी बसी काशी बीते एक दशक से अलग ही रंग में है. पीएम नरेंद्र मोदी के तीसरी बार वाराणसी से चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ ही ये लोकसभा सीट एक बार फिर चर्चा में आ गयी है. वैसे तो वाराणसी लोकसभा सीट से कई बड़े नेता चुनाव जीत चुके हैं. इनमें पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र अनिल शास्त्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी का नाम प्रमुख है, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी ने इस लोकसभा सीट को एक अलग ही पहचान दे दी है.

यूपी की वीवीआईपी सीट-2

वाराणसी लोकसभा सीट का इतिहास देखें, तो यहां सात बार कांग्रेस, छह बार भाजपा काबिज रही है. एक बार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और एक बार जनता दल ने भी यहां जीत हासिल की है. 1957 और 1962 में कांग्रेस के रघुनाथ सिंह ने जीत हासिल की. 1967 में सीएमपी के सत्यनारायण सिंह, 1971 में कांग्रेस के राजाराम शास्त्री ने जीत हासिल की. 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर यहां से सांसद बने. इसके बाद 1980 में कांग्रेस वापस यहां काबिज हो गई और कमलापति त्रिपाठी सांसद बने. 1989 में अनिल शास्त्री ने जनता दल के टिकट पर दिल्ली में वाराणसी (तब बनारस) का प्रतिनिधित्व किया. 1991 में काशी की राजनीति में भाजपा की एंट्री हुई. श्रीश चंद्र दीक्षित यहां से चुनाव जीते. इसके बाद 1996, 1998, 1999 में भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल ने लगातार जीत हासिल की. 2004 में यहां से राजेश मिश्रा कांग्रेस को वापस फाइट में लाये. लेकिन 2009 में बनारस से भाजपा ने अपने कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी को मैदान में उतारा. भाजपा के इस दांव का जवाब किसी के पास नहीं था.

इलाहाबाद से बनारस चुनाव लड़ने आये मुरली मनोहर जोशी ने सपा के मुख्तार अंसारी को यहां से पटकनी दी. इसके बाद काशी से भाजपा की जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ है, उसे पीएम नरेंद्र मोदी लगातार रिकार्ड पर रिकार्ड बनाकर कायम रखे हुए हैं. 2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार काशी आये, तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि उन्हें यहां की जनता जिताकर प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचाएगी. लेकिन सिर्फ 2014 ही नहीं 2019 में भी वो इस सीट से संसद पहुंचे. अब 2024 में एक बार फिर काशी से संसद पहुंचने के लिए मैदान में हैं.

दुनिया भर की नजर इस हाई प्रोफाइल सीट पर

यूपी की 80 लोकसभा सीटों में काशी वीवीआइपी सीट के रूप में अपना स्थान दर्ज करा चुकी है. जब पहली बार पीएम नरेंद्र मोदी यहां से चुनाव मैदान में उतरे, तो आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल उन्हें चुनौती देने आ गये. लेकिन उन्हें 3.37 लाख वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. 2019 में पीएम मोदी के सामने कांग्रेस से अजय राय और सपा-बसपा गठबंधन से पूर्व बीएसएफ कर्मी तेज बहादुर सिंह चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन पीएम मोदी की जीत को दोनों ही चुनौती नहीं दे पाए. काशी की जनता ने दोबारा पीएम मोदी के सिर पर जीत का ताज पहना दिया. 2024 में एक बार फिर वह जनता के बीच अपने कामों को लेकर हैं. अभी तक विपक्ष ने अपने प्रत्याशी की घोषणा यहां से नहीं की है

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