मनोज सिंह, रांची : झारखंड में द प्रोविजन ऑफ द पंचायत (एक्सटेंशन टू शिडूअल एरिया) एक्ट-1996 (पेसा) लागू नहीं हो पाया है. देश के सात आदिवासी बहुल राज्यों ने इसे लागू कर दिया है. इसमें ग्राम सभा को अधिकार दिये जाने का प्रावधान है. झारखंड में भी पेसा का ड्राफ्ट फाइनल हो गया है. पहली ड्राफ्ट के बाद पंचायती राज विभाग ने आपत्ति मांगी थी. इसमें आयी आपत्तियों को विधि सम्मत शामिल कर सहमति के लिए राज्य सरकार के विधि विभाग के पास भेज दिया गया है.
विधि विभाग में यह संचिका अक्तूबर में भेजी गयी है. विधि विभाग की सहमति के बाद इसको लागू करने की दिशा में आगे की प्रक्रिया की जायेगी. राज्य की साढ़े चार हजार पंचायत में 2066 पंचायत पेसा के अधीन आती हैं. केंद्र सरकार 13 सौ करोड़ का अनुदान देता है. राज्य के इन पंचायतों में लगभग 600 करोड़ का अनुदान अगले वित्तीय वर्ष में रूक सकता है. इस वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार ने कुछ शर्तों के साथ अनुदान दे दिया था. इधर वर्तमान ड्राफ्ट को लेकर कई संगठनों की अलग-अलग राय है. कुछ संगठन इसका विरोध तो कुछ समर्थन कर रहे हैं. झारखंड में भारत सरकार ने पेसा एक्ट को लेकर इसी सप्ताह एक क्षेत्रीय कार्यशाला का आयोजन किया था. इसमें झारखंड सरकार से जल्द से जल्द इसको लागू का आग्रह किया गया है. इसके बाद यह मुद्दा एक बार फिर जोर पकड़ने लगा है.
सुप्रीम कोर्ट तक गया है मामला
झारखंड में पेसा कानून लागू करने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया है. झारखंड हाइकोर्ट भी इस मामले की सुनवाई कर चुका है. हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में ही झारखंड पंचायती राज विभाग ने इसका ड्राफ्ट फाइनल किया है. ड्राफ्ट के कानून बनने से पहले यह मामला जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) में लाया जा चुका है. टीएसी ने 16 नवंबर 2023 को इस पर विचार किया था. इसके बाद इस मुद्दे पर और चर्चा की जरूरत बतायी है. इसके ड्राफ्ट पर विधायक शिल्पी नेहा तिर्की ने सवाल उठाया था. श्रीमती तिर्की ने अपने सुझाव टीएसी के अध्यक्ष तत्कालीन अध्यक्ष व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सौंप दिये थे. विधायक ने अपने सुझाव से संबंधित विभाग को भी अवगत करया है.
कई बिंदुओं पर आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने विरोध जताया
पंचायत राज विभाग को आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने कई मुद्दों पर विरोध जताया था. इस मामले में विभागीय पदाधिकारियों के साथ मंच की वार्ता भी हुई थी. इसके बाद विभाग ने उठाये गये एक-एक बिंदू पर जवाब दिया था. विभागीय सचिव (तत्कालीन) डॉ राजीव अरुण एक्का ने इस पर नवंबर 2023 में एक तार्किक आदेश भी पारित किया था. उन्होंने आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के दामोदर सिंकू द्वारा उठाये गये 20 आपत्तियों को खारिज कर दिया था.
निशा उरांव को हटाये
आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के राष्ट्रीय संयोजक विक्टर माल्टो का कहना है कि भारत सरकार के केंद्रीय पंचायत राज मंत्रालय ने राजधानी में दो दिनी कार्यशाला का आयोजन किया था. केंद्रीय पंचायत राज मंत्रालय पेसा टाइटल को गलत ढंग से प्रस्तुत कर रहा है. कार्यशाला में वैसे प्रावधानों की जानकारी दी गयी, जो अनुसूचित क्षेत्र में लागू नहीं है. केंद्रीय सचिव ने गलत बयानी की है. झारखंड में ग्राम सभा तीन तरह के काम करता है. अनुसूचित क्षेत्र की ग्राम सभा अलग तरह से काम करती है. इनको सात शक्तियां प्राप्त है. इनका फंड पर नियंत्रण है. राज्य सरकार ना ही अदालत की बात मान रही है. ना ही हम लोगों की बात मान रही है. इसमें पंचायती राज निदेशक निशा उरांव का हाथ है. एक आइएएस के स्थान पर राजस्व सेवा के अधिकारी को पदस्थापित कर दिया है. उनको हटाया जाना चाहिए.
क्या कहा निशा उरांव ने
वहीं पंचायती राज निदेशक निशा उरांव ने कहा कि पेसा एक्ट अदालत और सरकार के गाइड लाइन के अनुसार बना है. अभी यह मामला विधि विभाग में है. अगर इसमें कोई संशोधन संभव है, तो किया जा सकता है. इसके निर्माण में नियमों का पूरा ख्याल रखा गया है.