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बंद होने के कगार पर पहुंचा HEC, न है कार्यशील पूंजी, न ही कर्मियों के भुगतान के लिए पैसे, जानें बदहाली की वजह

एचइसी के अधिकारी बताते हैं कि एचइसी के एफएफपी प्लांट में 30 टन के दो फर्नेस, 10 टन के 01 फर्नेस, 05 टन के 01 फर्नेस के अलावा एचएमबीपी व एचएमटीपी में हीट ट्रीटमेंट प्लांट बंद पड़े हैं.

रांची : हेवी इंजीनियरिंग काॅरपोरेशन लिमिटेड (एचइसी) बंदी के कगार पर पहुंच गया है. कंपनी गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है. कंपनी के पास न कार्यशील पूंजी है और ही कर्मियों के लिए वेतन भुगतान के पैसे. कर्मियों काे 20 माह और अधिकारियों काे 24 माह से वेतन नहीं मिल रहा है. वहीं कंपनी पर देनदारी 1500 करोड़ रुपये से अधिक हो गयी है. एचइसी के तीनों प्लांट में उत्पादन ठप रहने के कारण मशीनें जंग खा रही है. करोड़ रुपये के बड़े-बड़े फर्नेस, लेथ मशीन, गैस प्लांट मेंटेनेंस के अभाव में बंद पड़े हैं. इन मशीनों को फिर से चालू करने में करोड़ों रुपये खर्च करने होंगे. एचइसी के वर्तमान हालात से रूबरू करा रहे हैं प्रभात खबर के वरीय संवाददाता राजेश झा.


पांच फर्नेस और आठ गैस प्लांट बंद

एचइसी के अधिकारी बताते हैं कि एचइसी के एफएफपी प्लांट में 30 टन के दो फर्नेस, 10 टन के 01 फर्नेस, 05 टन के 01 फर्नेस के अलावा एचएमबीपी व एचएमटीपी में हीट ट्रीटमेंट प्लांट बंद पड़े हैं. वहीं तीनों प्लांट में 15 गैस प्लांट हैं, जिसमें 6 से 7 चालू स्थिति में हैं. वह भी आंदोलन के कारण अभी बंद पड़े हैं. जबकि शेष मेंटेनेंस के अभाव में बंद पड़े हुए है. वहीं 6000 टन का प्रेस मशीन खराब पड़ा है. 2650 टन प्रेस मशीन, हैमर, हिटिंग फर्नेस, ईओटी क्रेन काम नहीं होने के कारण जंग खा रहे हैं. इन मशीनों से फिर से काम लेने में महीनों का समय और मैन पावर लगेगा. वहीं करोड़ों रुपये के लुब्रिकेंट की आवश्यकता भी पड़ेगी. अधिकारी बताते हैं 70 से 80 अभियंता एचइसी की वर्तमान स्थिति को देखते हुए दूसरी कंपनियों में चले गये हैं. जो इंजीनियर बचे हैं, उनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है.


चालू वित्तीय वर्ष में 250 करोड़ रुपये से अधिक नुकसान में

एचइसी के पास लगभग 1200 करोड़ रुपये का कार्यादेश विभिन्न कंपनियों से मिला है. लेकिन कार्यशील पूंजी के अभाव में उत्पादन ठप पड़ा है. चालू वित्तीय वर्ष में एचइसी अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहा है. अधिकारी बताते हैं कि एचइसी चालू वित्तीय वर्ष के दिसंबर माह तक 250 करोड़ रुपये से अधिक के घाटे में है.

एचइसी ने केंद्र से मांगा आर्थिक पैकेज, नहीं मिला

एचइसी के निदेशकों ने वित्तीय संकट से उबरने के लिए भारी उद्योग मंत्रालय से आर्थिक पैकेज की मांग की थी. अधिकारी बताते हैं कि एचइसी द्वारा भेजे गये प्रस्ताव पर मंत्रालय की ओर से कहा गया कि अपने संसाधन से एचइसी को चलायें. वहीं एचइसी ने आवासीय परिसर के खाली पड़े एक हजार एकड़ जमीन में से 200 एकड़ जमीन दीर्घकालीन लीज पर देकर कार्य पूंजी की व्यवस्था करने, बैंक गारंटी देने की भी मांग की है. लेकिन प्रबंधन का यह प्रस्ताव अभी भी मंत्रालय में विचाराधीन है. वहीं प्रबंधन ने बिजली बिल का बकाया 180 करोड़ का भुगतान करने के लिए झारखंड बिजली वितरण निगम की चेतावनी की भी जानकारी भारी उद्योग मंत्रालय को दी है.

उत्पादन ठप, सुरक्षा पर हर माह डेढ़ करोड़ खर्च

एचइसी में चालू वित्तीय वर्ष में महज 15 से 20 करोड़ रुपये का ही उत्पादन हुआ है. लेकिन एचइसी की सुरक्षा में लगे सीआइएसएफ पर प्रतिमाह लगभग डेढ़ करोड़ रुपये खर्च किया जा रहा है. वहीं बिजली व पानी का खर्च भी हर माह हो रहा है. इस कारण हर माह एचइसी पर देनदारी बढ़ती जा रही है.

100 एकड़ से अधिक जमीन पर अवैध कब्जा

एचइसी में आये दिन अवैध निर्माण का कार्य जारी है. कर्मियों के पिछले 24 दिनों से आंदोलन के कारण इसमें और इजाफा हुआ है. प्रबंधन द्वारा जारी वार्षिक रिपोर्ट 2022-23 में जानकारी दी गयी है कि 73.05 एकड़ जमीन पर अवैध निर्माण हुआ है. जबकि नगर प्रशासन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 में यह आंकड़ा 100 एकड़ से अधिक हो गया है. प्रबंधन ने प्रति एकड़ जमीन की कीमत 11.50 करोड़ रुपये तय की है. इस हिसाब से 1150 करोड़ रुपये मूल्य की जमीन पर अवैध कब्जा है.

डेपुटेशन पर सीएमडी और निदेशक :

एचइसी के श्रमिक नेता भवन सिंह कहते हैं कि एचइसी की आर्थिक स्थिति खराब होने की सबसे बड़ी वजह डेपुटेशन पर सीएमडी और निदेशकों का होना है. एचइसी में पिछले पांच वर्षों से स्थायी सीएमडी नहीं है. भेल के सीएमडी को एचइसी के सीएमडी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है. वहीं भेल के ही महाप्रबंधकों को एचइसी के निदेशक का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है. सीएमडी वर्ष में एक-दो बार एचइसी आते हैं और निदेशक माह में एक-दो बार. इसका असर उत्पादन व अन्य कार्यों पर पड़ा.

ऐसे बिगड़ती गयी महारत्न की स्थिति

एशिया के सबसे बड़े उद्योग एचइसी की स्थिति एक-दो माह में खराब नहीं हुई है. अधिकारी बताते हैं कि 70 के दशक तक एचइसी ठीक ढंग से चला. इस दौरान भी एचइसी को घाटे का सामना करना पड़ता था लेकिन इसकी क्षतिपूर्ति केंद्र सरकार किया करती थी. 70 से 80 का दशक एचइसी के लिए स्वर्ण काल रहा. इसी दौरान एचइसी दो बार मुनाफे में आया. वर्ष 1984-85 में एचइसी ने आंशिक रूप से लाभ कमाया. इसके बाद से ही एचइसी की स्थिति खराब होती चली गयी. वर्ष 1991 में आर्थिक उदारीकरण के लागू होने पर एचइसी की स्थिति और खराब हो गयी. वर्ष 1992 में पहली बार एचइसी रूग्ण उद्योगों में शामिल हो गया और बीआइएफआर के अधीन चला गया. कर्मचारियों का वेतन असामयिक हो गया और सभी प्रकार की सुविधाएं धीरे-धीरे बंद होने लगी.

चार वर्ष बाद 1996 में केंद्र सरकार ने 750 करोड़ का पैकेज दिया. तब यह बीआइएफआरा से बाहर आ गया. वर्ष 1998 में एचइसी एक बार फिर बीआइएफआरा के अधीन चला गया और बीआइएफआर ने इसे अंतिम रूप से बंद करने की सिफारिश कर दी. इसके बाद मामला हाइकोर्ट में चला गया. केंद्र व राज्य सरकार के हस्तक्षेप के बाद एक बार फिर एचइसी को पैकेज देने की सहमति बनी. वर्ष 2004 में केंद्र सरकार ने 2100 करोड़ का पुनर्वास पैकेज पास किया. राज्य सरकार ने एचइसी के लिए पैकेज देने की घोषणा की. मई 2007 में एचइसी के सीएमडी बने जीके पिल्लई. इसके बाद एचइसी वर्ष 2006-07 से 2013-14 तक लाभ में रहा. इसके बाद एचइसी फिर घाटे में चला गया. वर्ष 2014-15 में 241.68 करोड़ का घाटा, 2015-16 में 144.77 करोड़ का घाटा, 2016-17 में 82.27 करोड़ का घाटा, 2017-18 में 446 करोड़ का लाभ, 2018-19 में 93 करोड़ का घाटा, 2019-20 में 405.37 करोड़ का घाटा, वर्ष 2020-21 में 175 करोड़ का घाटा, वर्ष 2021-22 में 256 करोड़ का घाटा व वर्ष 2022-23 में 230 करोड़ का घाटा हुआ है.

कंपनी की खराब स्थिति के लिए नीति जिम्मेवार

एचइसी के अधिकारी बताते हैं कि एचइसी के घाटे में जाने के कई कारण हैं. प्रारंभिक दौर में एचइसी उपकरणों का निर्माण तो करता था, लेकिन उसका दाम केंद्र सरकार तय करती थी. एचइसी को कभी भी लागत के अनुसार दाम नहीं मिले. उस दौरान कई सीएमडी बदले गये. राजनीतिक लोगों को भी सरकार ने सीएमडी जैसे पदों पर बिठाया. एचइसी में आवश्यकता के मुताबिक कर्मचारियों की बहाली नहीं की गयी. कई अधिकारियों ने यहां परिवारवाद को जन्म दिया और नियुक्तियां करता गया. लिहाजा कर्मचारियों की संख्या 22 हजार तक पहुंच गयी. खर्च कम करने की नीति के तहत वर्ष 1992 में वीआरएस स्कीम लागू किया गया. इससे भी एचइसी को नुकसान का सामना करना पड़ा. वर्ष 2019 में सीएमडी अभिजीत घोष के सेवानिवृत्त होने के बाद भेल के सीएमडी नलिन सिंघल को वर्ष 2019, अक्तूबर में एचइसी के सीएमडी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है. हटिया मजदूर यूनियन के अध्यक्ष भवन सिंह ने कहा कि स्थायी सीएमडी नहीं रहने से एचइसी की स्थिति में और अधिक गिरावट आने लगी. सीएमडी अपने कार्यकाल के दौरान 5 से 6 बार ही एचइसी आये हैं. स्थायी सीएमडी नहीं होने के कारण एचइसी की कार्यसंस्कृति खराब होती गयी. पूर्व के निदेशकों के बीच समन्वय नहीं होना भी एचइसी की खराब स्थिति का एक कारण है. वर्तमान में एचइसी के तीनों निदेशक भेल से अतिरिक्त प्रभार में है, जो नियमित रूप से एचइसी नहीं आते हैं. इस कारण महत्वपूर्ण कार्यों में विलंब होता है. इसका असर उत्पादन पर पड़ रहा है.
यहां बने उपकरणों की देश-विदेश में मांग

एचइसी के अधिकारी बताते हैं कि आज भी एचइसी की उपयोगिता देश को है. एनसीएल ने वर्तमान में 450 करोड़ रुपये के उपकरण बनाने की निविदा निकाली है, जो देश में सिर्फ एचइसी ही बना सकता है. वहीं आकांक्षा व इसरो से एचइसी को कार्यादेश मिला है, जो देश में अन्य कंपनियों नहीं बना सकती हैं. कार्यशील पूंजी के अभाव में एचइसी वर्तमान में काम नहीं कर पा रहा है. इसके अलावा एचइसी के पूर्व में बनाये गये उपकरणों की मांग देश के अलावा विदेशों में भी है. एचइसी ने यूगोस्लाविया के लिए एल्यूमीनियम इलेक्ट्रोलिसर विथ एनोड मैकेनिज्म, चार रोल क्रशर का निर्माण किया. बुलगारिया, हंगरी व क्यूबा के लिए मेटालर्जिकल क्रेन, चार रोड क्रशर, ब्रिज री-लोडर क्रेन का निर्माण किया. श्रीलंका के लिए स्टील मेल्टिंग शॉप इक्विपमेंट, कोक ओवेन इक्विपमेंट का निर्माण किया. तुर्की के लिए कोक ओवेन इक्विपमेंट, कंटीन्यूअस कास्टिंग इक्विपमेंट का निर्माण किया. रूस के लिए कोक ओवेन इक्विपमेंट, सिंटरिंग प्लांट इक्विपमेंट, क्रशिंग एंड ग्राइडिंग इक्विपमेंट, माइनिंग इक्विपमेंट, फोर्ज्ड रोल एंड हॉलेज विंचेस, मिनी स्टील कास्टिंग, कोल चार्जिंग कार, डोर एक्सट्रेक्टिंग मशीन, ब्लास्ट फर्नेस इक्विपमेंट, इलेक्ट्रोलायजर पोर्टस का निर्माण किया. वहीं बांग्लादेश के सीमेंट प्लांट के लिए विभिन्न तरह के उपकरणों का निर्माण किया. इन कामों से एचइसी को अरबों रुपये का विदेशी मुद्रा मिला.

लगातार बंद होती गयी कर्मियों को मिलनेवाली सुविधा

एचइसी की आर्थिक स्थिति खराब होने पर धीर-धीरे कर्मियों की स्थिति भी खराब होने लगी. वर्तमान में स्थिति यह है कि कर्मियों को 20 माह से वेतन नहीं मिला है. अधिकारियों के पास गाड़ी तो है लेकिन उसमें तेल भराने के लिए पैसे नहीं. मुख्यालय सहित तीनों प्लांट में कैंटीन सुविधा बंद है. एचइसी कर्मियों की स्वास्थ्य सुविधा के लिए शुरू किये गये वेलनेंस सेंटर में न ही चिकित्सक हैं और न ही मेडिकल स्टॉफ. कर्मियों को दवाइयां भी नहीं मिलती है. डीजल के अभाव में एंबुलेंस सेवा बंद है. वहीं आवासीय परिसर की सुंदरता भी जर्जर क्वार्टर के कारण खराब होती जा रही है. खेल के मैदान, खाली पड़ी जमीन पर अवैध कब्जा किया जा रहा है. नगर प्रशासन विभाग के लापरवाही के कारण कई भवन व क्वार्टर जर्जर हो रहे हैं. एचइसी ने झारखंड सरकार को 1148 क्वार्टर बेच दिया व 6784 आवास को दीर्घकालीन लीज पर दे दिया. वर्तमान में एचइसी के पास 3177 आवास हैं. इसकी हालत भी मरम्मत के अभाव में जर्जर होती जा रही है. मरम्मत के अभाव में और अवैध निर्माण के कारण सिवरेज-ड्रेनेज का पाइप जाम रहता है.

एचइसी ने कई बार साबित की है अपनी उपयोगिता :

एचइसी का उदघाटन दीपावली के दिन 15 नंवबर 1963 को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी. इस कारखाने ने अपने जीवन काल के 61 वर्षों में कई बार अपनी उपयोगिता साबित की है. एचइसी ने बोकारो, दुर्गापुर, भिलाई, राउरकेला, विशाखापट्टनम जैसे बड़े स्टील प्लांटों की स्थापना की. इसके अलावा इसरो के तीन लाउंचिंग पैड, ईओटी क्रेन के अलावा अन्य उपकरण, पानी जहाज के उपकरण, सेना के लिए माउंटेन गन, बांग्लादेश युद्ध के समय में गन बैरल, टी-72 टैंक के लिए उपकरण, माइनिंग क्षेत्र के विभिन्न क्षमता के शावेल, ड्रैगलाइन का निर्माण किया है.

एचइसी की खराब स्थिति के लिए प्रबंधन जिम्मेवार : लालदेव सिंह

देश का गौरव कहा जानेवाला एचइसी बंदी के कगार पर पहुंच गया है. इसके लिए प्रबंधन की नीति जिम्मेवार है. पिछले पांच-छह वर्षों से एचइसी में स्थायी सीएमडी नहीं है. भेल के सीएमडी आते नहीं हैं, जिस कारण कार्य बाधित हो रहा है. समय पर मशीनों को अपडेट नहीं करने के कारण मशीनों की क्षमता 7 से 10 प्रतिशत रह गयी है. इससे लागत अधिक आती है और कंपनी को लाभ कम होता है. एचइसी को िजंदा रखने के िलए स्पष्ट नीति और अच्छे प्रशासक की आवश्यकता है.

प्रबंधन चाह ले तो अपने संसाधन से खड़ा हो सकती है कंपनी : मनोज

एचइसी के पास लगभग एक हजार एकड़ जमीन है, जिसे प्रबंधन दीर्घकालीन लीज पर या किराया पर देकर राशि की जुगाड़ कर सकता है. इन जमीनों पर धीरे-धीरे अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है. एचइसी टाउनशिप में 150 से अधिक आवास जर्जर हो गये हैं. उनकी मरम्मत कर राशि की जुगाड़ की जा सकती है. प्रबंधन हाथ पर हाथ रख कर अपनी सेवानिवृत्ति के दिन गिन रहा है. भेल के अधिकारियों को एचइसी से कोई मतलब नहीं है. इस कारण एचइसी अब बंदी के कगार पर पहुंच गया है.

स्थायी सीएमडी से बदल सकती है एचइसी की स्थिति : भवन सिंह

एचइसी की इस हालत के िलए केंद्र सरकार व प्रबंधन जिम्मेवार है. केंद्र सरकार ने एचइसी को बैंक गारंटी देना बंद कर दिया. किसी भी तरह की आर्थिक मदद देने से इंकार कर दिया. ऐसे में एचइसी की मशीनों में जंग लगना शुरू हो गया है. एचइसी के पास अपने संसाधन हैं, जिससे यह निर्बाध गति से चल सकता है, पर जो भी योजना बना कर भेजी जाती है, उसे मंत्रालय नकार देता है. जब तक एचइसी को स्थायी सीएमडी व निदेशक नहीं मिलेगा, एचइसी वर्तमान स्थिति से नहीं उबर सकता है.

एचइसी को चलाने पर जल्द से जल्द ठोस निर्णय ले केंद्र सरकार : सनी सिंह

एचइसी की मशीनों को जीर्णोद्धार की जरूरत है. केंद्र सरकार को साफ करना चाहिए कि एचइसी को चलाना है या नहीं. पिछले पांच वर्षों से सांसद, विधायक, एचइसी के सीएमडी व निदेशक सिर्फ आश्वासन ही दे रहे हैं. एचइसी के पास कार्यशील पूंजी है नहीं और प्रबंधन कर्मियों से काम पर लौटने को कहता है. केंद्र सरकार एचइसी को नहीं चलाना चाहती है, तो इसे निजी कंपनी के हाथों में दे दे. कर्मी भूखे मर रहे हैं. बच्चों का नाम स्कूल से कट गया है. कर्मियों के सब्र का बांध टूटता जा रहा है.

स्थायी सीएमडी मिले, तो एचइसी बिना केंद्र सरकार की मदद से चलेगा : प्रकाश

एचइसी को अगर भारी उद्योग मंत्रालय स्थायी सीएमडी देता है, तो किसी की मदद की जरूरत नहीं है. एचइसी के पास आवासीय परिसर में सैकड़ों आवास हैं. खाली पड़ी जमीन है, जिससे प्रबंधन राशि की जुगाड़ कर प्रतिमाह 10 से 12 करोड़ प्राप्त कर सकता है. अगर सुनियोजित तरीके से योजना बना कर एचइसी को चलाया जाये, तो कोई बाधा नहीं होगी. उन्होंने कहा कि मशीनों की आधुनिकीकरण के लिए न तो पुरानी सरकार को चिंता थी और न ही वर्तमान सरकार इस पर चितिंत है.

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