बंद पड़ा सामान्य चापाकल राजपुर. प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न गांव में इस बार मार्च महीने में ही भूमिगत जल स्तर पांच फुट नीचे चला गया है. जिससे पेयजल की समस्या उत्पन्न होने की गंभीर संभावना बढ़ गयी है. अधिकतर गांव में दर्जनों सामान्य चापाकल बंद हो गए हैं . तापमान में हो रही बढ़ोतरी से गेहूं की अंतिम सिंचाई के लिए एक बार फिर किसान बोरिंग चला कर सिंचाई शुरू किए हैं. इससे लगातार पानी का खिंचाव हो रहा है.
Water Crisis: 60 फुट रहता है वाटर लेवल
सामान्य तौर पर विभिन्न पंचायतों में 60 से 70 फुट तक भूमिगत जल स्तर बना रहता है. बरसात के दिनों में यह 10 से 12 फुट तक पहुंच जाता है. वाटर लेवल बने रहने से सभी के घरों का चापाकल आसानी से चलता है. पशु एवं आमजन के लिए पानी की समस्या नहीं रहती है.धीरे-धीरे बढ़ रही गर्मी से विभिन्न गांव में भूमिगत जल स्तर तेजी से खिसक रहा है. इसका जलस्तर 75 से 80 फीट तक हो गया है.विभिन्न गांव में लगे सादा चापाकल पानी देना बंद कर दिया है. अधिकतर गांव में सरकार के स्तर से लगाए गए चापाकल जिसका बोरवेल 150 से 300 फीट तक है. उसी चापाकल से लोग पानी ले रहे हैं. जिस गांव में यह चापाकल खराब है. उसको बनाने के लिए चलंत टीम का गठन किया गया है. सूचना मिलते ही यह टीम गांव में पहुंचकर चापाकल का मरम्मत कर रही है. अब तक क्षेत्र के मंगराव,नागपुर, कजरिया, खरहना, देवढिया,खीरी के अलावा अन्य गांव में दर्जनभर से अधिक चापाकल का मरम्मत करना है.
सिंचाई की बनी समस्याभूमिगत जल स्तर नीचे हो जाने से प्याज एवं अन्य प्रकार की सब्जी की खेती करने वाले किसानों को सिंचाई करने में परेशानी हो रही है. 20 फुट नीचे गहरे कुआं में पंपसेट अथवा समरसेबल के माध्यम से सिंचाई किया जा रहा है. वह भी बहुत ही कम मात्रा में पानी निकल रहा है. जिन खेतों की सिंचाई एक घंटा में होता था. उसकी सिंचाई दो से ढाई घंटे में हो रही है. सप्ताह में तीन दिन सिंचाई करनी पड़ रही है. क्या कहते हैं पर्यावरण संरक्षकजलवायु में हो रहे लगातार परिवर्तन से मौसम में भी बदलाव हो रहा है. जो खतरे का संकेत है. पिछले वर्ष भी भूमिगत जलस्तर नीचे गया था. इस बार बीच-बीच में हुई हल्की बारिश से कुछ राहत तो मिला लेकिन इस बार भी एक महीना पहले ही जलस्तर खिसकना शुरू हो गया है.इससे बचने के लिए हम सभी को अधिक से अधिक पौधों को लगाना जरूरी है. पेड़ों का संरक्षण करना होगा. विपिन कुमार ,राज्य संयोजक आसा पर्यावरण सुरक्षा.