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Darjeeling Lok Sabha Seat : अब तक दार्जिलिंग सीट पर पूरा नहीं हो सका है तृणमूल की जीत का सपना

Darjeeling Lok Sabha Seat : दार्जिलिंग की सीट को न जीत सकी तृणमूल कांग्रेस गोपाल लामा के जरिये पहली बार इस पहाड़ी क्षेत्र में अपनी पैठ बनाना चाहती है. गोपाल लामा की बात करें तो वह सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी हैं. 2008-09 में वह सिलीगुड़ी के एसडीओ थे.


Darjeeling Lok Sabha Seat : दार्जिलिंग संसदीय क्षेत्र में राजनीति को लेकर एक अलग तरह की संवेदना दिखती है. यह सीट कभी किसी का गढ़ नहीं थी. लगातार आंदोलनों के कारण यहां की राजनीति कई खेमों में बंटती देखी गयी है. गोरखालैंड (Gorkhaland) नामक अलग राज्य की मांग के कारण राजनीतिक दलों का मूड भांप कर लोग चुनाव में वोट करते दिखते रहे हैं. 2019 में हुए चुनाव में भाजपा के राजू बिष्ट यहां से चुनाव जीतने में सफल रहे थे. श्री बिष्ट को तब 59.19 फीसदी वोट मिले थे. पिछले चुनाव की तुलना में भाजपा का वोट प्रतिशत 16.46 फीसदी बढ़ गया था. तब तृणमूल कांग्रेस के अमर सिंह राई दूसरे स्थान पर आये थे. उन्हें 26.56 फीसदी वोटों से ही संतोष करना पड़ा था. बाकी दल 10 फीसदी वोट का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाये थे.


प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पहली बार 2014 में भाजपा चुनाव मैदान में उतरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार 2014 में भाजपा चुनाव मैदान में उतरी थी, तब पार्टी ने एसएस अहलूवालिया को यहां उतारा था. उन्हें 42.73 फीसदी वोट मिले थे. तृणमूल कांग्रेस ने यहां से फुटबॉलर बाइचुंग भुटिया को आजमाया था. पर, वह फुटबॉल के मैदान जैसा गोल नहीं कर सके. उन्हें 25.47 फीसदी वोट ही मिल सके थे. इससे पूर्व 2009 में भाजपा ने दार्जिलिंग से अपने वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह को मैदान में उतारा था. उन्होंने 51.50 फीसदी वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी. वह पहले केंद्र की बाजपेयी सरकार में मंत्री भी रह चुके थे. भाजपा के कद्दावर नेताओं में एक थे जसवंत सिंह. उन्होंने तब माकपा के जीवेश सरकार को परास्त किया था. सरकार को महज 25.29 फीसदी मत ही मिल पाये थे.

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दार्जिलिंग सीट हमेशा ही सुर्खियों में रहा है

ऊपरोक्त परिणामों के साथ तीन बार लगातार यहां से भाजपा जीत चुकी है. वर्ष 2004 के चुनाव पर नजर डालें, तो यहां से कांग्रेस के दावा नरबुला ने तब जीत हासिल की थी. उन्होंने माकपा के मोनी थापा को हराया था. इस चुनाव में भाजपा तीसरे स्थान पर आयी थी. लेकिन बाद के चुनावों में भाजपा ने अपना दबदबा बढ़ा लिया. 2004 से पहले यहां माकपा मजबूत थी. 1999 में उसके एसपी लेप्चा, 1998 में उसके ही आनंद पाठक जीते थे. 1996 में रतन बहादुर राई जीते. 1991 में कांग्रेस के इंद्रजीत ने चुनाव जीता. 1989 में इंद्रजीत ने ही जीएनएलएफ के लिए चुनाव जीता था.

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1984 व 1980 में भी माकपा के आनंद पाठक ही यहां से चुनाव जीते
1984 व 1980 में भी माकपा के आनंद पाठक ही यहां से चुनाव जीते थे. 1977 में देशव्यापी कांग्रेस विरोधी लहर के बावजूद कांग्रेस के ही कृष्ण बहादुर छेत्री को दार्जिलिंग में सफलता मिल गयी थी. 1971 में माकपा के रतनलाल ब्रहमिन जीते थे और 1967 में निर्दलीय मैत्रेई बसु को सफलता मिली थी. हासिल की. 1962 व 1957 में कांग्रेस के थियोडोर मेनन इस सीट से जीत का संसद पहुंचे थे. कई मायने में यह सीट काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. दार्जिलिंग सीट हमेशा ही सुर्खियों में रहता आया है.

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दार्जिलिंग : कभी सिक्किम का हिस्सा, अब बंगाल का गर्व

दार्जिलिंग शिवालिक पर्वतमाला में लघु हिमालय में अवस्थित है. यहां की औसत ऊंचाई 2134 मीटर है. दार्जिलिंग शब्द की उत्त्पत्ति दो तिब्बती शब्दों – दोर्जे (वज्र) और लिंग (स्थान) से हुई है. इस का अर्थ बज्र का स्थान है. 1856 में यहां चाय की खेती शुरू हुई थी. यहां की चाय दुनिया भर में विख्यात है. 1999 में दार्जिलिंग को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था. इस स्थान की खोज तब हुई थी, जब अंगरेजों के साथ नेपालियों के युद्ध के दौरान एक ब्रिटिश सैनिक टुकड़ी सिक्किम जाने के लिए छोटा रास्ता तलाश रही थी. इस रास्ते से सिक्किम तक आसान पहुंच के कारण यह स्थान ब्रिटिशों के लिए रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण था.

क्या है दार्जिलिंग का इतिहास

इसके अलावा यह जगह प्राकृतिक रूप से भी काफी संपन्न थी. दार्जिलिंग का ठंडा वातावरण तथा वहां की बर्फबारी अंग्रेजों के लिए अनुकूल थी. इसलिए ब्रिटिश धीरे-धीरे बसने लगे. प्रारंभ में दार्जिलिंग सिक्किम का ही एक भाग था. बाद में भूटान ने कब्जा कर लिया. कुछ समय बाद सिक्किम इस पर पुन: काबिज हो गया. पर, 18वीं शताब्दी में इसे नेपाल के हाथों गंवा भी दिया. आगे चल कर 1817में हुए ब्रिटिश-नेपाल युद्ध में हार के बाद नेपाल को इसे ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपना पड़ा.अपने रणनीतिक महत्व तथा तत्कालीन राजनीतिक स्थिति के कारण दार्जिलिंग एक युद्ध स्थल के रूप में परिणत हो गया था. इस दौरान काफी उथल-पुथल देखने को मिला था. फिलहाल भारत में यह बंगाल का एक जिला है और पर्यटन के लिए देश भर में मशहूर है. गर्मी में यहां पर्यटकों की काफी भीड़ जुटती है.

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पर्यटकों को लुभाता है यहां का टाइगर हिल
टाइगर हिल का मुख्य आनंद इस पर चढ़ाई करने में है.हर सुबह पर्यटक इस पर चढ़ाई करते हुए देखे जा सकते हैं. इसके पास ही कंचनजंघा है. विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी. कंचनजंघा को सबसे रोमांटिक माउंटेन की उपाधि दी गयी है. यहां की ट्वॉय ट्रेन रूट का निर्माण 19वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में हुआ था. दार्जिलिंग हिमालयन रेलमार्ग इंजीनियरिंग का एक आश्चर्यजनक नमूना है. यह रेलमार्ग 70 किलोमीटर लंबा है. इस रेलखंड का सबसे सुंदर भाग बताशिया लूप है. इस जगह रेलखंड आठ अंक के आकार में हो जाती है.

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गोपाल लामा के जरिये पैठ बनाना चाहती है तृणमूल
अब तक दार्जिलिंग की सीट को न जीत सकी तृणमूल कांग्रेस गोपाल लामा के जरिये पहली बार इस पहाड़ी क्षेत्र में अपनी पैठ बनाना चाहती है. गोपाल लामा की बात करें तो वह सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी हैं. 2008-09 में वह सिलीगुड़ी के एसडीओ थे. इसके बाद पर्यटन विभाग में संयुक्त निदेशक पद पर भी वह रहे. आगे चल कर वह जीटीए के पर्यटन विभाग में रहे. शुरुआत में वह भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) में शामिल हुए थे. उनके शामिल होने के बाद मोर्चा के अध्यक्ष तथा जीटीए प्रमुख अनीत थापा ने कहा था कि गोपाल लामा के पास प्रशासनिक अनुभव है. वह गोरखा नहीं हैं, लेकिन दार्जिलिंग के साथ उनका संबंध गहरा है.

गोपाल लामा को दार्जिलिंग से तृणमूल का उम्मीदवार बनाया गया

विभिन्न स्तरों पर उनकी व्यापक जान-पहचान है. फिर श्री लामा की ममता बनर्जी से बातचीत हुई और अनीत थापा के समर्थन से उन्हें दार्जिलिंग से तृणमूल का उम्मीदवार बनाया गया. उम्मीदवार बनाये जाने के बाद गोपाल लामा का कहना था कि दार्जिलिंग के लोगों का उत्साह व प्यार देख कर वह उत्साहित हैं. वह दार्जिलिंग के लोगों को कहेंगे कि पहाड़ या समतल अलग नहीं, बल्कि सब एक हैं. हम सभी मिल जुल कर सद्भावना के साथ काम करेंगे. चुनाव में जीत कर वह इलाके के लोगों के विकास के लिए काम करने की बात कहते हैं. दार्जिलिंग के विकास को अपना लक्ष्य बताते हैं. इस कार्य में उन्हें बीजीपीएम व तृणमूल का साथ मिलने की उम्मीद है.

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