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बिहार में भांग के बिना यहां नहीं चढ़ता है होली का खुमार, जानें दोनों के रिश्ते की दिलचस्प कहानी

बिहार के इस खास इलाके में होली के दिन भांग पीने की पुरानी परंपरा है. होली के दिन महिला और पुरुष दोनों एक उम्र पार करने के बाद भांग का सेवन करते हैं. डॉक्टर और आयुर्वेदाचार्य भी भांग को लेकर एक राय रखते हैं.

पटना. होलिका दहन के बाद ही बिहार में होली की शुरुआत हो जाती है. होलिका की चिताभूमि की राख से होली खलने की पुरातन परंपरा बिहार में देखने को मिलता है. इसके साथ ही एक और परंपरा देखने को मिलता है, जो केवल बिहार नहीं बल्कि देश और विदेश में भी देखने को मिल जाता है. यह परंपरा है होली के दिन भांग का सेवन. होली के दिन शिव भक्त महिला और पुरुष दोनों भांग का सेवन करते हैं. इनका कहना है कि होली में जब भांग का रंग चढ़ता है, तब होली का खुमार और बढ़ता है. धर्मशास्त्री भी कहते हैं कि होली और भांग का रिश्ता भारतीय संस्कृति में सदियों पुराना है. भांग खाने के पीछे लोग अलग-अलग तथ्य बताते हैं, लेकिन बिहार के मिथिला इलाके में होली पर भांग पीने की प्रथा के पीछे एक पौराणिक कहानी है.

प्रचलित है यह पौराणिक कथा

भांग पीने की परंपरा को लेकर धर्मशास्त्र के पंडित आचार्य भवनाथ झा कहते हैं कि भांग का वर्णन पौराणिक ग्रंथ शिव पुराण की कथा में मिलता है. भांग को महादेव (भगवान शिव) का पसंदीता पेय माना जाता है. कहा जाता है कि महादेव को भांग बहुत पसंद था. हिन्दू मान्यताओं की माने तो भांग भगवान शंकर और भगवान विष्णु की दोस्ती का प्रतीक है. आचार्य भवनाथ झा कहते हैं कि भांग पीने की परंपरा भगवान शिव और विष्णु से जुड़ी हुई है. वो कहते हैं कि शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप जो एक राक्षस था, उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था. हिरण्यकश्यप को मारने के लिए विष्णु जी ने नरसिंह के रूप में अवतार लिया. नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, लेकिन हिरण्यकश्यप को मारने के बाद भी नरसिंह का क्रोध कम नहीं हुआ. तब भगवान शिव ने शरभ का रूप धारण किया और नरसिंह से युद्ध किया. इस युद्ध में शरभ ने नरसिंह को हरा दिया. तब नरसिंह का क्रोध शांत हुआ. नरसिंह ने अपनी छाल भगवान शिव को आसन के रूप में प्रदान की. शिव भक्तों ने इस जीत का जश्न मनाया, भांग का सेवन किया और नृत्य किया. माना जाता है कि तभी से होली के दिन भांग पीने का चलन शुरू हुआ.

भांग के बिना होली, ना बा-बा ना

मिथिला के इलाके में एक बड़ा समाज है जो रंगों के इस त्यौहार पर भांग का इस्तेमाल प्राचीन काल से करता आ रहा है. यहां भांग को होली का एक अभिन्न अंग माना जा रहा है. भांग के बिना होली की वो आज भी कल्पना नहीं करते. उनके लिए बिना भांग के होली का रंग मानो फीका है. हालांकि एक्सपर्ट की मानें तो कम मात्रा में इसका सेवन नुकसान नहीं पहुंचाता है, लेकिन ज्यादा पीने से शरीर पर बुरा प्रभाव भी पड़ सकता है.

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क्या कहते हैं एक्सपर्ट

आखिर ऐसा क्या होता है भांग लोगों को बेफिक्र बना देता है. भांग का सेवन करने के बाद लोग हंस-हंस कर लोटपोट हो जाते हैं. जाने माने फिजिशियन डॉक्टर संजय मिश्रा की मानें तो कम मात्रा में जो लोग भांग का सेवन करते हैं, उनके लिए होली हैप्पी होगी, लेकिन ज्यादा भांग का सेवन नुकसानदेह हो सकता है. वहीं आयुर्वेदाचार्य संजीव झा कहते हैं कि भांग की तासीर ठंडी होती है. भांग खाने से आदमी उग्र नहीं होता है, जबकि शराब आदमी को उग्र करता है. डॉ कंजन मल्लिक कहती है कि भांग खाने और पीने के बाद आप खुश होने लगते है, इसके पीछे डोपामाइन हॉर्मोन काम करने लगता है. भांग की अधिक मात्रा शरीर में पहुंचते ही यह हॉर्मोन रिलीज होना शुरू होता है. यह मूड को नियंत्रित करना शुरू कर देता है, इसे सामान्य भाषा में हैप्पी हार्मोन भी कहते हैं.

आखिर कैसे बनता है भांग?

भांग को बनाने के लिए इसके पौधे की पत्तियों और फूल का इस्तेमाल किया जाता है. पत्तियों और फूलों को पीसकर इसका गाढ़ा पेस्ट तैयार होता है. जिसमें दूध, चीनी और काजू-बादाम मिलाकर भांग की ठंडई बनती है. आयुर्वेदाचार्य की माने तो भांग में कई औषधीय गुण होते हैं. भांग पीने के बाद शरीर और मन शांत रहता है, बशर्ते इसका सेवन कम मात्रा में करें, जबकि अधिक मात्रा में भांग नशे का रूप धारण कर लेती है.

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