फिल्म- क्रू
निर्देशक-राजेश कृष्णन
निर्माता- बालाजी टेलिफ़िल्म्स
कलाकार- तब्बू ,करीना कपूर खान,कृति सेनन,राजेश शर्मा,दिलजीत दोसांझ,कपिल शर्मा और अन्य
प्लेटफार्म- सिनेमाघर
रेटिंग- ढाई
हिन्दी सिनेमा में वुमन सेंट्रिक फिल्में की परिभाषा इश्यू बेस्ड कहानियां रही है. वुमन सेंट्रिक फिल्में ऐसी बहुत कम होती हैं, जिसमें कॉमेडी हो ,ग्लैमर हो और एक नहीं बल्कि तीन ए लिस्टेड एक्ट्रेसेज भी हो यही बात क्रू को खास भी बनाती है. लेकिन फिल्म के सबसे अहम पहलू कहानी पर ये फिल्म मात खा गयी है. कमजोर कहानी वाली इस फिल्म का ट्रीटमेंट रोचक है, जिससे मामला बोझिल नहीं हुआ है, टाइमपास वाला जरूर बन गया है.
रियलिटी के धरातल से दूर है कहानी
बैंक से करोड़ों रुपये का लोन लेकर देश से लंदन भागे विवादास्पद कारोबारी विजय माल्या और उनके किंगफिशर एयर लाइंस व्यवसाय के डूबने की घटना को शायद ही अब तक कोई भूला हो. क्रू फिल्म की कहानी भी इसी से प्रेरित है. विजय वालिया( सारस्वत चटर्जी) की एयरलाइन कोहिनूर में गीता सेठी( तब्बू) ,जैस्मिन( करीना कपूर खान और दिव्या राणा( कृति सैनन ) बतौर एयर होस्टेस काम कर रही है. इन तीनों के साथ एयरलाइंस के और हजारों कर्मचारियों को पिछले छह महीने से वेतन नहीं मिले हैं,आर्थिक तंगी से जूझ रही ये तीनों एयरहोस्टेज सोने की तस्करी से जुड़ जाती है. वह भारत से अलबर्ज़ में सोने की तस्करी करने लगती है और उससे मिलने वाले पैसों से अपनी जरूरतों और सपनों को पूरा करने लगती है. इसी बीच वह कस्टम ऑफ़िसर्स के शक के घेरे में आ जाती हैं और उन्हें मालूम पड़ता है कि उनकी एयरलाइंस का मालिक देश छोड़ कर भाग गया है और जिस सोने की तस्करी उन्होंने की थी. वह एयरलाइन के मालिक का ही था,जो उसने कर्मचारियों के हक को मार कर बनाया है. ये तीनों उस सोने को वापस लाने का फ़ैसला करती है. दूसरे देश में जाकर यह किस तरह से उस सोने और विजय वालिया को लेकर आती है. इंटरवल के बाद यह उसी की कहानी है.
फिल्म की खूबियां और खामियां
क्रू फिल्म की कहानी को भगोड़े विजय माल्या और उनके डूबे हुए एयरलाइंस किंगफिशर से जोड़ा गया है. फिल्म पहले हाफ तक रोचक भी लगती है, जब तक सोने की तस्करी की जा रही होती है, लेकिन और लेकिन सेकेंड हाफ में फिल्म रियलिटी से पूरी तरह से दूर हो जाती है. विजय माल्या को भारत लाना क्या इतना आसान है. खैर यह पहलू अगर सिनेमैटिक लिबर्टी पर छोड़ दे तो बाकी फिल्म का ट्रीटमेंट एंटरटेनिंग है. फिल्म पूरे समय आपको हंसाती और गुदगुदाती रहती है. जिस वजह से सेकेंड हाफ में फिल्म को बोझिल होने से भी बच जाती है. फिल्म के गीत संगीत में रिक्रिएट गानों की भरमार है. दिल्ली शहर में मारो घाघरो से लेकर चोली के पीछे क्या है तक लेकिन ये रीमिक्स कमजोर रह गये हैं. इन गानों के साथ न्याय नहीं कर पाये हैं. फिल्म के एंड क्रेडिट वाला गीत नैना जरूर सुनने में थोड़ा अच्छा लगता है. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी फिल्म के साथ न्याय नहीं कर पाया है.
करीना कपूर खान ने मारी बाजी
अभिनय की बात करें तो करीना,तब्बू और कृति तीनों ही अभिनेत्रियों ने शानदार काम किया है और कमजोर कहानी को अपने परफॉरमेंस से संभाला भी है लेकिन बाजी करीना कपूर ख़ान मार ले गई है. उनका किरदार तीनों में रोचक भी है और उन्होंने इसे रोचक तरीके से निभाया भी है. तीनों की केमिस्ट्री भी पर्दे पर देखने लायक है. फिल्म में इन तीनों का ग्लैमर अन्दाज भी बेहद खास है. कपिल शर्मा फिल्म में मेहमान भूमिका में दिखें हैं, तो दिलजीत दोसांझ को भी फ़िल्म में करने को कुछ खास नहीं था.