Lok Sabha Election 2024 : करीब 500 वर्ष पुराना शहरी क्षेत्र हावड़ा, हुगली नदी के तट पर स्थित है. कोलकाता के बिल्कुल करीब इस लोकसभा क्षेत्र में 25 फीसदी से अधिक गैर बांग्लाभाषी मतदाता बताये जाते हैं, जिनमें अधिकांश राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश से हैं. हालांकि इस संसदीय क्षेत्र को तृणमूल कांग्रेस ने अपने किले के तौर पर स्थापित कर लिया है. इस सीट के मौजूदा सांसद प्रसून बनर्जी ने यहां से एक उपचुनाव और दो आम चुनावों में जीत हासिल की है. हावड़ा के चुनावी इतिहास पर नजर डालें, तो पहले आम चुनाव यानी 1952 में कांग्रेस के संतोष कुमार दत्ता ने जीत हासिल की.
1998 में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर विक्रम सरकार हुए थे विजयी
इसके बाद अगले दो आम चुनावों में माकपा के मोहम्मद इलियास विजयी हुए. 1967 में एक बार फिर कांग्रेस के उम्मीदवार ने जीत हासिल की. लेकिन फिर 1971 के चुनाव से लेकर 1980 तक के चुनाव में माकपा के समर मुखर्जी विजयी रहे. लेकिन 1984 के चुनाव में कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रियरंजन दासमुंशी यहां से जीते. लेकिन फिर अगले दो चुनावों में माकपा को जीत मिली. इसके बाद 1996 के आम चुनाव में कांग्रेस के प्रियरंजन दासमुंशी फिर जीते. यानी इस सीट पर हमेशा से वाममोर्चा और कांग्रेस के बीच लड़ाई होती रही. लेकिन 1998 में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर विक्रम सरकार विजयी हुए. फिर 13वीं लोकसभा में माकपा के स्वदेश चक्रवर्ती ने जीत हासिल की.
2004 के आम चुनाव में उनकी जीत का सिलसिला कायम
2004 के आम चुनाव में उनकी जीत का सिलसिला कायम रहा, लेकिन 2009 से तृणमूल कांग्रेस ने हावड़ा लोकसभा क्षेत्र को मानो अपने किले में तब्दील कर लिया. 2009 में तृणमूल के अंबिका बनर्जी ने जीत हासिल की. इसके बाद यहां से उपचुनाव में तृणमूल के उम्मीदवार तथा पूर्व फुटबॉलर प्रसून बनर्जी विजयी हुए. अपनी जीत का सिलसिला उन्होंने अगले दो आम चुनावों में भी कायम रखा. 2013 के उपचुनाव में प्रसून बनर्जी को 4.26 लाख वोट मिले, वहीं 2014 के आम चुनाव में उन्हें 4.88 लाख वोट मिले. जबकि 2019 के आम चुनाव में उन्हें 5.76 लाख वोट मिले. कुल मतदान का उन्हें 47.18 फीसदी मिला था.
आशावादी है भाजपा खोयी सीट की तलाश में माकपा
लंबे समय तक माकपा उम्मीदवारों ने इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है. लेकिन गत लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो माकपा का ग्राफ नीचे गया है और भाजपा का वोट शेयर काफी बढ़ा है. 2014 के आम चुनाव में माकपा उम्मीदवार को 2.91 लाख वोट तथा कुल वोटों का 25.90 फीसदी मिला था. वहीं भाजपा उम्मीदवार जॉर्ज बेकर 2.48 लाख वोट के साथ तीसरे स्थान पर थे. लेकिन 2019 आते आते भाजपा ने यहां अपनी स्थिति में काफी सुधार किया. उसके वोट शेयर में 25.42 फीसदी का उछाल आया और 38.73 फीसदी वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे भाजपा उम्मीदवार रंतीदेव सेनगुप्ता को 4.73 लाख वोट मिले थे. उन्होंने माकपा उम्मीदवार सुमित्र अधिकारी को तीसरे स्थान पर धकेल दिया. माकपा प्रत्याशी को महज 1.05 लाख वोट मिले. उनके वोट शेयर में भी 5.44 फीसदी की कमी देखी गयी. तृणमूल ने जहां एक बार फिर प्रसून बनर्जी को इस लोकसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं भाजपा ने डॉ रथीन चक्रवर्ती को अपना प्रत्याशी बनाया है.
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तीन चुनावों में तृणमूल का बढ़ा वोट
हावड़ा लोकसभा सीट हुए पिछले तीन आम चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का वोट चुनाव दर चुनाव बढ़ता चला गया. हालांकि, इस दरम्यान भाजपा ने भी अपने जनाधार में जबरदस्त इजाफा कर सबको चौंका दिया. इन दो पार्टियों के बढ़ते जनाधार का सबसे अधिक खामियाजा माकपा को उठाना पड़ा. उसका वोट शेयर सबसे कम हो गया. आंकड़ों पर गौर करें, तो 2009 के चुनाव में तृणमूल उम्मीदवार को चार लाख 77 हजार 449 मत मिले थे, जबकि प्रतिद्वंद्वी रहे माकपा प्रत्याशी को चार लाख 40 हजार 57 वोट हासिल हुए थे. उस वक्त भाजपा को महज 37 हजार 723 वोट से ही संतोष करना पड़ा था. तृणमल सांसद अंबिका बनर्जी के निधन के बाद इस सीट पर 2013 में उपचुनाव हुआ. इस बार भी तृणमूल ने सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा, हालांकि पिछली बार से उसे कम वोट मिले.
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भाजपा ने भी चौंकाया
तृणमूल उम्मीदवार को कुल चार लाख 26 हजार 387 मत मिले, जबकि माकपा प्रत्याशी को तीन लाख 99 हजार 422 वोट हालिस हुए. उपचुनाव में भाजपा ने प्रत्याशी नहीं दिया था. 2014 के संसदीय चुनाव में फिर तृणमूल का वोट बढ़ गया. इस बार तृणमूल प्रार्थी को चार लाख 88 हजार 461 वोट मिले. माकपा के वोटों की संख्या घटी, तो भाजपा की बढ़ गयी. माकपा उम्मीदवार को कुल दो लाख 91 हजार 505 एवं भाजपा प्रत्याशी को कुल दो लाख 48 हजार 120 मत मिले. भाजपा का वोट प्रतिशत 3.79 फीसदी से उछल कर 22.05 प्रतिशत पर पहुंच गया. 2019 के आम चुनाव की बात करें, तो इस सीट पर फिर तृणमूल ने ही जीत दर्ज की. लेकिन खास बात यह रही कि भाजपा तीसरे पायदान से दूसरे क्रमांक पर आ गयी और उसका वोट प्रतिशत भी बढ़कर 25.42 पर पहुंच गया. इस चुनाव में तृणमूल उम्मीदवार को कुल पांच लाख 76 हजार 711 वोट मिले. वहीं भाजपा प्रत्याशी ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए कुल चार लाख 73 हजार 016 मत हासिल कर सबको चौंका दिया. वहीं, माकपा एक लाख पांच हजार 547 वोट प्राप्त कर तीसरे नंबर पर खिसक गयी.
प्रसून बनर्जी के बयान पर मचा राजनीतिक घमासान
चुनाव जीतने के लिए पार्टियों द्वारा हिंदू-मुस्लिम वोट बैंक को साधने की तैयारी शुरू हो गयी है. इसी क्रम में तृणमूल उम्मीदवार प्रसून बनर्जी ने एक ऐसा बयान दे दिया, जिस पर घमासान मच गया है. भाजपा ने उनके बयान को हथियार बना लिया है. बता दें कि हाल ही में भाजपा ने एक वीडियो (जिसकी पुष्टि प्रभात खबर नहीं करता) एक्स पर डाल कर लिखा था कि हावड़ा से तृणमूल प्रत्याशी का कहना है कि मुसलमान यहां 800 साल पहले आये थे, जबकि हिंदुत्व की धारणा मात्र 300 से 400 साल पहले की है. इस बयान को लेकर भाजपा, सत्तारूढ़ दल पर हमला बोल रही है. वहीं, भाजपा आइटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने प्रसून से संबंधित एक अन्य वीडियो अपलोड कर उन पर हमला बोला था.
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डॉक्टर से मेयर बने, विस चुनाव भी लड़ा, अब सांसद की तैयारी
डॉ भोलानाथ चक्रवर्ती महानगर के जाने-माने होमियोपैथी डॉक्टर थे. पार्क स्ट्रीट के पास क्यू स्ट्रीट में उनका चेंबर था. उनके निधन के बाद उनके बेटे रथिन चक्रवर्ती का नाम प्रसिद्ध होमियोपैथी डॉक्टरों में शुमार हो गया. ममता बनर्जी ने उन्हें हावड़ा का मेयर बनाया था. लेकिन 2019 के बाद रथिन तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ के करीबी बन गये. इसका परिणाम भी दिखा. 2021 में विधानसभा चुनाव से पहले रथिन तृणमूल छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गये. इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें हावड़ा से टिकट दिया है. बता दें कि भाजपा ने रथिन को विधानसभा चुनाव में भी अपना प्रत्याशी बनाया था. वह शिवपुर सीट से तृणमूल प्रत्याशी व क्रिकेटर मनोज तिवारी के खिलाफ मैदान में उतरे थे. लेकिन मनोज ने उन्हें भारी मतों से पराजित कर दिया था. शिवपुर विधानसभा हावड़ा लोकसभा क्षेत्र के अधीन ही पड़ता है. एक हारे हुए प्रत्याशी को दोबारा हावड़ा से टिकट दिये जाने को लेकर भाजपा में ही सवाल उठ रहे हैं. सबसे दिलचस्प बात यह है कि हावड़ा नगर निगम के प्रशासक सुजय चक्रवर्ती रथिन के चचेरे भाई हैं. अब उन्हें लोकसभा चुनाव में भाई रथिन के खिलाफ प्रचार करना पड़ रहा है.
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तृणमूल के समक्ष सीट बचाने की चुनौती
हावड़ा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होनेवाला है. इस बार तृणमूल के वर्तमान सांसद और पूर्व फुटबॉलर प्रसून बनर्जी के लिए मुकाबला कठिन होने की संभावना है. इसका पहला कारण है विपक्ष का मजबूत उम्मीदवार और दूसरा इलाके में तृणमूल के भीतर आंतरिक गुटबाजी. तृणमूल सुप्रीमो और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के छोटे भाई बाबुन बनर्जी, प्रसून को क्षेत्र से दोबारा टिकट दिये जाने का विरोध कर चुके हैं. हालांकि दीदी की नाराजगी के बाद उनके सुर ढीले पड़ गये थे. बाद में उन्होंने माफी मांगते हुए पार्टी हित में काम करने की बात की थी. इस सीट पर लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. भाजपा ने हावड़ा के पूर्व मेयर रथीन चक्रवर्ती को मैदान में उतारा है. वहीं माकपा ने कलकत्ता हाइकोर्ट के वकील सब्यसाची चटर्जी को टिकट दिया है. चक्रवर्ती और चटर्जी अपने प्रचार अभियान के दौरान भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा बना रहे हैं.
भाजपा का ‘आर’ प्यार
पिछले दो लोकसभा चुनाव में हावड़ा सीट से भाजपा का ‘आर’ अक्षर के प्रति खास लगाव दिख रहा है. 2019 के चुनाव में भाजपा ने जिसे अपना उम्मीदवार बनाया था, उनके नाम का पहला अक्षर ‘आर’ से शुरू था और 2024 में भी पार्टी ने जिसे प्रत्याशी घोषित किया है, उसके नाम का भी पहला अक्षर ‘आर’ ही है. अब यह कोई टोटका है, यहां महज संयोग यह तो स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता. लेकिन 2019 के आम चुनाव की बात करें, तो भाजपा ने यहां से रंतिदेव सेनगुप्ता को टिकट दिया था. वह चुनाव तो नहीं जीत सके, लेकिन भाजपा के वोट प्रतिशत में जबरदस्त उछाल आया और उसे कुल 38.73 फीसदी वोट मिले. भाजपा ने पहली बार इस सीट से चार लाख 73 हजार 016 वोट हासिल किये और माकपा को पछाड़ दूसरे नंबर पर पहुंच गयी. क्या ‘आर’ को लकी चार्म मान इस बार भी भाजपा ने ‘आर’ अक्षर पर ही दांव खेला है?
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विधानसभा क्षेत्र पार्टी विधायक
- हावड़ा उत्तर तृणमूल गौतम चौधरी
- हावड़ा मध्य तृणमूल अरूप राय
- शिवपुर तृणमूल मनोज तिवारी
- हावड़ा दक्षिण तृणमूल नंदिता चौधरी
- सांकराइल तृणमूल शीतल कुमार सरदार
- पांचला तृणमूल गुलशन मल्लिक
मतदाताओं के आंकड़े
- कुल मतदाता 1633207
- पुरुष मतदाता 852987
- महिला मतदाता 780194
- थर्ड जेंडर 000026