Ramadan : माहे-रमजान में एतकाफ का बड़ा अहमियत है. एतकाफ करने वालों को दो हज व दो उमरा के बराबर सवाब मिलता है. रविवार को 20वें रोजे के दिन अशर की नमाज के बाद एतकाफ पर बैठेंगे. एतकाफ की नियत से सूरज डूबने से पहले-पहले रोजेदार मस्जिद पहुंचते हैं. इस बार पूरे भागलपुर के मस्जिदों में 200 से अधिक रोजेदार एतकाफ पर बैठ सकते हैं. एतकाफ करना सुन्नत है. उक्त बातें मदरसा जामिया शहबाजिया के हेड शिक्षक मुफ्ती मौलाना फारूक आलम अशरफी ने कही.
मुफ्ती ने बताया कि हजरत पैगंबर साहब हर साल एतकाफ किया करते थे. एतकाफ महत्वपूर्ण इबादतों में शुमार है. इस बार रविवार को माहे-रमजान के 20वें रोजे के दिन अशर की नमाज के बाद से रोजेदार एतकाफ की नियत से मस्जिदों में दाखिल होंगे.
क्या है एतकाफ ?
अल्लाह की इबादत की नियत से मस्जिदों में रुकना एतकाफ कहलाता है. मुफ्ती अशरफी ने बताया कि एतकाफ सुन्न केफाया है. रमजान के आखिरी 10 दिनों में किसी मोहल्ले से एक भी आदमी 10 दिनों का एतकाफ में बैठते हैं. एतकाफ में रोजेदार होना जरूरी है. एतकाफ के 20वें रोजा की शाम अशर नमाज के बाद सूरज डूबने से पहले-पहले एतिकाफ की नियत से रोजेदार मस्जिद में दाखिल होते हैं. ईद की चांद नजर आने के बाद ही बाहर आयेंगे. एतकाफ करने वाले मस्जिद से उन्हीं कामों के लिए बाहर निकल सकते हैं, जैसे वजू शौच आदि. एतकाफ करने वाले जनाजा की नमाज में भी शामिल नहीं हो सकते हैं. बीमार लोगों को देख नहीं सकते हैं.
क्या मुस्लिम महिला कर सकती है एतकाफ ?
मुफ्ती फारूक ने बताया कि मुस्लिम महिलाएं एतकाफ कर सकती है. घर का वह स्थान जहां महिला ने नमाज के लिए जगह बना रखी हो. उसी स्थान पर बैठ कर एतकाफ कर सकती है. मुफ्ती ने बताया कि एतकाफ में महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही हैं.
आखिरी अशरा में इबादत खूब करें
माहे रमजान के आखिरी अशरा यानी 21 से 30वें रोजा के अंतराल कई मायनों में महत्वपूर्ण है. सोमवार से तीसरा अशरा शुरू हो रहा है. यह जहन्नुम से आजादी का अशरा है. इस अशरा में एतकाफ पर बैठते हैं. मुफ्ती फारूक ने बताया कि जो लोग एतकाफ नहीं कर पायेंगे. ऐसे में उन 10 दिनों तक ज्यादा से ज्यादा इबादत करे. गुनाहों की माफी मांगें.
Also Read : रमजान पर महंगाई की मार, फल-सब्जियों के बढ़े दाम, फिर भी खरीदारी को मजबूर हैं रोजेदार