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मधेपुरा लोकसभा सीट फिर बनेगा यादवी संघर्ष का गवाह, यहां कोई भी समाजवादी नेता नहीं लगा सका हैट्रिक

समाजवादियों की धरती मधेपुरा में कोई भी समाजवादी नेता हैट्रिक नहीं लगा सका है. यहां से अब तक बीपी मंडल और शरद यादव ही लगातार दो बार जीते. यहां से दो बार सांसद रह चुके पप्पू यादव की तीसरी बार जमानत हो गयी थी. इस बार भी यहां यादवों के बीच संग्राम देखने को मिलेगा.

कुमार आशीष. मधेपुरा लोकसभा सीट पर इस बार भी यादवी संग्राम होना तय है. एनडीए में जदयू के दिनेश चंद्र यादव एक बार फिर यहां ताल ठोक कर मैदान में उतर चुके हैं. महागठबंधन में यह सीट राजद के खाते में आयी है. राजद ने यहां अब तक उम्मीदवार तय नहीं किया है. पिछली दफा शरद यादव राजद से उम्मीदवार थे. इस बार उनके गुजर जाने के बाद उनके पुत्र शांतनु की भी पार्टी के भीतर दावेदारी है.

मधेपुरा लोकसभा सीट के तहत विधानसभा की छह सीटें आती हैं. छह विधानसभा सीटों में आलमनगर में जदयू के नरेंद्र नारायण यादव, बिहारीगंज में जदयू के निरंजन मेहता, मधेपुरा में राजद के चंद्रशेखर, सोनबरसा में जदयू के रत्नेश सदा, सहरसा में भाजपा के आलोक रंजन झा और महिषी में जदयू के गूंजेश्वर साह विधायक हैं.

मधेपुरा लोकसभा देश के हॉट सीटों में शामिल

1967 से ही मधेपुरा देश के हॉट सीटों में शामिल रहा है. यहां शुरू से अब तक समाजवादियों का ही बोलबाला रहा है. समाजवादियों के बीच ही चुनावी टक्कर होती रही है, लेकिन कोई भी समाजवादी नेता हैट्रिक लगाने में सफल नहीं रहा. चुनावी इतिहास बताता है कि अब तक प्रथम सांसद बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (बीपी मंडल) और शरद यादव ही लगातार दो बार लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे. हालांकि, हर चुनाव के बाद यहां की जनता अपना सांसद बदलती रही. यहां के मतदाताओं ने लालू प्रसाद, शरद यादव और पप्पू यादव जैसे दिग्गजों को भी हार का स्वाद चखाया है.

तीन बार कांग्रेस को भी मिला प्रतिनिधित्व

मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से अब तक तीन बार कांग्रेस ने भी प्रतिनिधित्व किया है. लोकसभा गठन के बाद तीसरी बार 1971 में हुए चुनाव में पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर राजेंद्र प्रसाद यादव शेष समाजवादी प्रत्याशियों को शिकस्त दे संसद पहुंचने में कामयाब रहे थे. लेकिन ठीक अगली ही बार 1977 में उन्हें समाजवादी नेता बीपी मंडल से शिकस्त खानी पड़ी. हालांकि, अगली बार 1980 में एक बार फिर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (उर्स) से प्रत्याशी बने राजेंद्र प्रसाद यादव ने बीपी मंडल से यह सीट छीन ली.

1984 में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदल महावीर प्रसाद यादव को टिकट दिया. चुनाव जीतकर महावीर प्रसाद यादव यहां से कांग्रेस के सांसद बने. उसके बाद से कांग्रेस यहां से कभी नहीं जीती. संशोपा, निर्दलीय व लोकदल से जीते बीपी मंडल 1967 में मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से प्रथम सांसद बने बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से उम्मीदवार बनाये गये थे. हालांकि अगले ही साल 1968 में उन्होंने संशोपा छोड़ दी और स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में भाग्य आजमाया. लोगों ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भी उन्हें सिर आंखों पर बिठाते हुए विजयी बनाया. 1977 के चुनाव में बीपी मंडल ने एक बार फिर पार्टी बदली और इस बार लोकदल से चुनावी मैदान में उतरे. इस बार भी लोगों ने लोकसभा पहुंचाया.

1989 से जनता दल, राजद व जदयू का रहा है राज

1989 में जब देश में वीपी सिंह के नेतृत्व में नयी पार्टी जनता दल का गठन हुआ तो मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से रमेंद्र कुमार रवि को उम्मीदवार बनाया गया और वे कांग्रेस विरोधी लहर में जीत भी गये. दो वर्ष के बाद 1991 में हुए उपचुनाव में जनता दल के नेता तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने राष्ट्रीय स्तर के नेता शरद यादव को मधेपुरा का रास्ता दिखाया और वे यहां से जीते. 1996 में भी यहां के मतदाताओं ने शरद यादव पर ही भरोसा जताया.

लालू और शरद के बीच होती रही रस्साकशी

1998 में जब लालू प्रसाद ने रातों रात जनता दल से अलग हो राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया तो इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने खुद जनता दल के शरद यादव के विरुद्ध अपनी दावेदारी ठोक दी. शरद को हरा संसद तो पहुंच गए. लेकिन अगले ही साल फिर हुए चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से चुनाव अखाड़े में उतरे शरद यादव ने लालू प्रसाद को पटखनी दे दी.

2004 में एक बार फिर शरद और लालू आमने-सामने थे. इस बार लालू ने शरद को मात दे दी. हालांकि, सारण से भी चुनाव जीने के कारण लालू ने मधेपुरा की सीट छोड़ दी. इसी साल 2004 में हुए उपचुनाव में लालू ने राजद के टिकट पर राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को उतारा और जीतकर वे भी दिल्ली पहुंचने में कामयाब रहे.

लालटेन थामने के बाद भी हार गये शरद

2009 में जदयू के शरद यादव एक बार फिर चुनावी मैदान में उतर बाजी मार ली तो फिर 2014 में हुए चुनाव में राजद के पप्पू यादव यहां से दूसरी बार सांसद बनने में सफल रहे. 2019 में शरद यादव ने एक बार फिर लालटेन थाम लिया और राजद के टिकट पर चुनावी समर में उतरे, लेकिन हार गये.

उनके सामने जदयू के दिनेश चंद्र यादव और जन अधिकार पार्टी से पप्पू यादव प्रत्याशी के रूप में खड़े थे. तीनों दिग्गजों के बीच हुए त्रिकोणीय मुकाबले में जदयू के दिनेश चंद्र यादव ने लंबे अंतराल से जीत दर्ज की. हालांकि मतगणना के बाद यह बात सामने आयी कि इस चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे जाप के पप्पू यादव अपनी जमानत भी नहीं बचा सके.

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