राजदेव पांडेय ,पटना. आजादी के बाद जब देश गढ़ा जा रहा था, उस दौर में राजनीति में ऐसी कई महिलाएं थीं, जिन्होंने संसद में अपने प्रतिनिधित्व के जरिये नीति निर्माण में अहम भूमिका निभायी. इनमें छात्र आंदोलन, आजादी के आंदोलन और ट्रेड यूनियन में सालों जीवन खपाने वाली महिला राजनेता थीं. हालांकि, अब देश की राजनीति में बिहार का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं की जन सेवा की पृष्ठभूमि का वह सुनहरा दौर अब खत्म सा हो गया है. अब बिहार की सियासत में घर की बेटियां और नेता की पत्नियां टिकट पा रही हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि वह अपने परिवार के पुरुष परिजनों की विरासत को संभाल रही हैं.
सियासी जनाधार नहीं, पारिवारिक पृष्ठभूमि महत्वपूर्ण
दरअसल ऐसी कई महिला प्रत्याशियों का कोई सियासी जनाधार नहीं होता है. अगर आधार है, तो केवल रस्मी है. इस बार लोकसभा चुनाव का टिकट पाने वाली बिहार की कई महिलाएं ऐसी हैं जो या तो किसी बड़े नेता की बेटी हैं या किसी की पत्नी. ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जहां टिकट पाने की योग्यता पारिवारिक राजनीति ही है.
तारकेश्वरी सिन्हा ने आजादी के आंदोलन में लिया था भाग
1952 के पहले लोकसभा चुनाव में तारकेश्वरी सिन्हा कांग्रेस के टिकट पर पटना पूर्व से चुनाव लड़ीं. वे लोकसभा के लिए चार बार चुनी गयीं. हालांकि, सियासत में आने से पहले वह छात्र नेता रहीं. वह देश की पहली महिला राजनेताओं में से एक थीं. उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी. देश आजाद हुआ, तो पार्टी के लिए काम किया. 26 साल की उम्र में वह 1952 में पटना पूर्व निर्वाचन क्षेत्र से पहली लोकसभा के लिए चुनी गयीं. बाद में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में मंत्री रहीं. उस दौर में वह प्रगतिशील महिला राजनेता के रूप में स्थापित हुईं. उस दौर में जन सेवा और जन संषर्घ में शामिल होने वाले को ही टिकट दिया जाता था.
शकुंतला देवी और रामदुलारी सिन्हा की अलग थी पहचान
1957 के लोकसभा चुनाव में बांका लोकसभा सीट से शकुंतला देवी चुनाव जीतीं. कांग्रेस संगठन में उन्होंने बड़ी भूमिका निभायी. वह तीन बार लोकसभा सदस्य और बाद में विधायक भी रहीं. इसी तरह पटना लोकसभा सीट से 1962 में चुनाव जीतीं रामदुलारी सिन्हा भी बेहद अहम महिला नेता थीं. वें केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल भी बनीं. वह बिहार की पहली महिला थीं जिन्होंने मास्टर डिग्री हासिल की थी. उनका पूरा परिवार स्वतंत्रता आंदोलन में गहरायी से लगा हुआ था.
1947-48 में उन्होंने बिहार प्रदेश युवा कांग्रेस के महासचिव की भूमिका निभायी. राजनीतिक क्षेत्र में उनके समर्पण और नेतृत्व को देखते हुए उन्हें बिहार महिला कांग्रेस के संगठन सचिव के रूप में नियुक्त किया गया. उन्होंने श्रमिकों के लिए बड़े काम किये. उन्होंने कई मजदूर संगठनों की अगुवाई की. उन्होंने दहेज प्रथा, परदा प्रथा और छुआछूत खत्म करने के लिए भी काम किया. वे 1973 में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की उपाध्यक्ष भी चुनीं गयीं.
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500 बीघा जमीन दान में दे दिया था सत्यभामा देवी ने
1957 में नवादा और 1962 में जहानाबाद लोकसभा सीट से सत्यभामा देवी भी चुनी गयीं. सत्यभामा देवी ने स्वतंत्रता के बाद आचार्य विनोबा भावे द्वारा चलाये गये भूदान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी थी. उन्होंने अपनी 500 बीघा जमीन भूदान के अंतर्गत गरीबों को दान में दे दी थी. ऐसे तमाम उदाहरण हैं. इस तरह दो दशक पहले तक गंभीर राजनीतिक पृष्ठभूमि वाली महिलाओं को टिकट देने में प्राथमिकता दी जाती थी. हालांकि अपवाद स्वरूप कुछ बड़े परिवारों की महिलाएं भी चुनाव लड़ीं.
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