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वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे आज, ऑटिस्टिक बच्चों को कला सीखाकर रोजगार से जोड़ने का कर रही कार्य

बच्चों को पालना आसान काम नहीं होता है, यह अपने आप में ही पैरंट्स के लिए बड़ा चैलेंज है. ऐसे में अगर आपका बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित है तो यह काम और भी मुश्किल हो जाता है, क्योंकि इस स्थिति में माता-पिता को बच्चे के ब्रेन के साथ इमोशनल डेवलपमेंट के लिए ज्यादा प्रयास करने […]

बच्चों को पालना आसान काम नहीं होता है, यह अपने आप में ही पैरंट्स के लिए बड़ा चैलेंज है. ऐसे में अगर आपका बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित है तो यह काम और भी मुश्किल हो जाता है, क्योंकि इस स्थिति में माता-पिता को बच्चे के ब्रेन के साथ इमोशनल डेवलपमेंट के लिए ज्यादा प्रयास करने पड़ते हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से 2 अप्रैल 2007 को वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे घोषित किया गया. ऑटिज्म को पहचान कर सही समय पर विशेषज्ञों से सलाह लेने पर सुधार लाया जा सकता है.पर जरूरी है कि पैरेंट्स इस बात को छिपाने की बजाय इससे जुड़े उपायों और थेरेपीज पर ध्यान दें जिससे इन बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ा जा सके. शहर में मौजूद ऐसी संस्थाएं है जो इन बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने का कार्य कर रही है.

ऑटिस्टिक बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने की है कोशिश

समर्पण स्पेशल स्कूल के सीइओ संतोष कुमार सिन्हा बताते हैं कि हमारा यह स्कूल पिछले 25 सालों से ऑटिज्म और स्पेशल चैलेंज्ड बच्चों के लिए काम करता आ रहा है. यहां अभी 6 ऑटिज्म और 44 स्पेशल बच्चे हैं. इन सभी बच्चों को थेरेपिस्ट और विशेष प्रशिक्षण के जरिये उनके बेहतरी के लिए ट्रेनिंग दी जाती है जिससे उन्हें समाज के मुख्य धारा से जोड़ा जा सकें. जरूरत है अभिभावकों को इस लक्षण को समझने की और खुल कर इलाज कराने की. आज भी लोग ऐसे बच्चों को छिपाते हैं और उनकी स्थिति बिगड़ती चली जाती है.

एक बार बच्चों को चीजें समझ आ जाती है जो वे इसे सिद्दत से करते हैं

ऑटिज्म के बच्चे आम बच्चों की तरह नहीं होते हैं. उन्हें स्पेशल केयर के साथ रखा जाता है. वैसे तो यह बच्चे अपने आप में खास होते है. एक बार किसी चीज की धुन लग जाये तो वे उस कार्य को पूरा करते हैं. इन बच्चों को संगीत, आर्ट, क्राफ्ट और पढ़ाई से जोड़ने की कोशिश पिछले डेढ़ साल से कंकड़बाग स्थित शिवाजी पार्क के समीप अभियुदय सेंटर कर रहा है. इस सेंटर को चला रही स्वास्तिका रानी बताती हैं कि ऑटिस्टिक बच्चों के लिए सामने वाले को संवेदनशील होना बेहद जरूरी है. उन्हें हमेशा लगता था कि इन बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने की एक पहल करनी होगी. वोकेशनल रिहैबिलिटेशन के तहत वे बच्चों को पढ़ाने के साथ पेंटिंग और रेसिन आर्ट सिखाती है. यहां पर आने वाले बच्चों की उम्र 8-22 साल है. पहली बार बच्चों की बनायी हुई रेसिन आर्ट का स्टॉल ज्ञान भवन में लगाया गया था. विभिन्न आकार जैसे मोर पंख, मोर, शुभ-लाभ, गणेश, पेड़, घर आदि प्लाइ से कटआउट तैयार किया जाता है. फिर इसमें बच्चे मनचाहा रंग भरते है जिसे रेसिन पेंट हम करते हैं. फिर इसमें कुंदन, मोती(बड़ी,छोटी), बिड्स आदि का इस्तेमाल किया जाता है. इन्हें बनाने में 5-6 दिन का वक्त लगता है. इनकी बनायी चीजों की कीमत 200 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक की हैं. बच्चों को उनके अभिभावकों का भरपूर सहयोग मिल रहा है.

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