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Bhagalpur Water Crisis: 2030 तक 800 फीट तक गिर सकता है भागलपुर का अंडरग्राउंड वाटर लेवल

Bhagalpur Water Crisis : भागलपुर शहर के ऊंचे क्षेत्र सैंडिस कंपाउंड, तिलकामांझी, कचहरी चौक, घंटाघर, खलीफाबाग व स्टेशन चौक जैसे इलाके में सबसे ज्यादा संकट होने वाला है.

Bhagalpur Water Crisis: जलवायु में तेजी से हो रहे परिवर्तन से भागलपुर जिले में 2030 तक स्थिति अलार्मिंग हो सकती है. खासकर भागलपुर शहर का अंडरग्राउंड वाटर लेवल 800 फीट से भी नीचे जा सकता है. शहरी लैंडस्केप में सैंडिस कंपाउंड, तिलकामांझी, कचहरी चौक, घंटाघर, भीखनपुर, खलीफाबाग, स्टेशन चौक, वेरायटी चौक, ततारपुर समेत नाथनगर के सीटीएस से सटे इलाके अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं. इन इलाकों में रह रहे लोगों को जलसंकट के गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. वहीं, दक्षिणी क्षेत्र में बबरगंज, अलीगंज, मिरजानहाट, हबीबपुर, शाहजंगी जैसे इलाके में वाटर लेवल औसतन 600 फीट रह सकता है. वहीं जगदीशपुर, कजरैली, सबौर, अकबरनगर जैसे इलाके में भी भूगर्भ जल का स्तर 500 फीट रहने की आशंका है.टीएमबीयू के पीजी भूगोल विभाग के पूर्व एचओडी डॉ एसएन पांडेय ने बताया कि इस समय गंगा नदी से सटे मोहल्ले में लोग पेयजल के लिए 400 फीट तक बोरिंग करा रहे हैं, जबकि दक्षिणी क्षेत्र में 300-350 फीट बोरिंग हो रहा है. जिला प्रशासन की ओर से 1962 के बाद फिर से जिले का गजेटियर का निर्माण कराया जा रहा है. डॉ पांडेय ने बताया कि इस गजेटियर में जिले की भौगोलिक स्थिति की रिपोर्ट की जिम्मेदारी मुझे दी गयी है. इसमें नाथनगर से लेकर सबौर व गंगातट से बायपास तक के भूमि के ऊंचाई व गहरायी की विस्तार से रिपोर्ट तैयार की जा रही है. इसमें अंडरग्राउंड वाटर लेवल की भी रिपोर्ट दर्ज की जा रही है. उन्होंने बताया कि लोगों के सुविधाभोगी रहन-सहन से साफ पानी की खूब बर्बादी होती है. लोग औसतन तीन से चार लीटर साफ पानी पीते हैं, जबकि प्रति व्यक्ति 100 लीटर से अधिक पानी को टॉयलेट, स्नान व साफ सफाई में प्रयोग करते हैं.

50 से अधिक तालाबों पर बन गयी कॉलोनी

भूगोलविद प्रो पांडेय बताते हैं कि आज से 10 वर्ष पहले उन्होंने भागलपुर जिले की भौगोलिक स्थिति के आधार पर ‘लैंड यूज इन रूरल, ररबन व अर्बन एरियाज’ में सर्वे व रिसर्च के आधार पर शहर से सटे गंगा नदी, चंपा नदी, चानन, अंधरी, खलखलिया नदी बेसिन, तालाब समेत कई वेटलैंड की चर्चा की है. खासकर दक्षिणी क्षेत्र में 50 से अधिक तालाबों को भरकर उसपर कॉलोनी बसायी गयी है. इससे भी भूगर्भ जल का स्तर गिरा है. सरकार व आम लोगों द्वारा जमीन के अंदर के पानी के रिचार्ज की व्यवस्था नहीं की गयी है. दक्षिणी क्षेत्र समेत पूरे शहर के अनगिनत पेड़ कट गये हैं. पूरे शहर में कंक्रीट के सड़क बनने से वर्षा जल को धरती सोख नहीं पा रही है. हरा-भरा शहर अर्बन मोजाइक में तब्दील हो गया है. गंगा नदी की चौड़ाई सिकुड़ रही है. बारिश का पानी व बाढ़ के समय गंगा नदी के पानी का संचय कर इस संकट से आंशिक राहत मिल सकती है.

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