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Bihar: कभी विदेश तक होती थी सप्लाई, पैरवी में दी जाती थी मढ़ौरा में बनी मॉर्टन चॉकलेट

90 के दशक तक सारण जिले की पहचान मढ़ौरा के मॉर्टन फैक्ट्री और शुगर मिल से हुआ करती थी.1997 के बाद मॉर्टन फैक्ट्री कमजोर मैनेजमेंट और फैक्ट्री के अंदर बढ़ते वर्चस्व की जंग के कारण प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने लगा जिसके बाद इसे चलाने वाली कंपनी ने सभी कर्मियों को वीआरएस देकर फैक्ट्री बंद कर दी.

  • 90 के दशक तक सारण के मढ़ौरा में बनने वाला मॉर्टन था चॉकलेट का सबसे बड़ा ब्रांड
  • कारखाना बंद होने के बाद अब पूरी तरह समाप्त हो गया अस्तित्व
  • अब फैक्ट्री के नाम पर सिर्फ जर्जर बिल्डिंग व खाली जमीन ही रह गयी शेष
  • घर में शादी हो तो बारात आये लोगों की विदाई चॉकलेट देकर होती थी
  • बच्चे हो या बूढ़े सबकी पहली पसंद थी मॉर्टन चॉकलेट

प्रभात किरण हिमांशु, छपरा(सारण)

Bihar: 90 के दशक तक सारण जिले की पहचान मढ़ौरा के मॉर्टन फैक्ट्री और शुगर मिल से हुआ करती थी. इन दोनों फैक्ट्रियों से औद्योगिक क्षेत्र में सारण की मजबूत पैठ थी. समय के कालचक्र में कई विषमतायें सामने आयीं और दशकों तक अपनी मिठास से देश दुनिया में पहचान बनाने वाले मॉर्टन चॉकलेट और शुगर की फैक्ट्री रसातल में चली गयी. आज इस कारखाने की बस यादें ही शेष हैं. स्मृति के नाम पर जर्जर बिल्डिंग और खाली जमीन बची है.

नेपाल और भूटान के लोग भी करते थे पसंद

1980-90 के दशक में मढ़ौरा में बनने वाली मॉर्टन चॉकलेट अपनी क्वालिटी के दम पर सिर्फ बिहार में ही नही बल्कि दूसरे प्रदेशों के साथ-साथ विदेशों तक अपनी पहुंच बनाने में कामयाब हुई थी. सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग सभी दुकानों में मॉर्टन चॉकलेट की वेराइटी मिल जाती थी. पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा गुजरात समेत उत्तर भारत के कई प्रमुख राज्यो में इसकी काफी डिमांड थी. नेपाल से लेकर भूटान तक चॉकलेट का स्वाद हर जुबान पर था. 

अफसरों को पैरवी में दी जाती थी चॉकलेट

उस समय मॉर्टन से बड़ा दूसरा कोई ब्रांड नही था. सिर्फ चॉकलेट फैक्ट्री का सलाना कारोबार 30 करोड़ के आसपास था. स्थानीय लोग बताते हैं कि जब भी कोई अपने रिश्तेदारों से मिलने जाता था या किसी अफसर से कोई पैरवी लगानी होती तो मॉर्टन चॉकलेट का डिब्बा साथ जरूर ले जाता. सबसे फेमस चॉकलेट मॉर्टन कुकीज 50 पैसे में मिलती थी. जिसका स्वाद आज भी पुराने लोगों को याद है.

मॉर्टन से बचपन की यादें जुड़ी हैं

मॉटर्न चॉकलेट से सारण के लोगों के बचपन की यादें जुड़ी हुई हैं.  छपरा शहर के सुधीर सिन्हा, नवीन सहाय, प्रिंस राज बताते हैं कि पापा जब भी बाजार जाते तो हम मॉर्टन चॉकलेट लाने की डिमांड जरूर करते थे. दहियांवा मुहल्ले के अशोक प्रसाद बताते हैं कि दादा जब भी घर लौट कर आते तो हम अठन्नी (50 पैसा) मांगते थे और दुकान से जाकर चॉकलेट ले आते थे. नानी के घर जाते ही पड़ोस के किराना दुकान से चॉकलेट लेने की खुली छूट मिल जाती थी. 

कमजोर मैनेजमेंट के कारण बंद हो गयी फैक्ट्रियां

मढ़ौरा में मॉर्टन चॉकलेट फैक्ट्री, शुगर मिल के अलावे डिस्टलरी की यूनिट और सारण इंजीनियरिंग एंड वर्क के अंतर्गत रोलर का निर्माण भी होता था. मॉर्टन और चीनी मिल रोजगार के बड़े केंद्र थे. तब सारण जिला खासकर मढ़ौरा के लोगों के रोजगार का मजबूत विकल्प हुआ करता था. मढ़ौरा के तीस प्रतिशत घरों में कोई न कोई इन कारखानों में काम करता था. 1997 के बाद मॉर्टन फैक्ट्री कमजोर मैनेजमेंट और फैक्ट्री के अंदर बढ़ते वर्चस्व की जंग के कारण प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने लगा जिसके बाद इसे चलाने वाली कंपनी ने सभी कर्मियों को वीआरएस देकर फैक्ट्री बंद कर दी. 

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2006 के बाद नहीं हुआ कोई सकारात्मक प्रयास

चीनी मिल को शुरू कराने का प्रयास स्थानीय स्तर पर 2006 तक किया गया. पुनर्निर्माण का प्रयास भी शुरू हुआ. लेकिन संगठित प्रयास नही होने तथा सरकार और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण आज शुगर मिल का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है. बचे हुए कल पुर्जे और इंटें भी अब सुरक्षित नही हैं. हर बार विधानसभा तथा लोकसभा चुनाव में मढ़ौरा चीनी मिल एक प्रमुख मुद्दा बनता है. लेकिन चुनाव बीतने के बाद स्थानीय लोगों को मायूसी ही हाथ लगती है.

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