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राजकीय नलकूपों का मालिकाना हक तो बदला, पर सेहत में नहीं हुआ सुधार

लगभग पांच वर्ष पूर्व राजकीय नलकूपों को लघु सिंचाई विभाग से हटा कर सरकार ने नलकूपों के संचालन का मालिकाना हक पंचायती राज विभाग को सौंप दिया था. बावजूद इसके राजकीय नलकूपों के हालात में अधिक सुधार नहीं दिखायी दे रहा है.

भभुआ़ लगभग पांच वर्ष पूर्व राजकीय नलकूपों को लघु सिंचाई विभाग से हटा कर सरकार ने नलकूपों के संचालन का मालिकाना हक पंचायती राज विभाग को सौंप दिया था. बावजूद इसके राजकीय नलकूपों के हालात में अधिक सुधार नहीं दिखायी दे रहा है. नतीजा है कि आज की तारीख में भी जिले के 338 राजकीय नलकूपों में से 113 नलकूप खराब चल रहे हैं. गौरतलब है कि जब राजकीय नलकूपों का संचालन लघु जल संसाधन विभाग करता था, तो ग्रामीणों की शिकायत होती थी कि नलकूपों को चलाने वाले ऑपरेटर कभी महीनों, तो कभी सप्ताह भर, तो कभी पखवारे भर गायब रहते हैं. समय से नलकूप नहीं चलाये जाने से खेती चौपट हो रही है. ऐसे तमाम शिकायतों के बाद सरकार ने राजकीय नलकूपों की व्यवस्था बदल दी और इनके रखरखाव और संचालन का काम ग्राम पंचायतों को लगभग पांच वर्ष पूर्व दे दिया गया. बावजूद इसके राजकीय नलकूपों के संचालन की स्थिति ठीक नहीं हो सकी है. गौरतलब है कि राजकीय नलकूपों की मरम्मत को लेकर सरकार द्वारा जो राशि दी जाती है, उसके व्यय की उपयोगिता प्रमाण पत्र भी कई पंचायतों द्वारा लघु जल संसाधन विभाग को उपलब्ध नहीं करायी जाती है, जिससे नलकूपों की अगली मरम्मत बाधित हो जाती है. आज की तारीख में लघु जल संसाधन विभाग द्वारा हस्तांतरित किये गये जिले के 338 राजकीय नलकूपों में से 113 नलकूप बंद चल रहे हैं. जबकि, अगले माह से खरीफ फसल का सीजन शुरू हो जायेगा और किसान बीहन डालने के लिए नलकूपों और नहरों का मुंह ताकने लगेंगे. इधर, इस संबंध में जानकारी देते हुए लघु सिंचाई विभाग के लेखा अधिकारी पंकज कुमार ने बताया कि वर्तमान में 113 नलकूप बंद चल रहे हैं. इसमें से कुछ नलकूप पंचायतों द्वारा पूर्व में नलकूपों की मरम्मत के लिए दिये गये रुपये के व्यय की उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिये जाने के कारण अगली मरम्मत की राशि नहीं दी जा सकी है. इसके कारण मरम्मत के अभाव में ये नलकूप बंद है. वहीं, कुछ नलकूप यांत्रिक दोष के कारण, तो कुछ नलकूप बिजली आपूर्ति बाधित होने के कारण बंद हैं. कुछ ऐसे भी नलकूप हैं, जिनका बोर खत्म हो चुका है, ऐसे नलकूपों के नये बोर की खुदाई के लिए विभाग प्राक्कलन तैयार कर रहा है. इन्सेट 1 सरकार को लौट गयी गत वित्तीय वर्ष की मरम्मत की राशि भभुआ. राजकीय नलकूपों की मरम्मत को लेकर पंचायतों द्वारा सरकार से राशि की मांग तो की जाती है. पर मरम्मत के लिए सरकार द्वारा पंचायतों को उपलब्ध राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र भी कई पंचायतें नहीं दे पाती है. इस तरह के मामले को लेकर जिले की कई पंचायतों में राजकीय नलकूपों की मरम्मत के लिए वित्तीय वर्ष 2023-24 में आवंटित राशि लगभग छह लाख रुपये सरकार को वापस लौट गये. इस संबंध में लेखा अधिकारी पंकज कुमार ने बताया कि बंद पड़े राजकीय नलकूपों की मरम्मत के लिए राशि जिले के ग्राम पंचायत चौरी, कुड्डी, बिउरी, धरहर, मसौढा, छेरिया, सावठ, खामिदौरा, कल्याणपुर, मसाढ़ी आदि प्रखंडों के मुखिया और पंचायत सचिवों को विभाग द्वारा पत्र लिख कर पूर्व में मरम्मत के लिए दी गयी राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र मांगा गया था. ताकि उन्हें वर्तमान में बंद चल रहे नलकूपों की मरम्मति के लिए सरकार से प्राप्त राशि का नया आवंटन दिया जा सके. लेकिन, इन पंचायतों द्वारा कोई उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया गया. इससे गत वित्तीय वर्ष में सरकार से प्राप्त मरम्मत की राशि वापस लौट गयी. अब आगे जब पंचायतें पूर्व की राशि के व्यय का उपयोगिता प्रमाण पत्र देगी, तो नया आवंटन की मांग की जायेगी. उन्होंने बताया कि पंचायतों से उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं मिलने को लेकर उप विकास आयुक्त तथा जिला पंचायती राज विभाग को भी लिखा गया था, बावजूद इसके उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं मिल सका. इन्सेट 2 किसानों के पटवन की अंतिम उम्मीद हैं राजकीय नलकूप भभुआ. हर वर्ष वर्षा के अभाव से जूझ रहे कैमूर के किसानों के फसल के पटवन की अंतिम उम्मीद राजकीय नलकूप हैं. बावजूद इसके राजकीय नलकूपों के हालत सुधरने का नाम नहीं ले रहा है. गौरतलब है कि इधर कुछ वर्षों से कम हो रही बरसात के कारण किसानों के सामने मुख्य रूप से धान के खेती में पटवन की भारी समस्या खड़ी हो जा रही है. सोन उच्च स्तरीय नहर कैनाल और दुर्गावती जलाशय के पानी को लेकर कोहराम मच जाता है और किसान लाठी थाम लेते हैं. पटवन के अहम मौके पर सोन नहर का पानी रोहतास में ही गेट बंद कर रोक दिया जाता है, तो दुर्गावती जलाशय का कहीं नहर तटबंध टूट जाता है, तो कहीं ऊपर वाले किसान नहर को बांध कर पानी रोक देते हैं. नतीजा है टेल एरिया के किसानों को पानी नहीं मिल पाता है. छोटे मोटे वितरणियों और डैमों की हालत भी वर्षा नहीं होने से खराब हो जाती है. ऐसे में किसानों के खून और पसीने की कमाई उनके सामने ही देखते देखते बर्बाद हो जाती है. तब किसानों को पटवन के अंतिम उम्मीद के रूप में राजकीय नलकूप ही दिखाई देते हैं.

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