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बुनियादी जरूरतों के पूरा होने की वर्षों से राह ताक रहे कुमारडीहवासी

पानी की समस्या से जूझ रहे ग्रामीण, बिजली भी पर्याप्त नहीं मिलती

धनबाद जिला अंतर्गत महुदा क्षेत्र के हाथूडीड पंचायत कुमारडीह के ग्रामीण मुश्किल भरे हालत में जीवन बसर करने को विवश हैं. कुमारडीह में बुनियादी जरूरतों की प्रर्याप्त उपलब्धता यहां सबसे बड़ा मुद्दा है. इसके साथ ही गांव के युवाओं के बीच रोजगार बड़ा मुद्दा है. गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत आने वाले इस गांव में बिजली की कमी से लोग परेशान हैं. गांव तक बिजली तो पहुंची है, लेकिन वह नहीं के बराबर रहती है. कभी-कभी तो कई दिनों तक बिजली का इंतजार करना पड़ता है. गांव का हर घर नल से जल योजना से जुड़ा है. लेकिन इसका पूरा लाभ गांव वालों को नहीं मिल रहा है. नलों से दो दिनों पर पानी मिलता है, वह भी बमुश्किल से 15 से 20 मिनट के लिए. पढ़ें गांव की स्थिति पर अशोक कुमार की ग्राउंड रिपोर्ट.

कई जातियों के लोग रहते हैं एक साथ :

बाघमारा विधानसभा के अंगर्गत हाथूडीह पंचायत के अधीन कुमारडीह गांव धनबाद बोकारो मुख्य सड़क से करीब दो किमी दूर है. इस गांव में 100 से अधिक घर हैं. इनमें ब्राह्मण, घटवाल, धीवर, बाऊरी, जैन, दास और मुसलमान शामिल है. गांव की आबादी करीब पांच हजार है. एक समय इस गांव के इर्द – गिर्द बीसीसीएल की कई भूमिगत खदान थे. लेकिन आज इनमें से एक भी खदान से उत्पादन नहीं होता है. इस गांव की धरती के नीचे से कोयला का पूरा भंडार निकाल लिया गया है, और जो थोड़ा बहुत बचा हुआ कोयला है, वह अभी अवैध कोयला कारोबारियों के निशाने पर है. गांव के आस पास इसके प्रमाण मिल जाते हैं.

खनन का दुष्परिणाम झेल रहा है गांव :

कुमारडीह का पूरा क्षेत्र कोल बियरिंग एरिया के अंतर्गत आता है. भूगर्भ पूरी तरह को खोखला हो चुका है. इस वजह बोरिंग कामयाब नहीं हो पा रही है. गांव के आस पास के अधिकतर चापाकल सूख गये हैं. साथ ही सभी तालाब भी सूख चुके हैं. इसका सीधा असर गांव में मवेशी पालन पर पड़ा है. ग्रामीण अब मवेशी नहीं रखना चाह रहे हैं. खेती भी लगभग बंद हो गया है. क्योंकि सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी है.

दिहाड़ी है आमदनी का जरिया :

ग्रामीण निशित चटर्जी बताते हैं कि खेती-बारी के अभाव में गांव के अधिकतर लोग दिहाड़ी करने को विवश हैं. ग्रामीण मजदूरी के लिए बोकारो व धनबाद आते हैं. एक समय यहां के लोगों की काफी जमीन बीसीसीएल ने खनन के लिए अधिग्रहण कर ली. इस वजह से बड़ी संख्या में लोग बीसीसीएल में काम करते थे. लेकिन इनमें से अब अधिकतर सेवानिवृत्त हो गये हैं. अभी गांव के 10 प्रतिशत युवा ही सरकारी नौकरी में है.

बिजली का होना न होना एक बराबर :

ग्रामीण मानस घोषाल बताते हैं कि उनके गांव में कई दशक पहले बिजली है. लेकिन हाल के वर्षों में इसका होना या न होना एक सामान हो गया है. गांव में हर दिन मुश्किल से छह से सात घंटे ही बिजली रहती है. संपन्न परिवारों के पास इनवर्टर है, लेकिन अधिकतर ग्रामीण अंधेरे में रहने को मजबूर हैं. अगर पर्याप्त बिजली मिले तो थोड़ा बहुत खेती के लिए सिंचाई संभव हो पायेगा. गांव के बेरोजगार युवा उत्पल चटर्जी बताते हैं कि गांव के 90 युवा ग्रेजुएट हैं. इनमें से अधिक नौकरी नहीं मिलने के कारण गांव छोड़ चुके हैं. वह भी ग्रेजुएट हैं और रेलवे में नौकरी हासिल करने की तैयारी कर रहे हैं. इसके अलावा तापस घोषाल, मानस कुमार, असीम कुमार, सपन चटर्जी, उत्पल चटर्जी, सनत चटर्जी आदि ने अपनी समस्या प्रभात खबर को बतायी.

गांव के फर्स्ट टाइम वोटर हैं उत्साहित :

लोकसभा चुनाव को लेकर गांव के फर्स्ट टाइम वोटर काफी उत्साहित हैं. ग्रामीण बताते हैं कि उनके गांव में 90 प्रतिशत लोग मतदान करते हैं. इस बार भी लोकसभा चुनाव में ग्रामीण बढ़-चढ़ कर मतदान करेंगे. गांव के पहली मतदान करने जा रहे युवाओं ने इस बार बढ़चढ़ कर मतदान करने का शपथ भी ली.

कोट

गांव की समस्याओं की सबसे बड़ी वजह बीसीसीएल है. बीसीसीएल ने गांव की धरती को खोखला कर दिया है. इस वजह से यहां के जलस्रोत सूख गये हैं. खेती के साथ मवेशी पालन भी नहीं हो पा रहा है.

– संपद घोषाल, पूर्व मुखिया

रोजगार की तलाश में गांव की बड़ी आबादी आज बाहर रह रही है. पहले बीसीसीएल में काफी लोग नौकरी करते थे. लेकिन अब बीसीसीएल में अब लोगों को नौकरी नहीं मिल रही है. ऐसे में पलायन भी एक समस्या बन कर उभरी है.

-एसपी चटर्जी, ग्रामीण

गांव में पर्याप्त बिजली मिले, तो लोग कुटीर उद्योग भी शुरू कर सकते हैं. लेकिन अभी गांव में बिजली पूरे दिन में छह से सात घंटे के लिए ही होती है. कई बार ग्रामीणों को कई दिनों में तक बिजली का इंतजार करना पड़ता है.

– दुर्गा दास, ग्रामीण

गांव में कई वर्षों से सड़क जर्जर पड़ी है. इसका निर्माण जल्द किया जाना चाहिए. गांव तक सुगम यातायात संभव हो सकेगा. इसके साथ जल निकासी के लिए नाली बनना चाहिए. अभी सड़क पर पानी आ जाता है.

-असीम चटर्जी, ग्रामीण

मैं रेलवे में नौकरी हासिल करने के लिए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं. लेकिन जिस तरह से अभी वैकेंसी का हश्र हो रहा है. यह चिंताजनक है. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए हर वर्ष निश्चित सनय वैकेंसी आये.

– अमित, बेरोजगार युवक

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