लखनऊ: हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) में शादी के लिए कन्यादान की रस्म जरूरी परंपरा नहीं है. एक्ट के अनुसार सिर्फ सप्तपदी ही विवाह संपन्न कराने के लिए जरूरी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आशुतोष यादव की याचिका की सुनवाई करते हुए ये कहा है. याची ने शादी से संबंधित एक आपराधिक मामले में दो गवाहों दोबारा समन जारी करने की प्रार्थना की थी. जब उसकी प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया गया तो, हाईकोर्ट में याचिका डाली गई थी. इस पर कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 का उल्लेख करते हुए साफ किया सप्तपदी को ही अनिवार्य परंपरा माना गया है. कन्यादान हुआ या नहीं, ये प्रासंगिक नहीं है. इसलिए गवाहों को दोबारा समन जारी करना जरूरी नहीं है. इसी के साथ कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया.
क्या है सप्तपदी
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने साफ किया है कि एक हिंदू विवाह तब तक पूरा नहीं माना जाता है, जब तक दूल्हा और दुल्हन संयुक्त रूप से अग्नि के सात फेरे न ले लें. इसे ही सप्तपदी कहा गया है. माना जाता है कि जब दूल्हा दुल्हन सात फेरे लेते हैं तो वो विष्णु और धन की देवी लक्ष्मी से आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं. ये भी माना जाता है कि सप्तपदी के दौरान एक साथ बंधने से सात जन्मों का साथ रहता है. हिंदू मैरिज एक्ट (Hindu Marriage Act) में कुल 38 धाराएं हैं. इसे संसद ने 1955 में पारित किया था.
क्या हैं सात वचन
शादी में सात फेरों के दौरान सात वचन भी लिए जाते हैं. पहला फेरा भोजन व्यवस्था, दूसरा शक्ति आहार और संयम, तीसरा धन, चौथा आत्मिक सुख, पांचवा पशुधन संपदा, छठा ऋतुओं में सही रहन सहन, सातवां व अंतिम फेरा पत्नी पति के साथ जीवन भर चलने का वचन लेती है. फेरों के दौरान चार फेरे कन्या को आगे रखकर और तीन फेरे वर को आगे रखकर होते हैं.