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Lok Sabha Election 2024: साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी ने 5 हजार में जीता था विधानसभा का चुनाव, हाथी पर बैठकर करते थे प्रचार

Lok Sabha Election 2024: गेहूं बड़ा या गुलाब ? हम क्या चाहते हैं- पुष्ट शरीर या तृप्त मानस? या पुष्ट शरीर पर तृप्त मानस? गेहूं हम खाते हैं, गुलाब सूंघते हैं. एक से शरीर की पुष्टि होती है. आप सोच रहे होंगे कि चुनाव के मौसम में गेहूं और गुलाब की बात हम क्यों कर रहे हैं ?

Lok Sabha Election 2024: आपको बता दें कि अपने ललित निबंध ‘गेहूं और गुलाब’ के जरिये पूरी दुनिया से यह सवाल करनेवाले प्रख्यात साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी ने भी अपनी पार्टी बनायी थी. मुजफ्फरपुर के कटरा सीट से विधानसभा का चुनाव भी लड़ा और कांग्रेस उम्मीदवार को हराया था. वह कुशल साहित्यकार, सामाजिक आंदोलनों के अगुवा ही नहीं, समर्पित राजनीतिक कार्यकर्ता भी थे. सच में वह एक सुपर हीरो की तरह थे. विरोधी उम्मीदवार लाखों रुपये खर्च कर रहे हो, तब मात्र पांच हजार रुपये में चुनाव लड़कर जीत जाना, यह कोई सुपर हीरो ही कर सकता है. रामवृक्ष बेनीपुरी ने 1957 में यह कर दिखाया था. डायरी में उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि किस तरह हाथ हाथ फेर पैसा खर्च किया. बेनीपुरी इससे पहले 1952 का चुनाव हार गये थे. उस हार से उन्होंने जो सबक सीखा वह अपनी डायरी में बड़े ही रोचक तरीके से दर्ज भी किया था.

1957 में विधानसभा चुनाव का ऐसा था माहौल

रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपने संकलन (डायरी के पन्ने) में जो लिखा उसे पढ़कर आज भी उस दौर के चुनाव के दृश्य जीवंत हो उठते हैं. चुनावी मैदान में उतरने के बाद उम्मीदवार के मन में किस तरह के सवाल आते हैं, मिजाज किस तरह बनता बिगड़ता है. सब बयां कर दिया है. वह 19 जनवरी, 1957 को लिखते हैं- ‘अब तो चुनाव के चक्रव्यूह में हूं. बिगुल बज गया. फौज ने कूच कर दी. अब आगे पीछे देखने का मौका कहां ! जो होना होगा, होगा. इस बार पिछले अनुभव का लाभ उठाना चाहता हूं. पिछले चुनाव में अपने क्षेत्र में बहुत कम समय दे सका. पार्टी के अन्य उम्मीदवार के लिए अधिक समय दिया. अपने क्षेत्र में जो समय भी दिया, इसमें संगठन का पक्ष का बहुत कमजोर रहा. पटना से जब आता, दो चार दिनों के लिए इधर – उधर दौड़ लेता, लोगों में उत्साह भरता और चल देता. उत्साह में कमी नहीं थी, बल्कि उसकी मात्रा इतना अधिक थी कि मैंने मान लिया था कि इस बार चुनाव जीत गया. लेकिन, मैं हार गया और बुरी तरह हार गया. ” नेता जनता के बीच सादगी के साथ जाने में अपना बड़प्पन समझते थे यह बात भी बेनीपुरी ने अपने संकलन में लिखी है. चुनाव प्रचार का जिक्र करते हुए वह अपनी डायरी में दर्ज करते हैं कि – ‘क्षेत्र में साइकिल, बैलगाड़ी और हाथी से प्रचार करने के दौरान लोगों का उत्साह ही कुछ अलग था. प्रचार के लिए काफिला बैलगाड़ी, हाथी व साइकिल से निकलता था. लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बाराती की तरह लोग उनके पीछे चलते थे. बेदौल के विजय राय ने प्रचार के लिए अपना हाथी दिया था. हाथी पर बैठे-बैठे बदन अकड़ जाता था. ‘

साथियों के साथ बिहार सोशलिस्ट पार्टी बनायी

लेखक पंकज शुक्‍ला ने अपने एक लेख में लिखा है कि बेनीपुरी ने उस वक्त की राजनीति पर बेबाकी से राय रखी. फिर चाहे पं. नेहरू (पंडित जवाहरलाल नेहरू ) की नीतियों की आलोचना की बात हो या साहित्य जगत की गतिविधियों पर टिप्पणी. कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनाने के पहले रामवृक्ष बेनीपुरी ने साथियों के साथ बिहार सोशलिस्ट पार्टी बनायी थी. उन्होंने चुनाव भी लड़ा, हारे और जीते भी. पं. नेहरू की आलोचना की और कई तरह के नुकसान भी उठाये. उन्होंने 1946 में जेपी की जीवनी तब लिख दी थी जब जयप्रकाश नारायण लोकनायक नहीं बने थे. लेकिन, जब आलोचना की बारी आयी, तो उन्होंने जेपी की भी आलोचना की.

प्रभात कुमार (मुख्य संवाददाता प्रभात खबर)

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