समशुल अंसारी, गिरिडीह. महुआ का नाम जेहन में आते ही लोग देशी शराब का स्मरण करते हैं, लेकिन महुआ का पेड़ आदिवासियों व ग्रामीणों के लिए बहुत महत्व रखता है. आदिवासी समाज के लोग महुआ के फल व फूल को ना सिर्फ खाने के लिए बल्कि इसके अन्य गुणों का भी उपयोग करते हैं. आधुनिकता के युग में अब महुआ ना सिर्फ आदिवासी वरन सभी जाति वर्ग के लोगों के लिए उपयोगी साबित होने लगा है. महुआ का फूल मनुष्य के खाने के साथ पशुओं के भोजन में भी उपयोगी है. सीधे तौर पर झारखंड में महुआ झारखंडी किशमिश के नाम से चर्चित है. महुआ एक ऐसा पेड़ है जिसका तना, छाल, फल-फूल व पत्तियों तक का भिन्न-भिन्न रूप में इस्तेमाल होता है. महुआ का वानस्पतिक नाम मधुका लौंगफोलियास, संस्कृत में मधुक गुडपुष्प व अंग्रेजी में बटर ट्री कहा जाता है. महुआ का इस्तेमाल आपातकालीन भोजन के रूप में भी किया जाता है. बसंत ऋतु में महुआ के पत्ते झ़ड़ जाते हैं. फिर इसकी डालियों में नये कोपलों के साथ फूल का खोंच आने लगाता है. महुआ के फूल मीठे व रसीले होते हैं. इसे सुखाकर लोग खाद्य के रूप में इस्तेमाल करते हैं, जबकि पशुओं के लिए इसका उपयोग चारा के रूप में होता है. फूल के बाद महुआ का फल (कौड़ी) आता है.
औषधीय गुणों का भंडार है झारखंडी किशमिश ‘महुआ’
महुआ का नाम जेहन में आते ही लोग देशी शराब का स्मरण करते हैं, लेकिन महुआ का पेड़ आदिवासियों व ग्रामीणों के लिए बहुत महत्व रखता है. आदिवासी समाज के लोग महुआ के फल व फूल को ना सिर्फ खाने के लिए बल्कि इसके अन्य गुणों का भी उपयोग करते हैं.
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