पटना. होली में बिहार आये प्रवासी वोटर किसी भी राजनीतिक दल के उम्मीदवार का खेल बना या बिगाड़ सकते हैं. बिहार की हर लोकसभा सीट पर औसतन एक लाख से अधिक प्रवासी वोटर हैं. यही कारण है कि चुनाव प्रचार के दौरान इन पर उम्मीदवारों की खास नजर है. सभी उम्मीदवार इस कोशिश में लगे हैं कि होली में बिहार आये आये इन प्रवासी वोटरों का मत उनके पक्ष में हो.
एक-एक वोट महत्वपूर्ण
दरअसल सभी राजनीतिक दल यह भली-भांति जान रहे हैं कि इस चुनाव में उनके लिए एक-एक वोट महत्वपूर्ण है. ऐसे में हर लोकसभा क्षेत्र में एक लाख से अधिक प्रवासी मतदाता उनके लिए अचूक हथियार साबित हो सकते हैं. हारी हुई बाजी को ये मतदाता जीत में बदल सकते हैं. इसलिए गांव-गांव जनसम्पर्क अभियान के दौरान ऐसे मतदाताओं को खास तौर पर लुभाने की कोशिश की जा रही है.
प्रवासियों को पक्ष में गोलबंद करने की कोशिश
एक ओर सत्ता पक्ष जहां दूसरे राज्यों में भी मिलने वाली मोदी सरकार की योजनाओं की दुहाई दे रहा है, तो दूसरी ओर विपक्ष यह कह रहा है कि अगर बिहार में ही रोजी-रोजगार मिल जाए, तो बाहर जाने की जरूरत ही क्या है. इस तरह पक्ष- विपक्ष अपने वादों से प्रवासियों को पक्ष में गोलबंद करने की कोशिश में लगा है. वहीं प्रशासन की ओर से जीविका दीदियां घर-घर जाकर प्रवासी मतदाताओं को वोट डालने के लिए गांव आने का संदेश दे रही हैं.
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बिहार की आबादी के 3.5 फीसदी लोग दूसरे प्रदेशों में
आंकड़ों के अनुसार बिहार से बाहर रहकर 45 लाख 78 हजार से अधिक लोग रोजी-रोजगार कर रहे हैं. कुल आबादी का यह 3.50 फीसदी है. पलायन करने वालों में सबसे अधिक सवर्ण समुदाय के लोग हैं. इस समुदाय से 5.68 फीसदी लोग बिहार से बाहर रहकर रोजी-रोजगार कर रहे हैं. पिछड़ा वर्ग एवं अत्यंत पिछड़ा वर्ग की 3.30-3.30 फीसदी आबादी तो अनुसूचित जाति में 2.50 फीसदी, अनुसूचित जनजाति में 2.84 फीसदी एवं अन्य प्रतिवेदित जातियों में 3.22 फीसदी लोग बिहार से बाहर रहकर रोजी-रोजगार कर रहे हैं.