दुर्गापुर.
शहर के विभिन्न इलाकों में धूमधाम से गाजन उत्सव मनाया जा रहा है. यह उत्सव चरक पूजा के बाद समाप्त होगा. शहर के सागरभांगा के गोपीनाथपुर, आराग्राम, नाडिहा ग्राम में इस बार भी सात दिवसीय गाजन उत्सव आयोजित हो रहा है. पांरंपरिक ढंग से मनाये जा रहे उत्सव में गांव के लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और शिवपूजा की. इसके तीसरे दिन भक्तों ने शोभायात्रा निकाली, जो ग्राम के विभिन्न हिस्सों से होकर गुजरी. शोभायात्रा में भक्तों ने कई तरह के हैरतअंगेज करतब दिखा कर लोगों को अचंभित कर दिया. करतब देखने के लिए गांव में भक्तों की भीड़ जुटी थी. गोपीनाथपुर गांव के जौहर चटर्जी ने बताया कि गाजन उत्सव को शिव गाजोन भी कहा जाता है. यह प्राचीन काल से चला आ रहा त्योहार है. यह ज्यादातर पश्चिम बंगाल के कई जिलों में मनाया जाता है. गाजन उत्सव भगवान शिव, नील व धर्मराज देवों के पूजन से जुड़ा है. करीब एक हफ्ते तक चलनेवाला गाजन उत्सव बांग्ला कैलेंडर के चैत्र माह के आखिरी हफ्ते से लेकर बांग्ला नववर्ष पोएला बैसाख तक चलता. उत्सव में भाग लेनेवाले ग्राम के लोग होते हैं, जिन्हें संन्यासी या शिवभक्त के रूप में जाना जाता है. इस उत्सव में किसी भी वर्ग का व्यक्ति शामिल हो सकता है. इस त्योहार का उद्देश्य सृष्टि के संहारक व विलय-चक्र के स्वामी भगवान शिव को प्रसन्न करने को दैहिक दर्द, त्याग का प्रदर्शन करना है. गाजन उत्सव के दौरान भक्त जीभ, होंठ, कान सहित विभिन्न अंगों पर सुइयों, लोहे की छड़ों को छेद कर अथवा अन्य-तरीकों से खुद को पीड़ा देकर भगवान शिव को पूजते हैं. भक्तों की आस्था है कि दर्द व चोट से कराहते भक्त की पूजा पर भगवान शिव सहज ही पसीज कर कृपा करते हैं. भक्त खुद को नंदी व भृंगी (शिव का एक गण) मान कर पागलों जैसे नाचते, चिल्लाते हुए गांव के गली-कूचे में घूमते हैं. गाजन उत्सव पश्चिम बंगाल में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. कुछ गांवों में बच्चे या बड़े भगवान शिव या कृष्ण का रूप धर कर भ्रमण करते हैं. कुछ गांवों मे भक्त भगवान शिव के असल भक्त होने का दिखावा करते हुए नरमुंड (खोपड़ी से खेलते हैं.