मधुबनी. जिले में शनिवार से शुरू हुआ मिथिला का प्रसिद्ध लोकपर्व जूड़शीतल. दो दिन के इस लोकपर्व के पहले दिन लोगों ने अपने पितरों की याद व उनकी संतुष्टि के लिए जलपात्र का दान कर पुण्य के भागी बने. पर्व को लेकर घर के बड़े-बुजुर्गों ने स्नानादि से निवृत्त होकर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ जलपात्र का दान किया. फिर सत्तू व गुर का सेवन कर दिन की शुरुआत की. जिसके कारण इसे सतुआइन का पर्व भी कहा जाता है. दोपहर में लोगों को बरी-पूरी का जमकर आनंद लिया. वहीं रात में शाकाहारी भोजन ग्रहण कर जूड़शील पर्व की परंपरा का निर्वहन किया. पं. कांतिधर झा ने कहा है कि मिथिला में जूड़शीतल पर्व मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. जूड़शीतल पेड़-पौधे से लेकर पशु-पक्षी व मानव को जुड़ाने का पर्व है. 14 अप्रैल को लोग मिट्टी-कादो एक-दूसरे पर डालकर धुरखेल खेलने की परंपरा का निर्वहन करें. फिर आसपास के पेड़-पौधे को जल देकर उन्हें जुड़ाएंगे और बासी भोजन ग्रहण करेंगे. जूड़शीतल पर्व के दूसरे दिन घर में चूल्हा नहीं जलाने की परंपरा भी सदियों से चली आ रही है. उन्होंने कहा है कि जूड़शीतल प्रकृति से जुड़ा पर्व है. इस पर्व का मुख्य उद्देश्य समस्त चराचर को जुड़ाने के रूप में प्रसिद्ध है. जो जूड़शीतल पर्व की महत्ता और उद्देश्य का दर्शाती है. साथ ही किसान इस लोकपर्व को नये अनाज घर आने के स्वागत के रूप में मनाते हैं. घर आये नये अनाज सबसे पहले अपने पितरों को अर्पित करने के बाद ही उसे ग्रहण करते हैं.
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सादगी के साथ शुरू हुआ दो दिवसीय जूड़शीतल का पर्व
जिले में शनिवार से शुरू हुआ मिथिला का प्रसिद्ध लोकपर्व जूड़शीतल. दो दिन के इस लोकपर्व के पहले दिन लोगों ने अपने पितरों की याद व उनकी संतुष्टि के लिए जलपात्र का दान कर पुण्य के भागी बने.
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