अभिनेता मनोज बाजपेयी इन दिनों ज़ी 5 पर स्ट्रीम हो रही फिल्म साइलेंस 2 में एसीपी अविनाश वर्मा की भूमिका को फिर से पर्दे पर साकार करते दिख रहे हैं. मनोज की मानें तो फिर से उसी किरदार में जाना आसान नहीं होता है. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत…
साइलेंस 2 जब आपको ऑफर हुई तो आपका रिएक्शन क्या था ?
मुझे सबसे पहले जी स्टूडियो ने कहा कि हमलोग साइलेंस 2 करना चाहते हैं. मैंने कभी किसी फिल्म का दूसरा पार्ट नहीं किया था, तो हमने तय किया कि हम डेट्स और बाकी चीजों पर तभी बात करेंगे जब स्क्रिप्ट तैयार हो जाएगी. उसके बाद तय करेंगे कि इसको आगे लेकर कैसे बढे, क्योंकि हम चाहते थे कि हम स्क्रिप्ट पर जल्दी ना करें. स्क्रिप्ट बनने में काफी समय लगा. एक से सवा साल गए. अच्छी मर्डर मिस्ट्री लिखना बहुत ही टेढ़ा काम है. एक स्क्रिप्ट्स हाथ में आ गयी तो फिर बाकी बातें तय हुईं.
आप ओटीटी का बड़ा नाम बन चुके हैं क्या कभी लगता है कि मेकर्स की कोशिश उस नाम को भुनाने की कोशिश भी रह सकती है?
ओटीटी प्लेटफार्म इस तरह से तय नहीं करता है खासकर फिल्मों के लिए. साइलेंस 1 को जो बड़ी सफलता मिली थी. जिस तरह से लोगों ने वेलकम किया और रिस्पांस भेजा. सभी अविनाश वर्मा को फिर से देखना चाहते थे. उसके कारण इनलोगों ने निर्णय लिया. कभी इस वजह से नहीं लिया जाता कि ये एक्टर बहुत पॉपुलर हो रहा है. इसके साथ दूसरा भी बना लेते हैं. उनके लिए यह आसान होता अगर वो दूसरी लिखी लिखायी स्क्रिप्ट कर लेते. एक डेढ़ साल लगाकर आप दूसरा पार्ट बना रहे हो इसका मतलब है कि ऑडियंस का जो रिएक्शन आया है उसके कारण और आप जब दूसरा बनाना चाहते हो, तो आप उसको पहले से भी बेहतर बनाना चाहते हो. आप एक अच्छा अनुभव दर्शकों को देना चाहते हो.
आपका क्या प्रोसेस फिर से पुराने किरदार में जाने के लिए होता है ?
आसान नहीं रहता है क्योंकि एक बार फिर से उस किरदार के सारे के सारे एलिमेंट्स को लेकर आना क्योंकि इस बीच आप काफी कुछ कर चुके होते हैं. ऐसे में फिर से पुराना किरदार करना और ये भी देखना कि अविनाश वर्मा में इनदिनों में क्या बदलाव हुए होंगे. उन सबको आपको अपने किरदार में लेकर आना ये एक प्रोसेस होता है, जिसमें जाने में मुझे एक महीना लगता है.
साइलेंस 2 की शूटिंग से पहले साइलेंस 1 को फिर से देखा ?
वो देखना ही पड़ता है. फॅमिली मन का सेकेंड सीजन करने से पहले पहला पूरा देखा, फिर काम करना शुरू किया. अब जब तीसरा होगा, तो हम दूसरा देखेंगे और पहले पार्ट का भी कुछ भाग देखेंगे. उसमें क्या-क्या चीज़ें बदली होंगी. क्या नयी चीज़ें आयी हैं. क्या पुरानी चीज़ें रखनी हैं या नहीं. ये सब देखना होता है.
पुलिस के इर्द गिर्द कहानियां मेकर्स को काफी लुभा रही हैं, आपको इसकी क्या वजह दिखती है?
किसी भी पुलिस स्टेशन में आप बैठ जाओ आपको दस केस पुलिस वाले बताएंगे. दस के दस जो हैं, वो आपको इतने नाटकीय और दिलचस्प लगेंगे. इतना आपको झकझोरेंगे, इतना आपको बांध के रखेंगे कि आप हर दस पर फिल्म बनाना चाहोगे. वेब सीरीज बनाना चाहोगे. यही वजह है कि सभी की पसंद वह बनें है.
एक्टर के तौर पर क्या होमवर्क के लिए आप पुलिस से जुड़े लोगों से मिलते हैं?
मैं सिर्फ होमवर्क करने के लिए कोई चीज करने नहीं जाता हूं, क्योंकि मैं ज़िन्दगी में इतने लोगों से मिल चुका हूं. इतने मेरे दोस्त पुलिस डिपार्टमेंट्स में हैं, तो मिलना-जुलना होता रहता है. वो होमवर्क पहले से ही जिन्दगी ने करवाकर रखा है, तो फिर से आपको देखने की जरूरत नहीं है. जो इसमें नयी चीज़ है वह है फोरेंसिक, तो जो निर्देशक ने रिसर्च किया है. उसके साथ बैठकर इन सारी चीज़ों से वाकिफ होना पड़ता है. ये सब चीज़ें थोड़ी मुश्किल होती हैं क्योंकि ज्यादा टेक्निकल होता है लेकिन आपको करना पड़ता है.
इस फ़िल्म में आपके साथ प्राची देसाई, वकार शेख के अलावा कई युवा कलाकार भी हैं, जो आपके अभिनय के मुरीद हैं ऐसे में शूटिंग में वह नर्वस ना हो इस बात का आप ख़्याल रखते हैं?
मैं सारे एक्टर्स के साथ खाना खाता हूं. उनके साथ बैठता हूं. वो सब मेरे वैन में ही बैठे रहते हैं. मेरे हर फिल्म या वेब सीरीज में यही माहौल रहता है. फॅमिली मैन में भी यही होता है. मेरा मानना है कि आपस में सहज हो जाते हैं, तो हम परफॉर्म बेहतर करते हैं और हम बेस्ट देने की कोशिश करते हैं. ये सबको बताना जरूरी है कि मैं आपके साथ काम कर रहा हूं, तो मैं ना बड़ा हूं ना छोटा हूं. आपके बराबर हूं. हमलोग साथ में काम कर रहे हैं. इससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ता है.
आपके शुरूआती दिनों में किसी बड़े स्टार्स ने कभी आपको सेट पर इस तरह से सहज करवाया था
मनोज वाजपेयी ने कहा, देखिये दो तरीके के लोग होते हैं. एक तो कुछ लोग होते हैं, जो दूर-दूर रहते हैं. ज़्यादा बात नहीं करते हैं. वैसे पहले के वक़्त में सेट का माहौल अलग था. दूसरा सेट ऐसा भी होता था जो आपस में बहुत बातें करता है. एक दूसरे के साथ बहुत मिलते-जुलते हैं जैसे फ़िल्म राजनीति में था या सत्यमेव जयते में था.सेट पर हर तरह के एक्टर होते हैं. कुछ अपने में रहना चाहते हैं. कुछ सभी को साथ में शामिल करना चाहते हैं तो जो जैसा चाहता है. आप उसको उस तरह से स्पेस देते हैं.
शुरुआती दिनों में क्या किसी बड़े स्टार्स के सामने परफॉर्म करते हुए आप नर्वस हुए हैं ?
मुझे कभी इस तरह की नौबत आयी नहीं. जिस तरह का माहौल रहता था उसमें ढल जाते थे, क्योंकि फोकस इसमें रहता था कि आपको बहुत बेहतरीन काम करना है, ताकि आप अपनी उपस्थिति दर्शा सकें.
इंडस्ट्री में आपने तीस साल पूरे कर लिए क्या आपको लगता है था कि इतनी लंबी पारी
किसी एक्टर को नहीं लगता है, जिसने पचास साल गुजार लिए हैं, उसने भी नहीं सोचा होगा. मुझे तो लगा था कि मैं पांच साल भी गुजार लूं तो बहुत है. यहां तो तीस साल हो गए हैं. मैं ऊपर वाले को धन्यवाद कहूंगा और खुद को भाग्यशाली मानूंगा क्योंकि मेरी जर्नी चमत्कार से कम नहीं है. कहां 18 साल का लड़का जिसने अपने घर बार को छोड़ा था. दिल्ली आकर थिएटर किया ग्रेजुएशन किया. बिना किसी के सहारे मैं मुंबई आया और मुंबई आने के बाद तीस साल हो गए और आज भी काम कर रहा हूं. आज भी सामायिक हूं. अच्छा काम रहा हूं. वाकई खुशकिस्मत हूं.