हुसैनाबाद.
गजानन माता धाम परिसर में चैत्र नवमी से पूजा करने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरु हो गया है. झारखंड-बिहार सीमा पर कररबार नदी तट स्थित इस मंदिर परिसर में चैत्र नवमी से चैत्र पूर्णिमा तक वार्षिक मेला लगता है. चैत्र पूर्णिमा के दिन हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं. इसके अलावा यहां प्रत्येक माह की पूर्णिमा, आद्रा नक्षत्र, शारदीय नवरात्र, सावित्री वट पूजा, राम जानकी विवाह महोत्सव, लगन के समय काफी भीड़ लगती है. यहां समीपवर्ती झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, यूपी आदि राज्यों से श्रद्धालुओं का आना-जाना होता है. मंदिर परिसर में भगवान भास्कर, शंकर भगवान का अलग-अलग मंदिर है. लेकिन मुख्य मंदिर ने किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं है. यहां निराकार देवी शक्ति की पूजा होती है. धाम के प्रधान पुजारी जगरनाथ पाठक ने बताया कि ब्रह्मा पुराण में उल्लेख है कि देवासुर संग्राम में राक्षसों ने त्राहिमाम मचा रखा था. ब्रह्मा के निर्देश पर भगवती ललिता देवी भगवान शंकर के पास संवाद लेकर गयीं. तब भगवान शंकर हाथी की शरीर मुद्रा में तपस्या में लीन थे. भगवती ललिता देवी भी उनके बगल में तपस्या में बैठ गयीं. फलस्वरूप देवी का कमर का ऊपरी भाग हाथी यानि गजानन का बन गया. जिसके कारण इस धाम का नाम गजानन पड़ा. माता मंदिर में मुख्य रूप से पूड़ी व गुड़ का प्रसाद चढ़ता है. एक कड़ाही प्रसाद में 100 ग्राम घी में सवा सेर गेहूं का पूड़ी बनता है.