श्रीराम कथा के समापन पर मंत्री मिथिलेश ठाकुर हुए शामिल गढ़वा. शहर के नरगिर आश्रम में आयोजित श्रीराम कथा यज्ञ के समापन के मौके पर सुंदरकांड, लंकाकांड और उतरकांड में वर्णित विभिन्न प्रसंगों का सारगर्भित विवेचन सन्त प्रपन्नाचार्य के द्वारा किया गया. इस अवसर पर श्रीराम राज्याभिषेक की जीवंत झांकी निकली गयी. मौके पर राज्य के मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने भगवान राम का राजतिलक किया तथा आरती उतारी. अंतिम दिन प्रपन्नाचार्य ने कहा कि वन गमन के दौरान भगवान श्रीराम ने कई ऋषि मुनियों के दर्शन किए तथा उनका उद्धार भी किया. भारद्वाज जी ने उन्हें वन मे जाने का मार्ग, वाल्मिकीजी ने रहने का स्थान तथा अगस्त मुनि ने राक्षसों के संहार के लिए विविध दिव्यास्त्र दिये. एक ऋषि जो दक्षिण भारत में रहते थे वह वनवास के समय श्रीराम दर्शनार्थ ऋषि सर्वभंग के आश्रम पर गये. यह समाचार पाकर उन्होंने इन्द्र के साथ ब्रह्मलोक न जाकर, राम दर्शन को ही उत्तम समझा और श्रीराम के सामने ही योगाग्नि से अपने शरीर को भस्म कर दिव्य धाम को गये थे. उन्होंने कहा कि सुतीक्ष्ण अगस्त्य मुनि के शिष्य थे. एक दिन सुतीक्ष्ण मुनि ने सुना कि श्रीराम उनके आश्रम की ओर आ रहे हैं तो उनका उत्साह बढ़ गया.आगे प्रपन्नाचार्य जी ने कहा कि शबरी भील समाज से थी. भील समाज में किसी भी शुभ अवसर पर पशुओं की बलि दी जाती थी, लेकिन शबरी को पशु-पक्षियों से बहुत स्नेह हुआ करता था. इसलिए पशुओं को बलि से बचाने के लिए शबरी ने विवाह नहीं किया और ऋषि मतंग की शिष्या बन गई. और ऋषि मतंग से धर्म और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया.श्री राम ने शबरी को भक्ति के नौ प्रकार बताये. रावण और कुंभकर्ण जो पूर्व मे जय विजय थे उन्हे शाप से शीघ्र मुक्त होने के लिए कहा गया कि भगवान विष्णु से वैर मोल ले लो. लंका विजय के बाद भगवान राम ने आदरपूर्वक वह राज्य रावण के भाई विभीषण को लौटाकर उदारता का परिचय दिया.मौके पर आयोजक चंदन जायसवाल, दवारिकानाथ पाण्डेय,अमित पाठक,सुखबीर पाल, अवधेश कुशवाहा,दिलीप कुमार पाठक, राजन पाण्डेय,मनीष कमलापुरी,नीतेश कुमार गुड्डू, अरुण दुबे, अमरेन्द्र मिश्रा, बृजेश, धनंजय पाण्डेय,संजय अग्रहरि,दिनानाथ बघेल,,जयशंकर राम,बिकास ठाकुर,शान्तनु केशरी, श्रीपति पाण्डेय,रंजित कुमार,कृष केशरी,राजा बघेल,पीयूष कुमार,गौतम शर्मा,शुभम कुमार,गोलु बघेल,सुदर्शन मेहता,अनिकेत गुप्ता,दुर्गा रंजन,हिमांशु रामू आदि उपस्थित थे.
श्रीराम कथा कभी समाप्त नहीं होती, विराम लेती है : प्रपन्नाचार्य
श्रीराम कथा यज्ञ के समापन के मौके पर सुंदरकांड, लंकाकांड और उतरकांड में वर्णित विभिन्न प्रसंगों का सारगर्भित विवेचन सन्त प्रपन्नाचार्य के द्वारा किया गया.
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