हाजीपुर. आज महावीर जयंती है. वैशाली जनपद के लोगों के लिए गौरव का दिन. इस अवसर पर हर साल धूमधाम से आयोजित होने वाला वैशाली महोत्सव इस बार लोकसभा चुनाव की भेंट चढ़ गया है. सरकारी तौर पर आयोजित होने वाले तीन दिवसीय महोत्सव में जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर की कला हस्तियां अपने फन का जलवा बिखेरती रही है. इस बार यह सब यादों में ही रह जायेगा. गणतंत्र की जननी वैशाली अपने ऐतिहासिक महत्व के कारण विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है. वैशाली की महत्ता को रेखांकित करते हुए बज्जिका नाटककार अखौरी चंद्रशेखर कहते हैं कि यहां के बज्जिसंघ की शासन प्रणाली गणतंत्रात्मक थी और यह दुनिया का प्रथम गणराज्य था. आगे चलकर यही गणतांत्रिक शासन-व्यवस्था भारत और विश्व स्तर पर अनेक देशों में प्रचलित हुआ. वैशाली तीर्थंकर महावीर की जन्मभूमि और महात्मा बुद्ध की कर्मभूमि के रुप में विख्यात है. बज्जिकांचल की मातृभाषा बज्जिका की जन्मस्थली वैशाली ही है. अप्रतिम सुंदरी आम्रपाली वैशाली की नगरवधू और राजनर्तकी थी, जिसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर बौद्ध भिक्षुणी बन गयी. वैशाली के उत्खनन से इसके राजकीय वैभव का पता चलता है.
वैशाली के ऐतिहासिक महत्व से प्रभावित होकर तत्कालीन हाजीपुर अनुमंडल पदाधिकारी जगदीशचंद्र माथुर ने 1945 में वैशाली महोत्सव का शुभारंभ किया था. तीन वर्षों तक यह महोत्सव विभिन्न तिथियों पर आयोजित हुआ. 1948 से वैशाली महोत्सव तीर्थंकर महावीर के जन्मदिन पर आयोजित होने लगा. यह सिलसिला आज तक कायम है. शुरु के दिनों में इस महोत्सव का उद्घाटन राष्ट्रीय स्तर के बड़े राजनीतिज्ञ तथा किसी खास विधा के ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों द्वारा होता था. अनेक लेखकों और कवियों ने वैशाली की गौरवपूर्ण महिमा का वर्णन किया है. कवि महावीर प्रसाद शर्मा विप्लव का बज्जिका भाषा में लिखा हुआ महाकाव्य तीर्थंकर महावीर का प्रकाशन राष्ट्रीय बज्जिका भाषा परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष रामनरेश शर्मा के प्रयास से कवि के मरणोपरांत हुआ है. इस महाकाव्य में वैशाली के प्राचीन वैभव का वृहत वर्णन है.