समस्तीपुर : तेज धूप व लू का मानव के साथ-साथ पशुओं पर दु:ष्प्रभाव पड़ता है. भीषण गर्मी को देखते हुये पशुपालन विभाग के निदेशक ने जिला पशुपालन पदाधिकारी को पशुओं को भीषण गर्मी व लू से बचाव को लेकर जरूरी उपाय करने का निर्देश दिया है. कहा है भीषण गर्मी व लू की स्थिति बनती जा रही है. ऐसी स्थिति में पशुधन के प्रभावित होने और उनकी क्षति से इंकार नहीं किया जा सकता है. उन्होंने जिला पशुपालन पदाधिकारी को ग्रीष्मकाल में पशुओं में होने वाले बीमारियों से बचाव के लिये ठोस रणनीति के तहत रोग निरोधक उपाय व प्राथमिक उपचार की व्यवस्था करने को कहा है. सरकारी ट्यूबेल के समीप और अन्य सुविधायुक्त जगहों पर गड्ढ़ा खुदवाकर उसमें पानी एकत्र करने की व्यवस्था करने को कहा है. पशुओं के बीमार पर उनके उपचार के लिये चिकित्सा दल की व्यवस्था करने का निर्देश दिया है. जिला स्तर पर और प्रखंड स्तर पर नोडल पदाधिकारी नामित करने को कहा है.पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग को सरकारी टयूबेल के समीप या अन्य सुविधायुक्त जगहों पर गड्ढ़ा खुदवाकर पानी एकत्र करना है, किसान पशुओं को धूप और लू में नहीं छोड़े. उन्हें लू से बचाने के लिये हवादार पशुगृह या पेड़ की छांव में रखें,जहां सूर्य की सीधी किरणें पशु पर नहीं पड़े.पशुगृह को ठंडा रखें.जरूरत होने पर पंखा का उपयोग करें. भैंस को दिन में दो तीन बार स्नान कराना चाहिये.विशेषज्ञ बताते हैं कि पशुओं को लू लगने के बाद उसके शरीर का 106 से 108 डिग्री फॉरेनहाइट तक चला जाता है. खाना-पीना छोड़ देता है, सुस्त दिखाई देता है. जीभ मुंह से निकलती है, सांस लेने में कठिनाई होती है.मुंह के आसपास झाग आ जाता है.लू लगने पर आंख व नाक लाल हो जाते हैं. पशु की नाक से खून भी आने लगता है.इसके साथ उसके ह्रदय की धड़कन तेज हो जाती है. श्वास कमजोर होने लगता और पशु चक्कर खाकर गिर जाते हैं.बेहोशी हालत में पशु मर भी जाते हैं.इधर गर्मी को देखते हुये डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक डॉ. ए सत्तार ने किसानों को सलाह दिया है कि दुधारू पशुओं को सूखा चारा की मात्रा कम दें. इसकी जगह दुधारू पशुओं को अधिक मात्रा में दाना दें. दाना में तिलहन अनाज का प्रयोग करें.चारा दाना सुबह 5 बजे और शाम में धूप खत्म होने के बाद ही दें.साफ व ठंडा पानी हर समय दें. प्रत्येक व्यस्क पशु को 50 ग्राम खनिज, विटामिन मिश्रण और 50 ग्राम नमक दें. किलनी और अठगोढ़वा के नियंत्रण के के लिये फ्लूमेथ्रीन इप्रीनोमेक्टीन या अमितराज दवाओं का प्रयोग करें.