रांची. अविभाजित बिहार का स्वर्णिम इतिहास रहा है. इसके बावजूद न तो तत्कालीन और न ही वर्तमान सरकार ने इतिहास पर काम किया. विवि भी इतिहासकार तैयार नहीं कर पा रहे. इस बीच इतिहास में रुचि रखने वाले व्यक्ति जब लेखनी करते हैं, तो अतीत के कई तथ्य उभरकर सामने आते हैं. समाज की समृद्धि के लिए इतिहास को सामने लाने और उससे भविष्य के लिए सीख लेने की जरूरत है. उक्त बातें राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने कही. उन्होंने शनिवार को द रांची प्रेस क्लब में लेखक बसंत हेतमसरिया की पुस्तक ”1940 : विश्व युद्ध और बदलते अलगाव के साये में स्वतंत्रता आंदोलन” का लोकार्पण किया. उन्होंने कहा कि 240 पन्ने की इस पुस्तक में समाहित 15 अध्यायों में 1940 में हुई बड़ी घटनाओं और तत्कालीन बिहार के रामगढ़ जैसे छोटे शहर की कहानी लिखी गयी है. झारखंड के एक छोटे कस्बे रामगढ़ को कैसे 53वें कांग्रेस अधिवेशन के लिए चुना गया, भारत छोड़ो आंदोलन की रूपरेखा, कांग्रेस अधिवेशन के समानांतर समझौता विरोधी सम्मेलन, मौजूदा राष्ट्रीय व वैश्विक परिस्थिति और झारखंड से राम नारायण सिंह और जयपाल सिंह मुंडा जैसे व्यक्तित्व का इन आंदोलन में योगदान पर शोध परक विमर्श मिलता है. आज जहां शॉर्ट टर्म सक्सेस पर आधारित पुस्तकों की मांग बढ़ी है, इस बीच इतिहास से जुड़ी पुस्तक का सामने आना अनुभव से भविष्य गढ़ने का संदेश दे रही है. कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव ने की. उन्होंने विश्व युद्ध के कारण और इसके वैश्विक प्रभाव से सीख लेने की बात कही. रांची विवि के सहायक अध्यापक डॉ कंजीव लोचन ने कहा कि क्षेत्रीय इतिहास लेखन में काई जम गयी है. इस दिशा में इतिहासकारों को सहयोगात्मक भूमिका अदा करनी होगी. वहीं, डॉ मिथिलेश कुमार सिंह ने 1940 के दशक में हुई घटनाओं पर प्रकाश डाला. लेखन बसंत हेतमसरिया ने बताया कि पुस्तक लेखन का सिलसिला कोरोना काल में शुरू हुआ. इसमें द्वितीय विश्वयुद्ध, कांग्रेस अधिवेशन, समझौता विरोधी सम्मेलन और इसके ठीक तीन दिन बाद मुस्लिम लीग के सम्मेलन में लाहौर प्रस्ताव का सामने आना और देश में स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की गयी है. मौके पर चेंबर अध्यक्ष किशोर मंत्री, श्री प्रकाश, पंकज मित्र आदि मौजूद थे.
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1940 : विश्व युद्ध और बदलते अलगाव के साये में स्वतंत्रता आंदोलन” का लोकार्पण किया.
द रांची प्रेस क्लब में लेखक बसंत हेतमसरिया की पुस्तक '1940 : विश्व युद्ध और बदलते अलगाव के साये में स्वतंत्रता आंदोलन' का लोकार्पण हुआ.
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