गया. शहर के सफाई व्यवस्था को हाइटेक करने के नाम पर लाखों रुपये के संसाधन खरीदने में नगर निगम में किसी तरह की देर नहीं की जाती है. संसाधन खरीद के बाद उसके उपयोग पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है. नगर निगम में छह वर्ष पहले शहर की सड़काें की बेहतर सफाई के लिए स्वीपिंग मशीन की खरीद की गयी. लेकिन, इसका संचालन ढंग से नहीं हो सका. एक भी मजदूर की कमी सफाई में नहीं हो सकी. इसके बाद भी छोटा स्वीपिंग मशीन खरीद करने का निर्णय ले लिया गया. चार वर्ष पहले लाखों रुपये में उसकी खरीद कर ली गयी. सप्लायर एजेंसी छोटा स्वीपिंग मशीन का डेमो दिखा कर पैसा ले गयी. उसके बाद एक भी दिन मशीन को सड़कों की सफाई में नहीं लगाया जा सका. इतना ही नहीं निगम में एक दशक पहले नालियों व नालों के सफाई के लिए नाला मैन की खरीद लाखों रुपये में की गयी. इसका भी उपयोग नालों की सफाई में एक दिन भी नहीं किया जा सका है. यही नहीं कई तरह की गाड़ियों खरीद के बाद उसका सही इस्तेमाल नहीं होता है. इस सूची में फॉगर मशीन भी है, जिसका हाल यह है कि रेग्यूलर उसका उपयोग भी लोगों की सुविधा के लिए नहीं किया जाता है. डोर-टू-डोर कचरा उठाव के लिए मंगवाया गये ठेले में करीब 25 सड़ गया. वार्डों में दिक्कत होने के बावजूद उसे नहीं भेजा गया. इधर, निगम सूत्रों का कहना है कि निगम में सामग्रियों की खरीद पर अधिक ध्यान दिया जाता है, लेकिन उसके इस्तेमाल पर उदासीनता के चलते यह स्थिति आ गयी है. क्या कहते हैं अधिकारी बड़ा स्वीपिंग मशीन चलाने की जिम्मेदारी एक एजेंसी को दी गयी थी. इसका कांट्रेक्ट खत्म हो गया है. इसके चलते मशीन को अब नहीं चलाया जा रहा है. छोटा स्वीपिंग मशीन एक दिन डेमो दिखाने के बाद चार वर्ष से खड़ा है. इसे बनाने के लिए सप्लायर एजेंसी को फोन किया गया. लेकिन, कोई जवाब नहीं दिया है. नाला मैन नहीं चल सका है. सभी को चलाने का प्रयास किया जाता है. शैलेंद्र कुमार सिन्हा, सफाई के नोडल अधिकारी
मशीनों की खरीद पर खर्च हुए लाखों, पर कोई इस्तेमाल नहीं
एक भी मजदूर की कमी सफाई में नहीं हो सकी.
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