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शहर में बिना अनुमति के अंधाधुंध हो रही बोरिंग, जलस्तर गया नीचे

ज्य सरकार द्वारा शहरों में होने वाली अंधाधुंध बोरिंग पर कड़ाई करने के अलावा बोरिंग की मैपिंग करने और नहीं कराने पर आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है. लेकिन, सरकार के इतने कवायदों के बावजूद भभुआ शहर में बिना अनुमति के ही अंधाधुंध बोरिंग करायी जा रही हैं,

भभुआ सदर. राज्य सरकार द्वारा शहरों में होने वाली अंधाधुंध बोरिंग पर कड़ाई करने के अलावा बोरिंग की मैपिंग करने और नहीं कराने पर आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है. लेकिन, सरकार के इतने कवायदों के बावजूद भभुआ शहर में बिना अनुमति के ही अंधाधुंध बोरिंग करायी जा रही हैं, जिसके चलते अभी गर्मी परवान पर भी नहीं चढ़ी कि जलस्तर नीचे जाने लगा है. इस मामले में किसी भी जनप्रतिनिधि व अधिकारी के रुचि नहीं लेने से पट रहे जलाशय, सिकुड़ रहे तालों व बढ़ रही आबादी के बीच प्राकृतिक जल का संरक्षण नहीं हो पा रहा है. लेकिन, यह हाल तब है जब केंद्र से लेकर प्रदेश सरकार तक प्राकृतिक जल संरक्षण व जल संवर्द्धन पर बल दे रही हैं. केंद्र सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत जल संरक्षण पर बल दिया गया है. बिहार सरकार सिंचाई समृद्धि, जल ग्रहण क्षेत्र प्रबंधन, जल संचयन व जल संवर्धन के बाबत विशेष कार्य कराये जाने का भी निर्देश दिया गया है. मनरेगा के मुख्य उद्देश्यों में जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन, जल संचयन व जल संवर्धन भी समाहित है. मनरेगा के तहत लगभग प्रत्येक जगह पोखरे तो खोदे गये हैं, पर इन्हें पानी से भरने का फरमान बेमानी साबित हो रहा है. पूर्व में प्रत्येक शहर में एक बड़ा पोखरा ऐसा अवश्य होता था, जिसका जल कभी नहीं सूखता था चाहे लाख गर्मी हो या सूखा पड़े. जबकि, अब हाल यह है कि आबादी के निकट स्थित पोखरों पर अतिक्रमण की होड़ है, तो आबादी से दूर पोखरों को खेतों में मिलाया जा रहा है. = कहीं-कहीं 120 फुट पर भी नहीं मिलता पानी भभुआ शहर में जलस्तर का काफी उतार चढ़ाव है, इसी लिये कहीं-कहीं तो महज 30-35 फुट पर ही पानी निकल जाता है, तो कहीं 120 फुट पर भी पानी नहीं मिलता है. विभागीय जानकारी के अनुसार, पेयजल आमजन को आसानी से उपलब्ध कराने के लिए भभुआ शहर में ही आज अनुमानित हिसाब से लगभग 40 लीटर जल की आवश्यकता प्रति व्यक्ति होती है. विभागीय दावों को मानें तो 250 व्यक्ति पर एक चापाकल काफी है. जबकि, भभुआ की जनसंख्या जनगणना 2001 के अनुसार एक लाख के आसपास है. वहीं, शहर में होल्डिंग की संख्या लगभग 8500 है. पूर्व अभियंता रमेश प्रसाद सिंह के अनुसार, शहर के दक्षिणी भाग विशेषकर वार्ड संख्या 14, 15, 19, 23, 25 के शहरी इलाकों में हर साल गर्मी में जलस्तर काफी तेजी से नीचे चला जाता है. जबकि, वार्ड संख्या एक से लेकर छह तक में काफी सबमर्सिबल लगे हुए है, लेकिन इन वार्डों में पानी का लेयर इस बार ज्यादा है. = बड़े पैमाने पर शहर में भूजल का हो रहा दोहन दरअसल, शहर में भूजल का व्यावसायिक दोहन तेजी से हो रहा है. जरूरत से ज्यादा पानी जमीन से निकाल कर बर्बाद किया जा रहा है. बोतलबंद पानी के कारोबारी हों या वाहन सर्विसिंग सेंटर चलाने वाले, ये सभी काफी मात्रा में पानी बर्बादी करते हैं, उसकी तुलना में भूजल रिचार्ज की कोई व्यवस्था नहीं है, इसके जो प्राकृतिक स्रोत यानी कुआं, तालाब व पोखर थे, वे भी दिन-प्रतिदिन खत्म होते जा रहे हैं. = जरूरी है अनधिकृत बोरिंग पर रोक – आनेवाले समय को देखते हुए जल संरक्षण की काफी जरूरत है, लोगों को भी चाहिए कि वह अपने आसपास जल संचयन को लेकर लोगों को जागरूक करें. –अविनाश कुमार – सरकार ने जो भी निर्णय लिया है वह स्वागत योग्य है. क्योंकि, भूजल दोहन से हर साल पानी की कमी हो जाती है. शहर में फिलहाल बोरिंग कराने के लिए कोई अनुमति लेना जरूरी नहीं समझता है. –पंकज श्रीवास्तव – हमारे मुहल्ले और इसके आसपास जितने भी मकान बने हैं, सभी मकानों में बोरिंग करायी गयी है, लेकिन जल संरक्षण की कहीं कोई व्यवस्था नहीं की गयी है, जिसके चलते बोरिंग से निकला पानी बहकर नालियों के रास्ते बर्बाद होता है. इसे लेकर लोगों में जागरूकता जरूरी है. –नारायण सिंह

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