बिपिन सिंह, रांची : सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार को राज्य के खननवाले इलाकों में प्रदूषण पर वैज्ञानिक अध्ययन करने का आदेश दिया है. यह आदेश केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपार्ट मिलने के बाद दिया गया है. राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग और श्रम नियोजन व प्रशिक्षण विभाग अध्ययन कर अलग-अलग रिपोर्ट तैयार करेंगे. राज्य के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की ओर से विशेष सचिव राजू रंजन राय ने दोनों विभागों के सचिवों को पत्र लिखा है. अब दोनों विभाग अत्यधिक खनन वाले इलाकों और पत्थर तोड़ने वाली इकाइयों (क्रशर) से होने वाले प्रदूषण का अध्ययन करेंगे. उन्हें दो सप्ताह का वक्त दिया गया है. बीमारियों का डेटा संग्रह के साथ राहत व मुआवजा की रिपोर्ट बनेगी : स्वास्थ्य विभाग झारखंड के खनन बहुल क्षेत्रों में उड़ने वाले डस्ट से लोगों के अंदर सिलिकोसिस सहित इस जैसी होनेवाली बीमारियों का नया वैज्ञानिक डेटा तैयार करेगा. वहीं, श्रम नियोजन और प्रशिक्षण विभाग इन बीमारियों से मरने वाले लोगों को राहत और मुआवजा संबंधी रिपोर्ट तैयार करेगा. सुप्रीम कोर्ट में सीपीसीबी ने कहा है कि पत्थर तोड़ने वाली इकाइयों से होनेवाले प्रदूषण पर डेटा जुटाने के लिए वैज्ञानिक अध्ययन किये जायें.
सुप्रीम कोर्ट के टॉप टेन केस में शामिल है मामला
इस मामले में 19 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में पीपल राइट्स एंड सोशल रिसर्च सेंटर एंड अदर्स की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई हुई थी. 30 अप्रैल को मामला सुप्रीम कोर्ट में देश के टॉप टेन केस के अंदर सूचीबद्ध है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस वाद में स्टेटस रिपोर्ट दायर करने के लिए अब आगे कोई समय नहीं दिया जायेगा. ज्ञात हो कि पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार पर आयोग की पहली कोर सलाहकार समूह की बैठक में भी झारखंड में बिगड़ते पर्यावरण पर गंभीर चिंता जतायी गयी थी. .
2017 में ही पेश की गयी है रिपोर्ट
सीपीसीबी ने राज्य में काम कर रही प्रदूषणकारी इकाइयों के निरीक्षण के बाद 24 जुलाई 2017 को शपथ पत्र के साथ अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट अदालत में पेश की थी. रिपोर्ट में खराब तस्वीर सामने आयी थी. पत्थर खनन, उत्पादन और ढुलाई वाले इलाकों में बड़ी तादाद में मजदूर सामान्य से लेकर गंभीर सिलिकोसिस और क्रोनिक फाइब्रोसिस के शिकार हैं.
झारखंड ने नहीं सौंपी रिपोर्ट, अब आखिरी मौका
इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर की गयी थी. 12 अप्रैल 2019 को हुई सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सीपीसीबी की रिपोर्ट पर राज्य सरकार को स्टेटस रिपोर्ट दायर करने के लिए अनुरोध किया गया था, जो अभी तक नहीं सौंपा गया है. इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के अंदर साल 2019 से लेकर अप्रैल 2024 को अलग-अलग सुनवाई और संबंधित आदेश पारित किया गया है.
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