प्रकाश कुमार, समस्तीपुर : जिले के अधिकांश विद्यालयों में बाल संसद का गठन तो कर दिया गया लेकिन उनके अधिकार और कर्तव्य की जानकारी नहीं दी गयी. कुछ विद्यालय ऐसे भी है जहां बाल संसद गठन के नाम पर कागजी खानापूर्ति की गयी. सच यही है कि कुछेक विद्यालय को छोड़ कर अधिकांश में बाल संसद सक्रिय नहीं है. जिला शिक्षा विभाग के अधिकारी भी दबी जुबान से इस बात को स्वीकार कर रहे हैं. विद्यालय निरीक्षण के दौरान बाल संसद से संबंधित गतिविधियों की जानकारी भी नहीं ली जाती है. बताते चलें कि छात्रों में जीवन कौशल का विकास करने, नेतृत्व एवं निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने, विद्यालय गतिविधियों एवं प्रबंधन में भागीदारी सुनिश्चित करने, विद्यालय को आनंददायी, सुरक्षित और साफ-सुथरा रखने के लिए बाल संसद का गठन किया जाता है. बाल संसद विद्यालय बच्चों का एक ऐसा मंच है, जहां वे अपने विद्यालय, समाज, परिवार, स्वास्थ्य-शिक्षा और अपने अधिकारों की बात खुलकर कर सकते हैं. लेकिन अधिकांश विद्यालय प्रशासन इस ओर सजग नहीं है. उत्क्रमित मध्य विद्यालय लगुनियां सूर्यकण्ठ के एचएम सौरभ कुमार ने बताया कि विद्यालय प्रधानों द्वारा अगर इस कार्यक्रम का सही क्रियान्वयन हो तो तस्वीर बदल सकती है. बाल संसद बच्चों को समाज के प्रति जिम्मेदार बनाने के साथ-साथ नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता जगता है. शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के तहत बच्चों की निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा संशोधित नियमावली 2013 के तहत गठित विद्यालय शिक्षा समिति में बाल संसद के सदस्यों को प्रतिनिधि के रूप में नामित करने का प्रावधान है. बाल संसद का स्वरूप 15 सदस्यीय होगा. इसमें प्रधानमंत्री व उप प्रधानमंत्री के अलावा पांच मंत्री व पांच उप मंत्री होंगे. प्राथमिक विद्यालय के ऊपरी कक्षा के बच्चे बाल संसद के मंत्रिमंडल में शामिल होंगे. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में 15 दिनों में कैबिनेट की बैठक होगी. यह सारा प्रावधान समझें, सीखें गुणवत्ता शिक्षा कार्यक्रम तहत किया गया है. विद्यालय के एक शिक्षक बाल संसद के संयोजक होंगे. प्रधानमंत्री व उप प्रधानमंत्री का कार्यकाल एक वर्ष का होगा. चयन में एक लड़की का होना अनिवार्य है. शिक्षा मंत्री व उप शिक्षा मंत्री के पद पर किसी छात्रा का चयन होगा. इसके बाद मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य व स्वच्छता मंत्री, जल व कृषि मंत्री, पुस्तकालय व विज्ञान मंत्री व संस्कृति व खेल मंत्री पद पर चयन होगा. एचएम से विद्यालय की आवश्यकताओं को पूरा करने, गांव-टोले के छह से 14 आयु वर्ग के बच्चों की सूची तैयार करने, विद्यालय में पठन-पाठन प्रारंभ से पहले चेतना सत्र का संचालन करने, बच्चों को नित्य दिन विद्यालय आने के लिए प्रेरित करने, विद्यालय व वर्ग कक्षा की सफाई करने व करवाना, मिड डे मील वितरण में सहायता करने, विद्यालय में पेड़ पौधे व बागवानी को बढ़ावा देना है. शहर के उत्क्रमित मध्य विद्यालय लगुनियां सूर्यकण्ठ में बच्चे सिर्फ पढ़ाई ही नहीं करते, बल्कि अपनी बाल संसद के जरिए विद्यालय को और बेहतर करने का भी प्रयास करते हैं. यही कारण है कि रूबी जब अपने ननिहाल कोरबद्धा गांव अपने नानी के घर आई तो उन्हें यह विद्यालय इतना पसंद आया कि आगे पढ़ने के लिए इसी स्कूल में दाखिला ले लिया. स्वच्छ वातावरण और बेहतर पढ़ाई का माहौल बच्चों को विद्यालय आने पर मजबूर करता है. इस विद्यालय में सीसीटीवी कैमरे से लेकर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोजेक्टर तक के सभी इंतजाम हैं. रुबी बताती है, “हम जब नानी के घर आये थे तब यह स्कूल देखा था और बहुत अच्छा लगा था. बाल संसद में कोई बच्चा प्रधानमंत्री था, तो कोई उप प्रधानमंत्री, और हमें बाल संसद बहुत अच्छी लगी. तब हमने पापा से बोला हम इसी स्कूल में पढ़ेंगे, तब पापा ने भी मेरा एडमिशन यहां करवा दिया. अब हम यहां पढ़ाई कर रहे हैं. ” बाल संसद में प्रधानमंत्री और उप प्रधानमंत्री के साथ स्वास्थ्य एवं सफाई मंत्री, पुस्तकालय मंत्री जैसे कई पद बच्चों को बांटे गये हैं. अपने पद के हिसाब से बच्चे काम करते हैं. बाल संसद के प्रधानमंत्री साहिल कुमार बताते हैं, “बाल संसद की बैठक होती है. इस बैठक में हम विद्यालय को और कैसे बेहतर बनाये इस पर बात करते हैं. विद्यालय में आगे होने वाली गतिविधियों की बात की जाती है इसके अलावा आगे होने वाले कार्यों की समीक्षा की जाती है. ” डीईओ, कामेश्वर प्रसाद गुप्ता ने बताया कि “सभी विद्यालय को बाल संसद का पुनर्गठन करना है. इसके माध्यम से सशक्त सुशिक्षित समाज निर्माण के लिए बच्चे अपने विद्यालय, समाज, परिवार, स्वास्थ्य, शिक्षा, कला, संस्कृति के अलावा अपने अधिकारों पर खुल कर बात कर सकेंगे. पुनर्गठन कर बाल संसद को सक्रिय नहीं करने पर कार्रवाई होगी.
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