झारखंड हाइकोर्ट ने एमपी-एमएलए के खिलाफ दर्ज लंबित मामलों के स्पीडी ट्रायल को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई की. एक्टिंग चीफ जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस नवनीत कुमार की खंडपीठ ने इस दाैरान कहा कि चार अप्रैल के आदेश के अनुपालन में सीबीआइ की ओर से दिये गये शपथ पत्र में एमपी-एमएलए के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की लंबितता के कारणों के संबध में पर्याप्त औचित्य का अभाव था.
सीबीआई से जताई नाराजगी
लंबित मामलों को शीघ्रता से निपटाने के लिए सीबीआइ द्वारा उठाये गये कदमों पर खंडपीठ ने नाराजगी जतायी. कहा कि ट्रायल में विलंब के लिए सीबीआइ का स्पष्टीकरण अपर्याप्त है. खंडपीठ ने कहा कि यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मुकदमे के दौरान लंबे स्थगन के कारण गवाहों को धमकी दी जाती है तथा आरोपियों के खिलाफ गवाही नहीं देने के लिए मजबूर किया जाता है. यह भी एक निर्विवाद स्थिति प्रतीत होती है कि लंबे अंतराल के कारण गवाह, भले ही ईमानदार हों, स्मृति हानि या इसी तरह के किसी अन्य कारण से अभियोजन का समर्थन नहीं कर पाते हैं.
खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन एजेंसी एक वैधानिक कर्तव्य के तहत है और संविधान भी इसे मामलों के शीघ्र और शीघ्र निस्तारण के लिए सभी त्वरित व आवश्यक कदम उठाने का आदेश देता है. हमारी राय में गलती करनेवाले अधिकारी की पहचान करने का समय आ गया है, ताकि अभियोजन एजेंसी की ओर से ढिलाई पर शुरुआत में ही अंकुश लगाया जा सके.
हाईकोर्ट ने लिया है स्वत: संज्ञान
खंडपीठ ने दो प्रमुख मुद्दों, जिसमें मुकदमे में गवाहों की व्यवस्था करना व एक लापता आरोपी व्यक्ति का पता लगाने के लिए कार्रवाई करने के संबंध में सीबीआइ को योजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने आठ मई की तिथि निर्धारित की. उल्लेखनीय है कि एमपी-एमएलए के खिलाफ चल रहे ममलों के स्पीडी ट्रायल को लेकर झारखंड हाइकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था.