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सदर अस्पताल में महिला विशेषज्ञ चिकित्सक के अभाव में प्रसव कराने आये मरीजों की संख्या में कमीं

निजी नर्सिंग होम में हो रहा है मरीजों का पलायन, 40 से 50 हजार रुपये भरनी पड़ रही है मोटी रकम

गोड्डा सदर अस्पताल में इन दिनों महिला विशेषज्ञ चिकित्सक के अभाव से प्रसव कराने आयी प्रसूता की संख्या में लगातार कमी देखी जा रही है. पहले जहां प्रतिमाह औसतन 650 के आसपास प्रसव का आंकड़ा पार करता था, वहीं इस संख्या में कमी देखी जा रही है. इसका कारण महिला विशेषज्ञ चिकित्सक का हमेशा ड्यूटी में नहीं रहना है. कहने को तो सदर अस्पताल के लेबर वार्ड में ऑन कॉल महिला चिकित्सक की ड्यूटी रहती है, लेकिन ऐन वक्त पर भर्ती प्रसूता को लाभ नहीं मिल पाता है. ऐसे में आये दिन प्रसव कराने वाले मरीजों की संख्या में कमी देखी जा रही है. पिछले माह चिलौना गांव की प्रसूता प्रतिमा देवी जो सदर अस्पताल के लेबर वार्ड में भर्ती थी, उसकी मौत के बाद तो और भी इस मामले में कमी देखी जा रही है. मालूम हो कि इस मामले में काफी हंगामा हुआ था. तब से और भी डिलेवरी वार्ड के कर्मी इस मामले में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. कॉम्प्लिकेशन होने पर तुरंत रेफर कर देते हैं. नॉर्मल डिलेवरी के लिए सदर अस्पताल सही है, लेकिन जहां डिलेवरी के लिए शल्य प्रसव की बात आती है, तो वहां अस्पताल प्रबंधन की परेशानी शुरू हो जाती है. दिन में तो कभी कभी शल्य चिकित्सा कर प्रसव कराया जाता है, लेकिन शाम व रात होने के बाद मरीजों को परेशानी होनी तय है. महिलाएं प्रसव दर्द से तड़पती रहती है. ऐसे में ट्रेंड नर्सों के भरोसे ही प्रसव कराया जाता है. यदि प्रसव के दौरान कोई कॉम्प्लिकेशन आ जाती है, तो नर्सो द्वारा भी पल्ला झाड़ लिया जाता हैं. ऐसे में मरीजों को प्राइवेट नर्सिंग होम आदि में डिलेवरी कराना पड़ता है. वहीं डिलेवरी के नाम पर मोटी रकम की वसूली होती है और गलती से नवजात को कोई परेशानी हुई तो और भी फजीहत तय है. पिछले सात दिनों पहले ऐसा ही मामला प्रकाश में आया. देर शाम डिलेवरी के लिए भर्ती करायी गयी प्रसूता की तबीयत बिगड़ने के बाद आधी रात में महिला चिकित्सक के अभाव में बाहर रेफर किया गया था. वहां सिजेरियन कराये जाने के बाद महिला के परिजनों से मोटी रकम की वसूली की गयी, तब जाकर अस्पताल से जाने की इजाजत मिली. पहले तो ऑपरेशन आदि के लिए मोटी रकम रख लिया जाता है. बाद में प्रसूता को 7-8 दिनों तक रखने व दवा आदि के नाम पर मोटी रकम की वसूली प्राइवेट अस्पताल करते हैं. इससे लोगों की परेशानी का अंदाजा लगाया जा सकता है. यदि सदर अस्पताल में ही महिला का शल्य उपचार कर प्रसव कराया जाता है, तो कम से कम इस प्रकार की नौबत नहीं आती. यह हाल तब है, जब गोड्डा का सदर अस्पताल इकलौता सरकारी अस्पताल है. यहां पूरे जिले के महिला मरीज यहां पहुंचते हैं. महागामा के बाद सबसे ज्यादा प्रसव सदर अस्पताल में होता है. डीएस डा प्रभारानी प्रसाद के रहने पर पहले यहां महीने में 50-60 प्रसूता का सिजेरियन कर प्रसव कराया जाता था. इसकी संख्या घटकर मात्र 20-25 हो गयी है, जो चिंताजनक है. रात में इमरजेंसी चिकित्सक के भरोसे सदर अस्पताल का डिलेवरी वार्ड चलता है, जो अत्यंत दुखद है. रात के दौरान एक भी महिला चिकित्सक लेबर वार्ड में मौजूद नहीं रहती है. जिला संताल का पिछड़ा जिला है. यहां आदिवासी व पहाड़िया जाति के लोग हैं. सुंदरपहाड़ी व बोआरीजोर जैसे दुर्गम इलाके से प्रसव आदि के लिए पहुंचते हैं. ऐसे में महिला चिकित्सक के अभाव में सदर अस्पताल में भगवान भरोसे ही प्रसव कराया जाता है. चिकित्सक के अभाव में मरीजों को कई तरह की फजीहत झेलनी पड़ती है.

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