दरभंगा. मौसम इस बार सितम ढा रहा है. अप्रैल के महीने में ही तापमान का पारा चरम को पार कर गया है. दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है. रविवार को पारा 43 डिग्री को पार कर गया. घर के भीतर बिस्तर व फर्श भी गर्म हो गये. पंखें से निकलनेवाली हवा गर्म भाप सरीखा बदन से टकरा रहा है. सुबह आठ बजे के बाद से ही आसमान से आग बरसने लगती है. दोपहर में बाहर निकलने पर तो ऐसा मालूम पड़ता है, मानो बदन पर किसी ने मिर्च रगड़ दिया हो. त्वचा पर अजीब सा असहनीय लहर महसूस होता है. मौसम के इस तल्ख तेवर ने आम से लेकर खास सभी को हलकान कर रखा है. सबसे अधिक समस्या नित्य कमाने-खानेवालों को हो रही है. उनके लिए यह आफत साबित हो रहा है. पेट की आग बुझाने के लिए आसमान से बरस रही आग के बीच भी वे झुलसते रहते हैं. मजदूरों के सामने विकट समस्या खड़ी हो गयी है. उन्हें काम नहीं मिल रहा. सभी उपरवाले से अब रहम की गुहार लगा रहे हैं. आलम यह है कि घर के भीतर भी सुकून नहीं मिल रहा. कटी मछली की तरह लोग पूरे दिन छटपटाते रहते हैं. घर में रहने के बावजूद हलक सूखा हुआ ही मालूम पड़ता है. इतनी गर्मी इस क्षेत्र में दशकों बाद पड़ी है. अप्रैल के महीने में प्राय: इतनी तपिश किसी ने अनुभव नहीं की होगी. 80 वर्षीय सुधाकर झा बताते हैं कि इस महीने में इतनी तीखी धूप हमने तो कभी नहीं देखी. किसी एक दिन अगर धूप अधिक तीखी हुई भी होगी तो अगले दिन का मौसम सामान्य हो जाता था, लेकिन इस साल तो पता ही नहीं चल रहा कि आखिर तापमान का पारा कहां जाकर रुकेगा? इस विकराल मौसम में हलक सूखा ही रहता है. ऐसे में चौक-चौराहों पर ऑटो या किसी दूसरी सवारी के इंतजार में धूप में खड़े लोगों की हालत और खराब हो रही है. इक्का-दुक्का स्थानों को छोड़ शहर में सड़क के किनारे दूर-दूर तक पेड़ की छांव नहीं है. नगर निगम की ओर से पेयजल की व्यवस्था नजर नहीं आ रही है. किसी संगठन की ओर से भी प्याउ लगाने की सूचना नहीं है. इतना ही नहीं जिलाधिकारी राजीव रौशन के इस बावत दिये गये निर्देश का अनुपालन भी होता दिख नहीं रहा है. लोग बाेतल बंद पानी, नारियल पानी, ईंख का रस, बेल का रस, लस्सी, सत्तू व कोल्ड ड्रिंक पीकर प्यास बुझाते दिख रहे हैं. ककरी, खीरा, तरबूज आदि फलों का सेवन भी करते नजर आ रहे हैं. इस विकराल मौसम में लोग घर से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे. लिहाजा सड़के सूनी पड़ी रहती हैं. बाजार में सन्नाटा पसरा रहता है. इसका सीधा असर कारोबार पर पड़ रहा है. आलम यह है कि तरबूज, ककरी आदि दुकानें तो सजी हैं, लेकिन वहां तक दिनभर खरीदार पहुंच नहीं पाते. शाम छह बजे के बाद ही लोग घर से बाहर निकल पाते हैं. इस मौसम ने रोज कमाने-खानेवालों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है. दिहाड़ी मजदूरों को काम नहीं मिल रहा. रिक्शा, टेम्पो आदि चलाकर दो जून की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल हो रहा है. दिल्ली मोड़, कादिराबाद, दरभंगा जंक्शन, दोनार, बेता, लहेरियासराय आदि स्थानों पर सवारी के लिए ये लोग टकटकी लगाये बैठे रहते हैं. ट्रेन-बस से पहुंचनेवाले इक्का-दुक्का लोगों को लेकर बदन झुलसने की परवाह किये बगैर रिक्शा खींचते नजर आ रहे हैं.
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