बक्सर.
लाखों रुपये खर्च कर नगर परिषद एवं जिला प्रशासन न केवल नग वासियों के स्वास्थ्य को खराब कर रहा है बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर की पहचान को समाप्त भी कर रहा है. यह दावा प्रभात खबर नहीं बल्कि नगर परिषद की कार्यशैली कर रही है. नगर परिषद के कार्यशैली के कारण ही नगर के लोगों की स्वास्थ्य खतरे में पड़ गयी है. इन्हें श्वसन संबंधित गंभीर बीमारी होने की संकट मंडराने लगा है. नगर के साथ ही जिला अतिथि गृह में रूकने के लिए पहुंचने वाले वीवीआइपी भी प्रभावित हो रहे हैं. लेकिन इसके प्रति न तो नगर परिषद को चिंता है और न ही जिला प्रशासन को इस ओर ध्यान है. नगर के लिए उत्पन्न इस संकट के लिए प्रतिमाह 80 लाख आम जनता के रुपये को नगर परिषद खर्च करता है. नगर के लोगों की स्वास्थ्य को बेहतर बनाये रखने के लिए केवल सफाई पर ही 80 लाख रुपये नगर परिषद से खर्च किया जाता है. इस भारी भरकम रुपयों से नगर की ठोस कचरे के निस्तारण से नगर की वायुमंडल को खराब करने के साथ ही किले की पहचान को समाप्त किया जा रहा है. जी हां यह स्थिति जिले के ऐतिहासिक किले की हो गई है. किले की सुरक्षा को लेकर बनाया गया गढ़ा जो उसकी भव्यता प्रदान करता है उसे नगर की कचरे से भरा जा रहा है. जिससे उसकी वास्तविक स्वरूप प्रभावित हो रहा है. वहीं निस्तारित इन कचरों में प्रतिदिन आग लग रहा है. जिसमें जलने वाले कचरे व प्लास्टिक से तेज बदबू नगर में फैल रही है. जिससे नगर की वायुमंडल प्रदूषित हो गया है. अभी भी प्रतिदिन प्रदूषित हो रहा है. लेकिन जिला प्रशासन एवं नगर परिषद अनजान बना हुआ है.अतिथिशाला में आने वाले हो रहे प्रभावित :
किला के ऊपरी भाग पर जिला अतिथिशाला बनाया गया है. जिसके ठीक नीचे परिसर में नगर परिषद का कचरा निस्तारित हो रहा है. जिससे निकलने वाली बदबू आबादी से ज्यादा अतिथिशाला को प्रभावित कर रहा है. जिसकी बदबू अतिथिशाला तक पहुंच रही है. जहां बाहर से आने वाले खास लोग ठहरते है. जिन्हें इस प्रदूषित वातावरण के बीच ठहरना मजबूरी है. जिसपर जिला प्रशासन व नगर परिषद उदासीन है.ऐतिहासिक धरोहर पर मंडराने लगा खतरा :
11वीं शताब्दी के इस किले की भव्यता एवं अस्तित्व अब समाप्त होने वाला है. किले के चारों तरफ सुरक्षा को लेकर तैयार गड्ढा बनाया गया था. जो किले की वास्तविक स्वरूप के साथ ही उसकी भव्यता को दर्शाता है. वहीं बक्सर को धार्मिक एवं ऐतिहासिक रूप से विकास को लेकर हमेशा चर्चा होती है. ऐसे में जिले की धार्मिक एवं ऐतिहासिक विकास की बातें बेमानी साबित होगी. नगर परिषद की इस कार्यशैली से ऐतिहासिक किला केवल किताबों में ही सिमट कर रह जायेगा.नगर की आबोहवा हो रही खराब :
नगर के बीचोंबीच कचरा के निस्तारण एवं उससे उठने वाली बदबू से नगर की आबोहवा खराब हो रही है. लोगों को श्वासन के माध्यम से वायुमंडल में फैल रही जहरीली हवा लेने को मजबूर हो गये है. धुंआ से आधा नगर सीधे प्रभावित हो रहा है.पूरे दिन किला के आस-पास छाया रहता है अंधेरा :
किला के निचले भाग में निस्तारित कचरा से आस-पास पूरे दिन अंधेरा छाया रहता है. कचरा के ठीक बगल में दो विद्यालय, रामलीला मंच, किला मैदान, अतिथिशाला, भैरव मंदिर एवं नगर परिषद का रैन बसेरा स्थित है. जहां पूरे दिन कचरे के जलने व उससे उठने वाले लपटों व धुंआ के कारण प्रभावित रहता है. चारों तरफ धुंआ भरा रहता है. जिससे दिन हो या रात अंधेरा कायम हो जाता है. इससे निकलने वाली जहरीली धुंआ से नगर की वायुमंडलीय आबोहवा खराब हो रही है. जिससे नगर वासी प्रदूषित वातावरण में जीने को मजबूर हो गये हैं.कहते हैं स्थानीय लोग
दुकान पर बैठना मुश्किल हो रहा है. पछुआ हवा के कारण न केवल बदबू आ रही है बल्कि दुकानों में तक धुंआ भर जा रहा है. जिससे सांस लेने में भी परेशानी हो रही है.
रंजन कुमार साह,
स्थानीय दुकानदारजब भी किला मैदान से गुजरते है इस धुंआ की परेशानी का उन्हें सामना करना पड़ रहा है. आंखों में जलन हो रही है.विश्वजीत शर्मा,
राहगीरदुकान पर बैठना काफी परेशानी भरा पिछले कुछ माह से हो रहा है. लेकिन रोजगार यही होने के कारण दुकान पर काम करना मजबूरी है. इसी से परिवार चलता है.अभिषेक रंजन कुमार,
मोबाइल कारीगरहमेशा धुंआ भरा रहता है. पहले केवल बदबू आती थी. लेकिन गर्मी शुरू होने के साथ ही धुंआ भी आने लगा है. नगर के निस्तारित कचरे में आग लगा दिया गया है. पछुआ हवा के कारण धुंआ नगर में तक फैल गया है.दीपक कुमार,
स्थानीयडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है