सिसवन. पिछले तीन दशकों से प्रदूषण की मार झेल रही बाणेश्वरी यानी दहा नदी की कहानी भी देश की बहुत सी छोटी नदियों की ही तरह है, जो कभी अपनी अविरल प्रवाह से मुख्य नदियों को सहायता देते हुए प्राकृतिक तंत्र को बनाये रखती थी. आज यह नदियां या तो समाप्त हो चुकी हैं, या फिर लुप्तप्राय होकर अपने अंतिम दिन गिन रही हैं. दहा नदी भी कुछ ऐसी ही विकट परिस्थितियों से जूझ रही है. जिले की जीवनरेखा मानी जाने वाली यह नदी आज किसी नाले के समान दिखाई देती है. जिसमें न तो प्रवाह बचा है और न ही जलीय जीवन. बताया गया कि 80 के दशक के बाद से ही दहा धीरे धीरे प्रदूषण की चपेट में आने लगी थी. लेकिन आज तक न तो प्रशासन ने इस नदी की सुध ली है और न ही आमजन का सरोकार इस नदी से है. इस नदी से जुडी धार्मिक मान्यताओं में सर्व प्रमुख बताया जाता है कि जनकपुरी से अयोध्या लौटने के क्रम में माता सीता को प्यास लगने पर लक्ष्मण ने अपने बाण से धरती में छेद किया था, जिससे वहां एक जलधारा प्रकट हुई. इसी कारण इसे अपने उद्गम स्थल पर बाण गंगा अथवा बाणेश्वरी भी कहा जाता है. आज भी इसके किनारों पर अमावस्या, पूर्णिमा पर श्रद्धालु पूजन के लिए आते हैं, साथ ही वर्ष में दो बार होने वाली छठ पूजा के अवसर पर भी लोग दाहा के किनारे बने घाटों पर ही पूजन करते हैं नदी से जुड़ी है सौ से अधिक गांवों की खुशहाली बिहार के गोपालगंज स्थित सासामुसा चंवर से निकलने वाली इस जलधारा का स्रोत एक आर्टिजन कुआं है, जहां से यह नदी सीवान और सारण जिले में लगभग 85 किलोमीटर का सफ़र करती है. यह नदी जिले के सीवान सदर, हुसैनगंज, हसनपुरा, सिसवन व आंदर प्रखंड से होकर गुजरती है सौ से अधिक गांवों की खुशहाली जुड़ी है. बताया जाता है की आज से 30-40 साल पहले यह नदी काफी चौड़ी और स्वच्छ हुआ करती थी और इसके आस पास वन क्षेत्र होने से इसकी भूजल रिचार्ज क्षमता काफी अधिक थी, जिसके चलते यह सदानीरा होकर बहा करती थी. जिले के उक्त प्रखंडो में सफ़र तय करने के बाद यह नदी छपरा के फुलवरिया ताजपुर के निकट सरयू में मिल जाती है. गंभीर प्रदूषण झेल रही है यह नदी अपने उद्गम स्थल पर ही गोपालगंज में चीनी मिल का प्रदूषित पानी मिलने से यह नदी विषाक्त हो रही है, इससे यहां का जलीय जीवन समाप्त हो चुका है. कहा जाता है आज से 40 वर्ष पूर्व यह नदी तटीय क्षेत्र के इलाकों के लिए पेयजल का सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत थी, फिर समय बदलने के साथ साथ ही इसके किनारों पर अतिक्रमण शुरू हुआ. किनारों पर अतिक्रमण के चलते आज कईं स्थानों पर दहा किसी संकुचित से नाले की तरह रह गयी है. इसके किनारों पर सैकड़ों गांव बसे हुए हैं और यहां ग्रामीणों के लिए दहा किसी कचरा डंपिंग स्टेशन से कम नहीं है. चर्चा है की हाल ही में जिला प्रशासन ने इस नदी को बचाने के लिए इसे अतिक्रमण मुक्त बनाने की बात कही है और इसी क्रम में नदी की मैपिंग कराये जाने की भी चर्चा की जा रही है. यदि इन सभी प्रयासों को उचित मॉनिटरिंग और बेहतर जन सहयोग के साथ किया जा सकेगा तो मुमकिन है कि भविष्य में दहा अविरल होकर बहे.
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