दरभंगा. भूमंडलीकरण के बाद पूरी दुनिया एक गांव में बदल गई है. एक देश दूसरे की संस्कृति और सभ्यता के करीब आते जा रहे हैं. यह बातें लनामिवि के कुलपति प्रो. संजय कुमार चौधरी ने कही सीएम कॉलेज में वैश्वीकृत दुनिया में भारतीय- अमेरिकी संस्कृतियों की गतिशीलता और अस्तित्व- बोध विषयक परिचर्चा का उद्घाटन करते हुए कही. कुलपति ने कहा कि भूमंडलीकरण से पहले भी भारत और अमेरिका का संबंध विभिन्न क्षेत्रों में अटूट रहा है. कुलपति ने कहा कि कॉलेजों में सप्ताह में एक दिन किसी भी विषय पर परिचर्चा और सेमिनार का आयोजन किया जाना चाहिए. इससे छात्रों को अपनी बात रखने का मौका मिलेगा. वे अपनी समझदारी दूसरों के साथ साझा कर सकेंगे. कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी वर्जीनिया अमेरिका के प्रोफेसर रतन कुमार भट्टाचार्य ने कहा कि भारत और अमेरिका की शैक्षणिक व्यवस्था में बहुत अंतर है. इसका कारण है कि अमेरिका विकसित राष्ट्र है और भारत विकासशील. लेकिन, आर्ट और कल्चर के मामले में भारत पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखता है. कहा कि अमेरिका में जो भारतीय रहते हैं, वे भारतीय संस्कृति के वाहक हैं. अमेरिका भी भारतीय संस्कृति का प्रशंसक है. प्रो. भट्टाचार्य ने कहा कि भारत में धीरे-धीरे यह बात आम हो रही है कि दुनिया में भारत की शैक्षणिक व्यवस्था के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत को पहचान दिलाई जाए. इससे पूर्व प्रधानाचार्य प्रो. मुश्ताक अहमद ने कहा कि भारत और अमेरिका में कई समानता है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र देश है और अमेरिका विश्व का पहला प्रजातंत्र. भूमंडलीकरण के दौर में भारत और अमेरिका के सांस्कृतिक संबंधों में कई नए आयाम जुड़े हैं. मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. एके बच्चन, पीजी अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो. मंजू राय, डॉ सुब्रतो दास ने भी विचार रखे. संचालन डॉ तनीमा एवं डॉ शांभवी ने किया. इससे पूर्व अतिथियों का स्वागत किया गया. मौके पर डॉ आशीष बड़ियार, डॉ अबसार आलम आदि मौजूद रहे.
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