तीन माह से अधिक समय से लंबित मामलों को सप्ताह में चार दिन सुनवाई कर त्वरित निष्पादित करने के आदेश जारी. कॉउज लिस्ट एवं पारित आदेश पोर्टल पर होंगे अपलोड, पक्षकारों को मिलेगी राहत अपर मुख्य सचिव ने प्रमंडलीय आयुक्त एवं डीएम को लिखा पत्र प्रतिनिधि, खगड़िया तारीख पे तारीख नहीं, बल्कि अब भूमि सुधार उप समाहर्ता के न्यायालयों में चल रहे भूमि विवाद से जुड़े मामलों की तय समय-सीमा के भीतर सुनवाई और आदेश जारी होंगे. सुनवाई तथा आदेश पारित करने में लगातार बरती जा रही उदासीनता को गंभीरता से लेकर विभाग के द्वारा आदेश जारी किये गए हैं. राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने भूमि विवाद निवारण अधिनियम 2009 के तहत दायर वादों का निष्पादन निर्धारित समय-सीमा यानि 90 दिनों के भीतर पूरी कर अंतिम न्याय-निर्णय यानि आदेश पारित करने को कहा है. राज्य भर के सभी अनुमंडलों के भूमि सुधार उप समाहर्ता को आदेश जारी कर अपर मुख्य सचिव ने तीन महीने के भीतर सुनवाई पूरी कर न्याय निर्णय पारित करने के साथ-साथ तारीख पे तारीख… देने की प्रथा को समाप्त करते हुए सप्ताह में चार दिन बिहार भूमि विवाद निवारण अधिनियम के तहत न्यायिक कार्य संपन्न करने को कहा है. सभी डीसीएलआर को प्राथमिकता का आधार पर 90 दिनों से अधिक अवधि के लंबित वादों का त्वरित निष्पादन करने के आदेश दिये गए हैं. विभागीय अपर मुख्य सचिव ने डीसीएलआर को काउज लिस्ट तथा पारित आदेश संबंधित पोर्टल पर ससमय अपलोड करने के आदेश दिये हैं. पीड़ित की बात सुने बिना नहीं करेंगे मामला खारिज पीड़ित व्यक्ति का पक्ष सुने बिना भूमि सुधार उप समाहर्ता वाद को खारिज नहीं करेंगे. बता दें कि अपर मुख्य सचिव ने जारी आदेश में कहा है कि कोई व्यथित व्यक्ति सक्षम प्राधिकार ( भूमि सुधार उप समाहर्ता) के समक्ष आवेदन या शिकायत दर्ज करते हैं तो उनका पक्ष सुने बिना अधिकारी वाद खारिज नहीं करेंगे. जानकारी के मुताबिक बिहार भूमि विवाद निवारण अधिनियम के तहत दायर वादों को निर्धारित समय सीमा के भीतर निष्पादित करने सहित पारित आदेशों का त्वरित क्रियान्वयन को लेकर प्रमंडलीय आयुक्त तथा डीएम को निर्देश दिये गए हैं. अपर मुख्य सचिव ने भूमि सुधार उप समाहर्ता के द्वारा बिहार भूमि विवाद निराकरण अधिनियम एवं अन्य अधिनियमों के तहत किये गए न्यायालीय कार्यों की संख्यात्मक एवं गुणात्मक समीक्षा सहित न्यायालयों का निरीक्षण करने की जिम्मेवारी प्रमंडलीय आयुक्त को सौंपा है. वहीं डीएम को इस अधिनियम के तहत निष्पादित वादों की संख्यां, लंबित वादों की स्थिति तथा भूमि सुधार उप समाहर्ता द्वारा पारित आदेश की गुणवत्ता की समीक्षा करने का कहा गया है. भूमि सुधार उप समाहर्ता द्वारा पारित आदेश का क्रियान्वयन भी डीएम को कराने के निर्देश दिये गए हैं. समय-सीमा के भीतर सुनवाई पूरी नहीं कर रहे डीसीएलआर विभागीय सूत्र बताते हैं कि 18 अप्रैल को राज्य स्तर की गई समीक्षा के दौरान बिहार भूमि विवाद निवारण अधिनियम 2009 की स्थिति संतोषप्रद नहीं पाए जाने के बाद सभी जिले के डीएम तथा प्रमंडलीय आयुक्त को पत्र लिखकर इस अधिनियम के तहत दायर वादों को निर्धारित समय- सीमा के भीतर निष्पादित करने सहित पारित आदेशों का त्वरित क्रियान्वयन कराने को कहा गया है. रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक इस अधिनियम के तहत राज्य भर में 11 हजार 628 वाद दायर हुए है, जिसके विरुद्ध मात्र 6 हजार 355 वादों का निष्पादन हो पाया है. जबकि 5 हजार 273 वाद लंबित है. समीक्षा के दौरान यह बातें भी सामने आई कि 3 हजार 373 मामले 90 दिनों से अधिक समय से लंबित है. 90 दिनों में सुनवाई पूरी कर आदेश पारित करने का है प्रावधान बिहार भूमि विवाद निराकरण अधिनियम के तहत दायर मामलों का निष्पादन 90 दिनों के भीतर किये जाने का प्रावधान है. इस अवधी के बीच दोनों पक्षों को सुनकर भूमि सुधार उप समाहर्ता को फैसला सुनाना होता है. इस अधिनियम को लागू करने का उद्देश्य आम लोगों को रैयत भूमि विवाद के मामले में जल्द न्याय दिलाना था. जानकार बताते हैं कि सरकारी जमीन के मामले में सुनवाई कर आदेश पारित करने की शक्ति प्रशासनिक अधिकारी को प्रदत है, लेकिन रैयति/निजी जमीन विवाद मामले में यह शक्ति सिर्फ सिविल कोर्ट के पास था. सक्षम न्यायालय में सुनवाई तथा आदेश पारित होने में वर्षो समय लग जाते हैं. इस विवाद में उलझे लोगों के काफी समय व पैसे की बर्बादी होती थी. हर जिले में रैयती भूमि विवाद के मामले में लगातार हो रही वृद्धि के साथ-साथ अधिकारियों के जनता दरबार में भी ऐसे अधिकांश मामले छाए रहते थे. लेकिन निजी जमीन विवाद के मामले में प्रशासनिक पदाधिकारी के पास अधिकार सीमित रहने के कारण ऐसे मामलों का स्थाई समाधान नहीं हो पाता था. लोगों की इस समस्या के समाधान के लिए साल 2009 में यह अधिनियम बनाया गया था. सुनवाई करने की शक्ति सभी डीसीएलआर को प्रदान की गई थी. लेकिन पांच साल बाद वर्ष 2014 में हाईकोर्ट ने सीडब्लूजेसी नंबर- 1091/2013 महेश्वर मंडल बनाम अन्य बनाम राज्य सरकार में इस अधिनियम पर रोक लगा दी थी. लेकिन 2021 में सुप्रीम कोर्ट से आदेश जारी होने के बाद फिर से इस अधिनियम के तहत सुनवाई शुरु की गई थी.
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