गया. आपदा प्रबंधन के लिए युवाओं के साथ विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को कंधे से कांधा मिला कर काम करना होगा. युवा मानव संसाधन हो सकते हैं, लेकिन जब तक सहयोगात्मक कार्य नहीं होगा तब तक आपदा प्रबंधन से सुचारु रूप से निबटना संभव नहीं है. यह वक्तव्य मीडिया विभाग के प्रो आतिश पराशर ने दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) के राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) इकाई और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआइडीएम) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला में कही. जनसंपर्क पदाधिकारी (पीआरओ) मोहम्मद मुदस्सिर आलम ने बताया कि कार्यशाला को कुलपति प्रो कामेश्वर नाथ सिंह के संरक्षण में एनएसएस के समन्वयक डॉ बुधेंद्र सिंह के देखरेख में आयोजित किया गया. प्रो पराशर ने आपदा प्रबंधन विषय पर कहा कि संचार की संरचना ऐसी हो कि समूह विशेष के लोगों को उसे समझने में आसानी हो. उन्होंने कहा कि एक सफल संचार के लिए संदर्भ की रूपरेखा और अनुभव के क्षेत्र का एक-दूसरे से मेल होना आवश्यक है. इसी परिस्थिति में संचार सफल माना जाता है. उन्होंने अपने सुझाव में कहा कि हमें एसआरआइएफ का अनुपालन करना चाहिए जिसमें एस का अर्थ स्ट्रांगेस्ट (सबसे मजबूत), आर का अर्थ रिलेवेंट (प्रासंगिक), आई का अर्थ इंफ्लूएंसल (प्रभावशाली) और एफ का अर्थ फैक्टर (कारक) है. इससे पहले डॉ बुधेंद्र सिंह ने कार्यशाला के उद्देश्यों को साझा करते हुए कहा कि प्रतिभागियों को आपदा प्रबंधन के आवश्यक ज्ञान और कौशल से लैस करना है. इसके बाद एनआइडीएम के सलाहकार रंजन कुमार ने आपदा लचीलापन प्रयासों में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला. एनआइडीएम डॉ कुमार राका ने अपने संबोधन में कहा कि आपदा प्रबंधन में गलती शब्द नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है. इसे गलती की जगह अंतराल कहना ज्यादा उचित है. डॉ मिंटू देवनाथ ने कहा कि भारत वर्ष 2030 तक विश्व की सबसे अधिक युवा जनसंख्या वाला देश बनने वाला है. इसलिए आपदा से निबटने के लिए हमें अपनी युवा आबादी को सही दिशा- निर्देश देने की आवश्यकता है. सामाजिक विज्ञान विभाग के डीन प्रो पवन कुमार ने कहा कि युवा शिक्षक से न केवल ज्ञान लेते हैं बल्कि उनसे जीवन शैली की भी सीख लेते हैं.
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