21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Vallabhacharya Jayanti 2024 : श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे श्री वल्लभाचार्य, मनायी जा रही है 545वीं जयंती

भगवान श्री कृष्ण की भक्ति से प्रेरित संत श्री वल्लभाचार्य ने अध्यात्म व भक्ति का अलग मार्ग प्रशस्त किया था. इन्होंने कई महान ग्रंथ व स्त्रोत भी लिखे हैं, जिस कारण ये भारत के भक्ति आंदोलन के अग्रदूत भी कहे जाते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इनका जन्म हुआ था. इस वर्ष वरुथिनी एकादशी (4 मई, 2024) के दिन इनकी 545वीं जयंती मनायी जा रही है.

Vallabhacharya Jayanti 2024 : संत श्री वल्लभाचार्य भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे. धार्मिक मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें श्रीनाथ जी के रूप में दर्शन दिये थे और साक्षात् गले लगाया था. यही कारण है कि श्री वल्लभाचार्य की जयंती पर भगवान श्री कृष्ण की पूजा-अर्चना का विधान है. श्री वल्लभाचार्य जयंती छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु सहित भारत के कई हिस्से में धूमधाम से मनायी जाती है. इस दिन उनके अनुयायी भगवान कृष्ण का अभिषेक कर नगर में झांकी निकालते हैं. उत्साह के साथ मंदिरों को फूलों से सजाते हैं.

डॉ राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’
प्रकारांतर से ही संत-महात्माओं से सेवित भारत भूमि पर कितने ही ऋषियों, आचार्यों, मुनियों और तपस्वियों ने अपनी प्रज्ञा, त्याग, तपस्या, विद्या, शील, संयम और शिक्षा के बल पर एक दिव्य आदर्श प्रस्तुत किया है. इन्हीं में महाप्रभु वल्लभाचार्य जी का भी नाम बड़ी आदर और श्रद्धा के साथ लिया जाता है, जो पंद्रहवीं शताब्दी के महान भारतीय दार्शनिकों में सर्वाधिक ख्यात रहे.
धर्म साहित्य में वल्लभाचार्य को श्री वैश्वानरावतार अवतार अर्थात् अग्नि का अवतार (अग्निकुंड में उत्पन्न) कहा गया है. विवरण मिलता है कि संवत् 1535 के वैशाख माह के दक्षिण भारत के एक तैलंग ब्राह्मण लक्ष्मण भट्ट अपनी पत्नी इल्लूम्मागारु के साथ उत्तर भारत यात्रा क्रम में काशी जा रहे थे, पर काशी में यवन आक्रमण की बात सुनकर उनके भय से वे चंपारण क्षेत्र में चंपेश्वर महादेव के दर्शनार्थ रुके और उसी बीच उनकी पत्नी ने वैशाख कृष्ण एकादशी तिथि को एक बालक को जन्म दिया. बालक अचेत था. ऐसे में माता-पिता दोनों उसे मृत मानकर अपार दुख के साथ शमी वृक्ष के कोटर में बालक को छोड़ दिया. दूसरे दिन जाने से पूर्व दोनों विचलित हृदय से जैसे ही बालक का अंतिम दर्शन करने गये, बालक को जीवित देखकर दोनों ने उसे भगवान का प्रसाद मानकर सहज स्वीकार कर लिया और काशी आ गये. यहीं गंगा किनारे हनुमान घाट पर उन की बाल लीलाएं घटित हुईं. यह कुशाग्र बुद्धि का ही प्रतिफल था कि 13 वर्ष की अवस्था तक संपूर्ण धर्मशास्त्र सहित वेद, पुराण में आप तन-मन से निष्णात हो गये थे.

Vallabh7474
Vallabhacharya jayanti 2024 : श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे श्री वल्लभाचार्य, मनायी जा रही है 545वीं जयंती 3

Also Read : Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया पर 24 साल बाद नहीं होंगी शादियां, जानें इसका धार्मिक कारण

‘सुबोधिनी टीका’ सहित कई धार्मिक रचनाएं लिखीं

राज्याभिषेक में विजयनगर साम्राज्य में आपकी यश:कृति का पताका लहरने के बाद आपने संपूर्ण देश में भागवत धर्म का प्रचार-प्रसार किया, साथ ही साथ दीक्षा प्राप्त करने के उपरांत श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. आगे पंडित श्री देव भट्ट की कन्या महालक्ष्मी की से विवाह उपरांत आप प्रयाग के समीपस्थ यमुना के दूसरे तट पर अडैल में रहने लगे और अपने कृतित्व से पूरे देश के साधु-संतों के बीच सम्मानीय स्थान प्राप्त कर लिया. भागवत पर रचित इनकी रचना ‘सुबोधिनी टीका’ का सनातन समाज में विशेष महत्व है. इसके साथ ही गोपाल लीला, शृंगार रोमावली शतक, कृपा कुतूहल, शृंगार वेदांत आदि इनकी प्रमुख रचनाएं हैं.

श्रीकृष्ण की लीलाभूमि ब्रज प्रदेश को अपना कर्मभूमि बनाया

उस जमाने में जब संपूर्ण देश में अनेकानेक मत व पंथ कायम थे, तब उन्होंने शुद्ध द्वैत मतानुसार पुष्टि मार्ग का प्रथम प्रवर्त्तन किया. भगवान कृष्ण के अन्य भक्त वल्लभाचार्य ने देशभर में भ्रमण करते हुए कुल 84 स्थानों पर भागवत संदेश दिया. आगे उन्होंने श्रीकृष्ण की लीलाभूमि ब्रज प्रदेश को अपना कर्मभूमि बनाया. श्रीनाथजी को अपना आदि गुरु बनाने वाले वल्लभाचार्य के 84 शिष्यों का दूर देश में सुनाम है. इनमें सूरदास, कुंभनदास, परमानंददास और कृष्णदास आदि का विशेष स्थान है. गोपीनाथ और विट्ठलनाथ के पिता वल्लभाचार्य आषाढ़ मास में 52 वर्ष की अवस्था में काशी के हनुमान घाट पर गंगा में प्रविष्ट हो जल समाधि लेकर इस नश्वर संसार को सदा-सर्वदा के लिए छोड़ दिया.

रायपुर के चंपारण्य तीर्थ क्षेत्र में है महाप्रभु जी का भव्य मंदिर

Vallabhacharya Temple In Chattishgadh66
Vallabhacharya jayanti 2024 : श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे श्री वल्लभाचार्य, मनायी जा रही है 545वीं जयंती 4

कालांतर में महाप्रभु जी के शिष्य-प्रशिष्यों ने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूरी पर अवस्थित चंपारण्य तीर्थ क्षेत्र में महाप्रभु जी का एक भव्य मंदिर बनवाया, जहां हरेक वैशाख कृष्ण एकादशी को महाप्रभु का जन्म उत्सव मनाया जाता है. महाप्रभु जी प्रखर विचारक, संतोषी, दयालु, परोपकारी,श्रद्धा, तेजस्वी, भक्ति और सेवा के मूर्तरूप हैं. यह इनकी वैभवशाली व्यक्तित्व का ही प्रतिफल है कि न सिर्फ भारत वर्ष, वरन् पूरे संसार में उनकी कितने ही भक्तवृंद निवास करते हैं. जन- जन का कल्याण और मानवता की सेवा के भाव को लिये महाप्रभु जी के जीवन का हर एक अध्याय अनुकरणीय है और महाप्रभु जी का अमर संदेश युगों-युगों तक देश की संस्कृति को गौरवमय करता रहेगा.

Also Read : Vaishakh Purnima 2024: वैशाख पूर्णिमा पर करें सत्यनारायण पूजा, बरसेगी भगवान की कृपा, जानें पूजा विधि व मुहूर्त

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें