कौनैन बशीर, उदाकिशुनगंज. अनुमंडल मुख्यालय का रेफरल व पीएचसी अस्पताल डॉक्टर, स्टाफ व संसाधनों की कमी के कारण खुद ही बीमार है. यहां केवल ओपीडी में मरीजों काे परामर्श दिया जाता है. सामान्य मरीजों की ही भर्ती की पर्ची बनती है. वे भी दो-चार घंटे इलाज के बाद लौट जाते हैं. हालात यह है कि आपात स्थिति में पहुंचने वाले व दुर्घटना के सामान्य घायलों काे इलाज की सुविधा की कमी में जिला अस्पताल जाने की सलाह दी जाती है. पिछले 10 माह में अस्पताल की ओपीडी में इलाज के लिए करीब 30 हजार मरीज पहुंचे. सर्दी, खांसी व बुखार से पीड़ित करीब तीन हजार लोगों को भर्ती किया गया. वहीं 13 सौ से ज्यादा लोग रेफर कर दिया गया. कर्मियों का कहना है भर्ती होने वाले मरीज बोतल चढ़वाकर लौट जाते हैं. जरूरत होने पर अगले दिन फिर यही प्रक्रिया दोहरायी जाती है. 24 घंटे या इससे अधिक समय के लिए केवल प्रसूति वार्ड में ही महिलाएं रहती है. स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सकों व कर्मियों की कमी से आकस्मिक सेवा बंद होने की कगार पर है. फिलहाल यहां महज पांच चिकित्सक के सहारे जैसे-तैसे ओपीडी व आकस्मिक सेवा का संचालन किया जा रहा है. चिकित्सकों व कर्मियों की कमी का वर्षों से दंश झेल रहे इस अनुमंडलीय रेफरल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में बेहतर स्वास्थ्य सेवा मिलने की बात भी बेमानी प्रतीत हो रही है. संसाधन व कर्मियों की कमी में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को जहां इलाज की जरूरत है. वहीं दीवारों पर लिखे चिकित्सा सुविधा मिलने वाले श्लोगन आम मरीजों को मुंह चिढ़ाता नजर आ रहा है. संसाधन उपलब्ध रहने के बावजूद कर्मियों की कमी ने आम मरीजों को परेशान कर दिया है. लिहाजा यहां साधारण रोगी को भी रेफर कर दिए जाने की नियति बन गयी है. कई अभियान हो रहे है प्रभावित- चिकित्सक व कर्मी के अभाव में जहां कालाजार, कुष्ठ व टीबी रोगी खोजी अभियान, मातृ मृत्यु व शिशु मृत्यु अभियान की स-समय समीक्षा नहीं हो पाती है. वहीं नियमित टीकाकरण कार्य सहित उपस्वास्थ्य केंद्र व अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्रों का नियमित रूप से संचालन व निरीक्षण भी नहीं हो पा रही है. कौन-कौन सुविधाएं है यहां- करोड़ों की लागत व एक सौ बेड वाले इस अस्पताल का निर्माण वर्ष 2017 में हुआ था. जब इस अस्पताल की स्थापना हुई, तो अनुमंडल क्षेत्र के लोगों को खुशी थी कि अब स्वास्थ्य संबंधी मामूली समस्याओं को लेकर रोगियों को मधेपुरा, सहरसा, भागलपुर, दरभंगा या पटना इलाज के लिए नहीं जाना पड़ेगा, लेकिन उनकी ये समस्याएं जस की तस बनी रह गयी. वहीं स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के कारण अस्पताल में न तो चिकित्सकों की संख्या बढ़ायी जा रही है और न ही कर्मचारियों की. एक सौ बेड वाले इस अस्पताल में सिर्फ 50 बेड ही कार्यरत है. प्राथमिक उपचार के बाद रोगियों को रेफर टू मधेपुरा कर दिया जाता है. इस अस्पताल में 25 चिकित्सकों का पद सृजित है, लेकिन वर्तमान में यहां सिर्फ पांच चिकित्सक ही कार्यरत हैं और उसमें भी कुछ संविदा पर कार्य कर रहें हैं. एक्स-रे सहित मधुमेह,हिमोग्लोबिन,सीबीसी, यूरिन, एल्बोमीन, हेपेटाइटिस बी,गर्भ,मलेरिया,कालाजार,टीबी रोग जांच की सुविधा उपलब्ध है. यहां कहने के लिए एम्बुलेंस उपलब्ध है, लेकिन चालक की कमी में 102 नंबर के एम्बुलेंस से प्राइवेट चालक के भरोसे सभी तरह का कार्य लिया जा रहा है. कर्मियों की स्थिति पद — पद सृजित — पदस्थापित चिकित्सक (समान्य) — 25 — 05 चिकित्सक (विशेषज्ञ) — 09 — 00 दंत चिकित्सक — 02 — 01 (प्रतिनियुक्ति) महिला चिकित्सक — 04 — 02 चिकित्सक (आयुष) — 04 — 02 एएनएम — 34 — 34 प्रयोगशाला प्रवैधिकी — 01 — 01 लिपिक — 01 — 01 फार्मासिस्ट — 02 — 01 स्वास्थ्य प्रशिक्षक — 01 — 01 वार्ड एटेन्डेंट — 04 — 01 परिचारी — 10 — 06 डाटा आपरेटर — 10 — 07 ड्राइवर — 02 — 00 परिधापक — 01 — 00 अनुमंडल रेफरल अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के संचालन के लिए 25 नियमित सहित दर्जनों संविदा कर्मियों की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान में यहां पांच चिकित्सक सहित मात्र कुछ कर्मी पदस्थापित है. इससे रेफरल अस्पताल और पीएचसी में रोगियों को मिलने वाली बेहतर सुविधा का सहज रूप से अंदाजा लगाया जा सकता है. प्रखंड में है कितने उप व अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उदाकिशुनगंज के अंतर्गत 13 उप स्वास्थ्य केंद्र व तीन अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र संचालित है, लेकिन कुछ पंचायतों सिर्फ सरकारी कागज पर ही उप स्वास्थ्य के चल रहा है. कही जमीन की कमी में उप स्वास्थ्य केंद्र भवन के लिए तरस रहा है. वहीं कर्मियों की कमी में अधिकांश उप स्वास्थ्य केंद्र बेकार बनकर रह गया है. उप स्वास्थ्य केंद्र ग्रामीणों के लिए पहली सीढ़ी- उप स्वास्थ्य केंद्र स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली व समुदाय के बीच सबसे परिधीय और पहला संपर्क बिंदु है. व्यवहार परिवर्तन लाने और मातृ व शिशु स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण, टीकाकरण, डायरिया नियंत्रण व संचारी रोगों के नियंत्रण के संबंध में सेवाएं प्रदान करने के लिए उप केंद्रों को पारस्परिक संचार से संबंधित कार्य सौंपे गये हैं. प्रत्येक उप केंद्र में कम से कम एक एएनएम महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता व एक पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ता होना आवश्यक है. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत अनुबंध के आधार पर एक अतिरिक्त दूसरी एएनएम का प्रावधान है. एक महिला स्वास्थ्य आगंतुक (एलएचवी) को छह उप केंद्रों के पर्यवेक्षण का कार्य सौंपा गया है. एएनएम व एलएचवी का वेतन भारत सरकार वहन करती है, जबकि पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ता का वेतन राज्य सरकारें वहन करती हैं.
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