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ईवीएम लॉक, जीत-हार के कयासों का दौर शुरू

ईवीएम लॉक, जीत-हार के कयासों का दौर शुरू

कुमार आशीष, मधेपुरा. लोकसभा चुनाव मंगलवार को संपन्न होने के साथ ही लोगों का मत ईवीएम में लॉक हो वज्रगृह पहुंच गया है. अब 26 दिनों बाद चार जून को मतगणना के बाद प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होगा, लेकिन मतदान समाप्त होने के साथ ही चौक-चौराहे सहित सार्वजनिक स्थानों अथवा फोन पर अभी से ही जीत-हार का फैसला होने लगा है. लोगों के कयास लगाने का दौर शुरू है. यह दौर चार जून तक अनवरत चलता रहेगा. लोग विधानसभावार व जातिगत आधार पर वोट का बंटवारा कर प्रत्याशी विशेष को जीताने अथवा हराने लगे हैं. इतना ही नहीं, आकलन करने वाले लोग प्रत्याशी विशेष को लाखों वोट की बढ़त दिलाते जीत-हार का फाइनल रिजल्ट तक बता रहे हैं. मधेपुरा में राजद, तो सहरसा में जदयू है आगे- लोगों की चर्चा के अनुसार मधेपुरा जिले के मधेपुरा, आलमनगर व बिहारीगंज तीनों विधानसभा में राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार को निश्चित रूप से बढ़त मिलेगी, तो सहरसा जिले के सहरसा, सोनवर्षा व महिषी में जदयू आगे रहेगा. चर्चाओं के दौर में यह भी शामिल है कि पिछले चुनाव में जदयू प्रत्याशी ने मधेपुरा के आलमनगर व बिहारीगंज में भी लीड किया था. इस बार भी वहां से उनका लीड करना तय है. इसके पीछे का तर्क देते लोग कहते हैं कि आलमनगर और बिहारीगंज विधानसभा सीट जदयू के कब्जे में है और उन दोनों ही विधायकों ने अपने-अपने क्षेत्र में मेहनत की है. इसका फायदा जदयू प्रत्याशी को मिलना तय है. महिषी विधानसभा में राजद रहेगा आगे- कयास लगाने वाले कथित राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि भले ही जिले के सहरसा व सोनवर्षाराज विधानसभा में जदयू प्रत्याशी लीड ले ले या फिर लंबे अंतराल से बढ़त बना ले, लेकिन महिषी विधानसभा में वे बड़े अंतर से पिछड़ रहे हैं. वे इसके पीछे तर्क देते बताते हैं कि महिषी विधानसभा में राजद और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के स्थानीय नेता व कार्यकर्ताओं ने आगामी विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाये जाने की लालसा से लालटेन को लीड दिलाने के लिए मेहनत की है. हरियाणा बेल्ट पर सब कर रहे दावे- महिषी विधानसभा में आने वाले सत्तरकटैया प्रखंड पर पक्ष और विपक्ष दोनों दावे कर रहा है. दरअसल प्रखंड का आरण, विशनपुर, मेनहा, खोनहा, अगवानपुर, नंदलाली, बिजलपुर, सत्तर सहित अन्य गांव यादव जाति के लोगों की बहुलता होने के कारण हरियाणा बेल्ट कहलाता है. कहते हैं कि इस बेल्ट का वोट हमेशा से एकतरफा होता रहा है. चूंकि जदयू और राजद दोनों ही दलों के प्रत्याशी यादव जाति से ही हैं, लिहाजा यहां के वोट पर दोनों ही दावेदारी कर रहे हैं. हालांकि इन गांवों को करीब से जानने वाले लोग कहते हैं कि हरियाणा बेल्ट पूरी तरह लालू और राजद को समर्पित है, जबकि जदयू समर्थकों का दावा है कि इस बेल्ट के अधिकतर गांवों को दिनेश चंद्र यादव के प्रयास से नगर निगम में शामिल कराया गया था, लिहाजा लोगों ने तीर पर ही बटन दबाया है. निषाद वोटों का भी हो रहा बंटवारा- वैसे तो लोकसभा क्षेत्र के सभी विधानसभाओं में निषाद जाति के वोट हैं. लेकिन मधेपुरा जिले के आलमनगर विधानसभा क्षेत्र में इस जाति के लोग सर्वाधिक हैं. यहां इनकी संख्या 80 हजार के करीब है. पिछले लोकसभा चुनाव का परिणाम बताता है कि तब निषादों का एकमुश्त वोट एनडीए को मिला था, लेकिन इस बार मुकेश सहनी के महागठबंधन में चले जाने के कारण शत प्रतिशत मत राजद प्रत्याशी को मिलने की बात कही जा रही है. अन्य सभी विधानसभा क्षेत्रों के निषाद जाति के वोट के लिए भी यही तर्क दिए जा रहे हैं. एंटी इंकंबेंसी की भी हो रही चर्चा- 2019 के चुनाव की तुलना में इस बार का चुनाव बिल्कुल अलग कहा जा सकता है. क्योंकि तक मोदी मैजिक सिर चढ़कर बोल रहा है. इस बार वह प्रभाव नहीं के बराबर दिखा. कई बूथों पर निवर्तमान सांसद के प्रति एंटी इंकंबेंसी का माहौल दिखा व भाजपा-जदयू के कैडर वोटरों ने भी उनसे किनारा करते दूसरी राह पकड़ ली. हालांकि 55 वर्ष से ऊपर के अधिकतर मतदाताओं ने एंटी इंकंबेंसी को दरकिनार कर अपने कैडर का ख्याल रखा. वहीं अधिकतर युवा नौकरी, रोजगार सहित स्थानीय समस्याओं को ध्यान में रखते मतदान किया. अपर कास्ट का कम हुआ पोल- अपर कास्ट का कम पोल भी चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकता है. मतदान के दिन ऐसा देखा गया कि जिन बूथों पर अपर कास्ट के वोट की बहुलता थी, वहां कम मतदान हुआ. उन बूथों पर सुबह से शाम तक कभी भीड़ या लंबी कतार नहीं बनी. लोग आराम से आते और वोट कर जाते रहे. ऐसे कई बूथों पर 35 से 45 प्रतिशत ही मतदान हो पाया, जबकि इसके विपरित पिछड़ों की बहुलता वाले मतदान केंद्रों पर जमकर वोटिंग हुई. यहां सुबह सात बजे जितनी भीड़ थी, शाम के छह बजे भी उतनी ही भीड़ बनी रही. खासकर मुस्लिम बाहुल्य मतदान केंद्रों पर वोटिंग ने परिणाम का रूझान दिखा दिया.

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