हजारीबाग का गठन : हजारीबाग का गठन मूलत दो गांवों को मिला कर हुआ. जिसकी चर्चा तत्कालीन प्रथम सर्वेक्षक मेजर जेम्स रेनेल ने 1779 ई. में रामगढ़ जिला के प्रथम मानचित्र में की है. उन्होंने ओकन्ड हजारी नाम दिया, जो वर्तमान हजारीबाग नगर के अंतर्गत ओकनी और हजारी दो गांवों का द्योतक था. ऐसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि हजारी गांव के निकट आम्र वृक्षों की बहुतायत के कारण इसका नाम हजारीबाग रखा गया हो. पर कतिपय लोग हजारों बाग से भरे क्षेत्र के कारण हजारीबाग नाम रखा हुआ मानते हैं.
हजारीबाग जिले का नाम हजारीबाग शहर के नाम पर हुआ, जो उत्तरी छोटानागपुर का अब प्रमंडलीय मुख्यालय है. 1780 ई. में हजारीबाग में रामगढ़ बटालियन की स्थापना हुई. ओकनी और हजारी दोनों गांवों के निकट फौज के ठहराव का निर्णय लिया गया. यह गांव चतरा-इचाक जानेवाली सड़क के किनारे पड़ते थे. 1772 ई. में रामगढ़ राजा द्वारा अपनी राजधानी बनाये जाने के बाद दोनों गांव विशेष रूप से चर्चा में आये।
हजारीबाग जिले की स्थापना : हजारीबाग जिले की स्थापना 1833 ई. में हुई. वर्तमान में गिरिडीह, चतरा, कोडरमा, रामगढ़ जो जिले हैं, इनका पूरा क्षेत्रफल हजारीबाग जिला में ही शामिल था. एक अक्तूबर 1886 ई. में सरकारी अधिसूचना द्वारा नगर पालिका की स्थापना हुई. हजारीबाग की जनसंख्या लगभग 10 हजार थी. नगर पालिका का प्रथम चेयरमैन मेजर इजी लिलिंग्टन थे. वाइस चेयरमैन राय बहादुर मुखर्जी चुने गये. फरवरी 1919 ई. तक नगर पालिका के चेयरमैन पद पर अंग्रेज सैनिक अफसर ही बैठते थे. पहला भारतीय चेयरमैन कालीपद सरकार 27 फरवरी 1919 ई. में बने. 1900 ई. में ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए जिला परिषद की स्थापना हुई. जो ग्रामीण क्षेत्र की सड़क, अस्पताल, शिक्षा, कांजी हाउस, पेयजल व्यवस्था का कार्य देखते थे. 1936 ई. में खनिज क्षेत्रों में सड़क, स्वास्थ्य की व्यवस्था के लिए खान परिषद की स्थापना की गई. सर्वप्रथम छह दिसंबर 1972 ई. में गिरिडीह को अलग जिला बनाया गया. 1992 में चतरा जिला बना 10 अप्रैल 1994 ई. में कोडरमा जिला बना 12 सितंबर 2007 को रामगढ़ जिला बनाया गया. वर्तमान में हजारीबाग जिले के बरही प्रखंड की स्थापना 1954 ई. में, बरकट्ठा प्रखंड 1955 ई. में, चौपारण प्रखंड 1955 ई., बड़कागांव 1955 ई., केरेडारी, 1956 ई., विष्णुगढ़ 1957 ई., कटकमसांडी प्रखंड 1960 ई., चुरचू प्रखंड 1960 ई., दारू प्रखंड 2011, कटकमदाग 2011, डाड़ी प्रखंड 2011 ई. हुई है.
1895 ई. में डबलिन यूनिवर्सिटी मिशन कॉलेज के नाम से संपूर्ण झारखंड प्रदेश में मात्र एक ही महाविद्यालय था. तब यह कोलकाता विश्वविद्यालय से संबंध था. 1917 ई. में पटना विश्वविद्यालय की जब स्थापना हुई, तो इसके अंतर्गत चला गया. इस महाविद्यालय ने प्राचीन होने के साथ-साथ विदेशी प्राचार्यों के गरिमामय क्रिया कलापों के कारण काफी ख्याति अर्जित की. हजारीबाग के विकास में मेजर एचएम बॉडम 1863-1873 ई. हजारीबाग के उपायुक्त का बड़ा योगदान रहा. हजारीबाग शहर की परिकल्पना जो अभी दिख रही है, यह उनके कार्यकाल की देन है.
हजारीबाग भौगोलिक और भूगर्भिक दृष्टि से बहुत ही आकर्षक एवं महत्वपूर्ण है. गर्मी में यहां का तापमान 44 डिग्री सेल्सियस, जाड़े में न्यूनतम तापमान दो डिग्री सेल्सियस और औसतन वर्षा 135 सेमी तक होती है. जिले के उत्तर में कोडरमा तथा गाया, दक्षिण में रामगढ़-रांची, पूरब में गिरिडीह और पश्चिम चतरा जिला है.
इतिहासः अखंड हजारीबाग से जुड़ी हैं जैनों और बौद्धों की महत्वपूर्ण यादें
महाभारत काल में पौण्ड्र, पौण्ड्रिक एवं कर्क खंड इत्यादि कीकट प्रदेश घोषित था. कीकट प्रदेश हजारीबाग का एक अंग रहा है. अखंड हजारीबाग के वर्तमान गिरिडीह क्षेत्र में ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी में जैनों के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ पहाड़ी के सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया था. महात्मा बुद्ध उरूवेला में बोधि प्राप्त करने के पूर्व हजारीबाग के वनाच्छादित प्रदेश में भ्रमण किया, तपस्या की थी. इसके प्रतीक के रूप में हजारीबाग की सीतागढ़ पहाड़ी, बुढ़वा महादेव, इटखोरी, चतरा और हजारीबाग के अनेक स्थलों पर बुद्धविहार के अवशेष और खुदाइयों से प्राप्त बुद्ध मूर्तियां हैं, जो इस बात की संकेत करती हैं कि बुद्ध का यहां आगमन हुआ था. बौद्धों ने यहां विहार बनाये. बुद्ध प्रतिमाओं की स्थापना की.
तुर्क एवं अफगान काल
शेरशाह, बंगाल की राजधानी गौड़ पर अपने दूसरे आक्रमण के क्रम में 1538 ई. में झारखंड होकर लौटे थे. वे रोहतासगढ़ जाने के क्रम में झारखंड के जंगलों से होकर बड़ी कठिनाई से रास्ता तय किया था. वे क्षेत्र अखंड हजारीबाग ही रहे होंगे.
मुगलशासन काल
अकबर ने अपने शासनकाल में झारखंड को अपने सूबे का अंग बनाया था. जहांगीर की पत्नी नूरजहां का भाई इब्राहिम खां फतहा जंग में 1616 ई. में कुकराह पर आक्रमण किया. यह क्षेत्र 1605 ई. में अकबर की मृत्यु के पश्चात आजाद हो गया था. लेकिन इब्राहिम खां ने छोटानागपुर के 46वें राजा दुर्जन साल को परास्त किया. 1632 ई. में पटना के गर्वनर को छोटानागपुर जागीर के रूप में दिया गया.
आदिवासी सरदारों का आधिपत्य
मुस्लिम काल में हजारीबाग और झारखंड पर उनका पूर्णतया आधिपत्य का कोई प्रमाण नहीं मिलता है. 1368 ई. में रामगढ़ राज्य की स्थापना और 1765 ई. से अंग्रेजों के अधिपत्य की स्थापना के मध्य आदिवासियों के अनेक ऐसे सरदारों के उद्भव के संकेत मिलते हैं.
कोल विद्रोह और हजारीबाग जिला स्थापना
1831 ई. में कोल विद्रोह हुआ. हजारीबाग के अधिकारी सतर्क हो गये. जमींदार और ठेकेदारों के द्वारा 35 प्रतिशत लगान कर बढ़ा दिया गया. कोल विद्रोह के दमन के पश्चात शासन प्रणाली में परिवर्तन नहीं हुआ. 1833 ई. के 13वीं नियम के अनुसार रामगढ़, खडगडीहा, दक्षिण-पश्चिम सीमान एजेंसी को मिलाकर हजारीबाग को प्रशासनिक मुख्यालय बनाया गया. हजारीबाग के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारीको गर्वनर जनरल के एजेंट के प्रधान सहायक पदनाम दिया गया. 1834 ई. में दक्षिण-पश्चिम सीमांत एजेंसी का गठन हुआ. रांची इसका मुख्यालय बना. 1854 ई. में इसका शासन बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर के अधीन कर दिया गया. 1834 ई. में ही रामगढ़ का प्रशासनिक मुख्यालय चतरा से हटाकर हजारीबाग कर दिया गया. इसी वर्ष उपायुक्त का पद सृजित हुआ. जिसे दीवानी और फौजदारी शक्ति से युक्त किया गया. हजारीबाग में 1869 ई. के पहले तक सैनिक छावनी
बनी हुई थी.
संथाल हूल विद्रोह
1855-56 ई में संथालों का विद्रोह हुआ. हजारीबाग क्षेत्र में झुंड के झुंड संथालियों ने एकत्र होकर लूटपाट मचायी. खडगडीहा, गोला, चास, कुजू, बगोदर, झरपो में सबसे अधिक विद्रोह हुआ. 15 जनवरी 1855 ई के पत्र में छोटानागपुर के आयुक्त ने हजारीबाग के प्रधान सहायक आयुक्त को लिखा था कि संथालियों पर लगाये गये प्रतिबंध से सहमत थे. फौजी कानून हजारीबाग में लागू किया गया. हजारीबाग के कारागार पर आक्रमण किया गया था. बैलगाड़ियों के परिचालन पर भी रोक लगा दी गयी थी.
हजारीबाग और 1857 का गदर
हजारीबाग से रामगढ़ बटालियन ने 31 जुलाई 1857 ई की शाम से अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया.
कैप्टन सिंपासन को अपने नौकर के द्वारा इसकी भनक पहले मिल चुकी थी. डॉ डेलफ्रेंड और मिस्टर लिबर्ट ने हजारीबाग छोड देने का निश्चय किया. वे पैदल भागकर इचाक पहुंचे. इस विद्रोह की खबर रांची के कैप्टन डालटन को मिली. उन्होंने तुरंत रामगढ़ लाइट इनफैक्टरी की एक टुकडी के घुडसवार और दो बंदूकों के साथ लेफ्टिनेंट ग्राहक को हजारीबाग भेजा. रास्ते में उनके साथ फौजों ने भी बगावत कर दी. सारे सिपाही बादम तथा पुरानी रांची होते हुए रांची वापस लौटे. कैप्टन डालटन ने रांची की बिगड़ती हुई स्थिति को देखकर यूरोपियनों को रांची से हजारीबाग होते हुए बगोदर जाने का आदेश दिया. कुछ सप्ताह तक बगोदर से शासन चलता रहा. डेविस ने हजारीबाग के सारे खजाने को बिल्कुल खाली कर दिया.
हजारीबाग में राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन
1859 ई से 1912 ई तक राष्ट्रीय आंदोलन में हजारीबाग की भूमिका नगण्य रही. इसका कारण शिक्षा, राजनीतिक जागरूकता और यातायात के अभाव कारण हो सकते हैं. 13 सितंबर 1918 ई को संत कोलंबा के एक छात्र रामविनोद सिंह पुलिस के द्वारा गिरफ्तार किये गये. शहरवासियों ने गिरफ्तारी का विरोध किया. 1920 ई में हजारीबाग में स्वाधीनता आंदोलन की गति बढी. हजारीबाग के छात्रों ने पटना में बिहारी छात्र संघ की गतिविधि प्रारंभ की. कृष्ण बल्लभ सहाय और बजरंग सहाय ने अपनी पढ़ाई छोडकर आंदोलन का दामन थामा. महात्मा गांधी के आह्वान पर सरकारी विद्यालयों को छोड़ने का आह्वान किया. मार्च 1921 ई में चतरा, हजारीबाग और राजधनवार में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की गयी. 1921 ई के प्रारंभ में डॉ राजेंद्र प्रसाद हजारीबाग आये. हजारीबाग में तब स्थानीय पंचायतों की स्थापना की गयी. स्थानीय मुकदमों का निस्तार किया जा सके. बिहारी छात्रों का पांच-छह अक्तूबर 1921 ई को हजारीबाग में 16वां अधिवेशन आयोजित हुआ. इसकी अध्यक्षता सरला देवी ने की. 16 मार्च 1922 ई को महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के साथ पूरे देश के साथ हजारीबाग में भी काफी गतिविधियां बढ़ गयीं. साइमन कमीशन का भी बहष्किार हजारीबाग में हुआ. महात्मा गांधी के छह मार्च 1930 ई को नमक सत्याग्रह में हजारीबाग के कांग्रेसी कार्यकर्ता ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया.
भारत छोडो आंदोलन– हजारीबाग में भी व्यापक हड़ताल हुई. कई स्वतंत्रता सेनानी गिरफ्तार किये गये. 11 अगस्त 1942 को संत कोलंबा कॉलेज के छात्रों ने राष्ट्रीय झंडे के साथ प्रदर्शन किया. नवाबगंज मुहल्ले में छात्रों की बैठक हुई. कांग्रेस मेदान में भी लगातार बैठकें होती रहीं.
जयप्रकाश का पलायन– नौ नवंबर 1942 ई को जयप्रकाश नारायण, योगेंद्र शुक्ल, रामनंदन मिश्र, गुलाबी गुप्ता, सूर्यनारायण सिंह और शालिग्राम सिंह ने हजारीबाग केंद्रीय कारा से पलायन किया. जेल से पलायन करने के आरोप के शक पर रामनारायण सिंह, कृष्ण बल्लभ सहाय और सुखलाल सिंह को भागलपुर जेल भेज दिया गया. नवंबर 1942 ई के करीब हजारीबाग में आंदोलन की तीव्रता बढने लगी. 662 लोग गिरफ्तार किये गये. इसमें 205 लोगों को सजा हुई.
15 अगस्त 1947 ई का स्वतंत्रता दिवस समारोह
1944 ई में महात्मा गांधी जेल से छोड़ दिये गये. ब्रिटिश सरकार ने नये सिरे से समझौता शुरू किया. 15 अगस्त 1947 ई को देश को आजादी दे दी गयी. हजारीबाग में भी तब प्रभातफेरी निकाली गयी.