स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से सरकार की संपत्ति को लगातार लग रहा चूना प्रबंधन सहित अस्पताल प्रशासन मौन सहरसा .स्वास्थ्य विभाग के जिला सदर अस्पताल में सरकार की संपत्ति का लगातार गायब होना अस्पताल प्रशासन पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है. पूर्व में भी सरकार के लाखों-करोड़ों की संपत्ति सदर अस्पताल से अचानक ही गायब हो गयी. जिसका आज तक पता लगा पाना जिला प्रशासन के लिए एक चुनौती बनी हुई है. वहीं गायब सामानों को लेकर अस्पताल प्रबंधन चुप्पी साधे बैठी हुई है. वर्षों से अस्पताल में अपनी डेरा जमाये बैठे कई ऐसे कर्मी हैं, जिन्हें अस्पताल के अंदर हो रही हर गतिविधि की नजर है. लेकिन उसे कैसे दबाना है, वह भली भांति जानते हैं. अस्पताल की कुव्यवस्था पर प्रबंधन को बचाने की जिम्मेवारी भी उन्हीं कर्मियों के हाथों में है. एक तरफ सरकार से लेकर स्वास्थ्य विभाग तक सदर अस्पताल में मरीजों की सुविधाओं पर हर वर्ष करोड़ों खर्च कर रही है. वहीं दूसरी तरफ अस्पताल प्रबंधन से लेकर अस्पताल प्रशासन तक सरकार के करोड़ों रुपये के सामानों को मौका देखते ही गायब कर देते हैं. लेकिन प्रबंधन के ऐसे कर्मियों की पहुंच इतनी ऊपर तक है कि उसपर कभी किसी तरह की कोई कार्रवाई तक नहीं होती. ऐसी कार्रवाई पर जिला प्रशासन भी छोटी मोटी जांच करवा कर पूरी तरह से मौन हो जाते हैं. ठीक आज से एक वर्ष पूर्व आज ही के दिन केंद्र सरकार की लगभग 50 लाख से अधिक की संपत्ति सबकी नजरों के सामने से अचानक गायब हो गयी. लेकिन किसी को कानों कान भी खबर नहीं हुई. या कह लें कि सबकी मिलीभगत ने कानों कान खबर नहीं होने दी. मामला अभी ठंडा हुआ नहीं था कि कुछ दिन बाद सदर अस्पताल में चल रहे कार्य के दौरान लाखों के लकड़ी के समान के गायब होने का मामला सामने आ गया. जिस पर अस्पताल प्रशासन ने जैसे तैसे कुछ लकड़ियों को बरामद भी करवाया. बावजूद सरकार को लाखों की क्षति हुई. पुराने मामले के साथ अब नये मामले पर भी लेना होगा संज्ञान पुराना मामला कोई और नहीं आज ही के दिन एक वर्ष पूरा करते सदर अस्पताल से गायब लाखों के एमएमयू वैन का है. जिसके लिए कुछ लोग शोक मनायेंगे तो कुछ लोग वर्षगांठ. शोक वह मनायेंगे, जिन्हें चिंता है कि अब तक लाखों के एमएमयू वैन का अब तक कुछ पता नहीं चल पाया है और वर्षगांठ वह मनायेंगे, जिसने लाखों की लालच में उसे गायब करवा दिया और उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाया. लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि वह केंद्र सरकार की संपत्ति थी. जिसे बड़ी आसानी से गायब करा दिया गया. जिसका अब तक कोई अता पता तक नहीं चल पाया है. उसी हिम्मत के साथ सिलसिलेवार तरीके से सदर अस्पताल से गायब सरकार की संपत्ति का मामला सामने आने लगा. खबर के माध्यम से प्रबंधन के कार्यों की पोल दर पोल भी खोली गयी. लेकिन अधिकारियों की मिलीभगत ने सदर अस्पताल से गायब सामानों की सुधि तक लेना उचित नहीं समझा. मामला संज्ञान से शुरू होकर जांच और रिपोर्ट दर्ज कराने तक ही सिमट कर रह गया. लेकिन न तो लाखों लाख का गायब एमएमयू वैन का ही पता चला, न ही लाखों के महंगे लकड़ी से तैयार पुराने अस्पताल भवन का खोला गया समुचित खिड़की, दरवाजा, पुराने एसी पंखे और न ही तोड़े गये भवन का महंगा लोहे का सामान. जबकि मात्र एक एमएमयू वैन जिसकी कीमत 50 लाख से भी ज्यादा आंकी जा रही है. जबकि सारा सामान मिला दिया जाए तो करोड़ों का घपला सदर अस्पताल में आसानी से हो चुका है. लेकिन सदर अस्पताल के पुराने भवन में लगाये गये महंगे ऑक्सीजन सप्लाई वाला तांबा का पाइप भी अब गायब हो चुका है. जिसमें अधिकांश पाइप अस्पताल उपाधीक्षक और अस्पताल प्रबंधक के नाक के नीचे से गायब हुआ है. क्योंकि पुराने इमरजेंसी वार्ड से गायब सभी पाइप को ले जाने वाले को अस्पताल उपाधीक्षक के चैंबर और अस्पताल प्रबंधक के चैंबर के सामने से ही गुजरना पड़ा होगा. क्या किसी कर्मी की नजर उसपर नहीं पड़ी. क्या सीसीटीवी कैमरे में सामान गायब करने वाले चोर की तस्वीर कैद नहीं हुई. क्या कैमरे का फुटेज कभी देखा भी गया. क्या इन सभी मामलों में प्रबंधन के कुछ लोगों की मिलीभगत है. सवाल तो काफी है लेकिन जवाब देने वाले अपने जेब में जवाब लेकर घूम रहे हैं. लेकिन इन मामलों में जवाब नहीं सरकार की गायब संपत्ति बरामद करने की जरूरत है. अब देखना यह है कि इस मामले में जिला प्रशासन की क्या भूमिका होती है.
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