Use of Agri Drone in Jharkhand: बदलते तकनीकी नवाचार ने लोगों की जीवनशैली को बदल कर रख दिया है. अब क्षेत्र में बहुत कुछ बदलाव देखने को मिल रहा है. पहले जहां कृषि कार्य मैन्युअल तरीके से किए जाते थे अब उसी को आइोओटी, रोबोटिक्स और एग्री ड्रोन के जरिए किया जा रहा है.
झारखंड के किसानों को एग्री ड्रोन की दी जा रही ट्रेनिंग
एग्री ड्रोन को कृषि में लाने का सीधा मतलब है कि किसानों के समय को बचाना. फिलहाल इसके जरिए फसल में जरूरी पोषक तत्व पहुंचाया जा रहा है. यह बहुत ही कम समय में कई हेक्टेयर में छिड़काव कर सकता है. हालांकि, एग्री ड्रोन कृषि क्षेत्र में अभी नई तकनीक है. ऐसे में इसकी शुरुआती कीमत 10 लाख है. हालांकि, इस पर सब्सिडी भी मौजूद है. हर एक किसान तक इसकी पहुंच बनाने के लिए कीमत घटाकर 4 से 6 लाख करने की प्लानिंग है. एग्री ड्रोन की वजन 15 केजी होता है जो 10 लीटर लिक्विड का भार उठा सकता है. ध्यान देने वाली बात यह है कि एक एकड़ के छिड़काव में लगभग 7 से 8 मिनट का समय लगता है. कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से लगभग झारखंड के 300 किसानों को डेमो देने का काम किया गया है. टेक्नोलॉजी अवेयरनेस प्रोग्राम के तहत झारखंड के अलग – अलग जगहो पर ड्रोन एग्रिकल्चर के बारे में जानकारी दी गई है.
” खेती को मैं एक हाई प्रोफाइल प्रोफेशन के तौर पर देखता हूं. मैं खुद 35 एकड़ में सब्जी की खेती करता हूं. कृषि का कार्य बहुत कठिन होता है. मैं खुद ड्रोन का इस्तेमाल करता हूं. इससे बहुत ज्यादा समय की बचत होती है. 2 से 3 घंटे में 35 एकड़ की खेती में छिड़काव आसानी से हो जाता है. झारखंड में बहुत सारे ऐसे किसान हैं जो ड्रोन खरीद चुके हैं. बहुत ऐसे किसान हैं जो भाड़े पर ड्रोन लाकर अपने खेतों में इस्तेमाल करते हैं.”
बैजनाथ महतो, किसान, मतातु, ओरमांझी
एग्री ड्रोन के फायदे
एग्री ड्रोन 10 मिनट में कई हेक्टेयर एरिया को कवर कर सकता है. ड्रोन द्वारा फसल में न्यूट्रिशन का छिड़काव करने पर फसल में बीमारी कम लगती है और फसल पोषक तत्व को प्रॉपर तरीके से एडॉप्ट भी कर लेता है. कृषि ड्रोन ने कृषि दक्षता और उत्पादकता में क्रांति ला दी है. एक ही दिन में 500 एकड़ तक कृषि फार्म को कवर कर सकता है, इस कार्य में पारंपरिक तरीकों से कई सप्ताह लग जाते थे. पर अब एग्री ड्रोन से 90% समय की बचत किसानों को महत्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देती है. हाई-रिज़ॉल्यूशन वाले कैमरों और उन्नत सेंसर से लैस, ड्रोन विस्तृत डेटा कैप्चर करता है. इस जानकारी का विश्लेषण करने से फसल की बीमारियों, सिंचाई या पोषक तत्वों की कमी जैसे मुद्दों की पहचान की जाती है.
” एग्री ड्रोन तकनीक की ट्रेनिंग लगभग 300 किसानों को दी गयी है. अगले दो से तीन साल के अंदर इसमें बहुत बड़ा बूम आने वाला है. झारखंड के हर एक किसान तक एग्री ड्रोन की पहुंच होने वाली है. ”
डॉ. अजीत कुमार सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, दिव्यायन केवीके रांची
झारखंड के इन गांवों में होती है केमिकल फ्री खेती
- घुरलेटा
- बुढ़ाकोचा
- पिपरेबेड़ा
- गुंदलीटोली
- सिमराटोली
- नगराबेड़ा
- दुबलाबेड़ा
- बड़कीगोरोग
- ओवर
- रंगामाटी
- नवागढ़
- छोटकीगोरोग
- सोसो
कृषि में रोबोटिक्स का इस्तेमाल
वैसे तो कृषि कार्य में रोबोटिक्स का इस्तेमाल शुरू हो चुका है. लेकिन अगर बात झारखंड की करें तो यहां के किसान उस लेवल तक नहीं पहुंचे हैं. फसलों का कमर्शियली लेवल पर प्रोडक्शन करने वाले किसान तक इस तकनीक की पहुंच है. पर झारखंड के छोटे किसानों तक अभी नहीं पहुंच पाया है. कृषि में रोबोटिक्स का इस्तेमाल करने के लिए यहां के किसानों को टेक्नोसेबी होना पड़ेगा. यहां के किसान तो अच्छे से ड्रिप एरिगेशन और वाटर कैपेसिटी को भी नहीं समझ पाए हैं. हर दिन एक अलग क्रॉप वाटर की जरूरत पड़ती है इस चीज को देखते हुए कि आखिर उस दिन कितनी गर्मी है. आपको बता दें कि जितना पानी जड़ से नीचे जाता है वो किसी काम का नहीं रह जाता. ये सारी चीजें प्रिसिशन फार्मिंग का हिस्सा है.
क्या है प्रिसिशन फार्मिंग
प्रिसिशन फार्मिंग से पर्यावरण में भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. प्रिसिजन फार्मिंग में सेंसर की मदद से फसल, मिट्टी, खरपतवार, या पौंधों में होने वाली बीमारियों के बारे में पता करके किसान अपनी फसलों को बचा सकते हैं. खेती की इस पद्यति में फसल के हर छोटे से छोटे परिवर्तन पर आसानी से नजर रखी जा सकती है. प्रिसिशन फार्मिंग से कृषि उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है. साथ में खेत की मिट्टी की उर्वरकता काफी बढ़ जाती है. फसल में ज्यादा रासायनिक उर्वरकों या दवाइयों की आवश्यकता नहीं पड़ती है. फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता दोनों को बढ़ाने में काफी मदद मिलती है. इससे किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने में बहुत अधिक मदद मिलती है.
टेक्नोलॉजी लीड एग्रीकल्चर का क्या है भविष्य
टेक्नोलॉजी लीड एग्रीकल्चर का ही भविष्य है. सबसे ज्यादा जॉब इसी सक्टर में जनरेट होने वाला है. फिलहाल झारखंड में स्किम बेस्ड एग्रीकल्चर हो रहा है. लेतिन आने वाले समय में टेक्नोलॉजी लीड एग्रीकल्चर का दौर आएगा.
“हरियाणा और पंजाब जैसे कृषि डेवलप रोज्यों में लोग अपने खेतों में ज्यादा समय बिताते हैं, जिससे वह ज्यादा सीख पाते हैं. लोग 8 से 10 हजार के नौकरी के लिए 8 से 10 घंटे काम करते हैं. इसके बदले अगर वे 8 से 10 घंटे का टाइम अपने खेत में दे तो बहुत ज्यादा कमा सकते हैं. झारखंड के बहुत ऐसे किसान हैं जो 1 एकड़ जमीन में खेती करके 3 – 3 लाख रुपये की कमीनी कर रहे हैं. खेती को हमेशा एंटरप्राइज और बिजनेस की तरह देखना चाहिए. बहुत से लोग इसे इसी फॉर्म में देखते भी हैं.”
डॉ शिवेंद्र कुमार, रिटायर्ड प्रिंसिपल साइंटिस्ट, आईसीएआर, रांची
डॉ शिवेंद्र कुमार और आगे बताते हैं कि झारखंड में कृषि के क्षेत्र में मैकेनाइजेशन में बहुत काम हुआ है. जैसे की पहले फसल काटने का काम मैन्युअली होता था पर अब यह सेंसर बेस्ड मशीन के द्वारा किया जा रहा है. इससे किसानों का समय काफी ज्यादा बच जाता है. आने वाले समय में इसमें और भी नए बदलाव देखने को मिलेंगे. कृषि क्षेत्र में बढ़ते नॉलेज और इनवेस्टमेंट के कारण फ्यूचर में भी बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिलने वाला है. ग्रीन इकोनॉमी का दौर आएगा और लोग प्राउडली बोल पाएंगे की हम ग्रीन इकोनॉमी में कंट्रीब्यूट कर रहे हैं.
झारखंड में होती है डाइवर्स फार्मिंग
झारखंड के किसान दूसरे राज्यों के किसानों को बहुत सारे चीजों को सीखा सकते हैं. यहां के किसान कम पानी का उरयोग करके खेती करते हैं वहीं पंजाब हरियाणा के किसान खेती करने के लिए ज्यादा पानी का इसतेमाल करते हैं. जिससे बिजली की खपत भी ज्यादा होती है. बिहार झारखंड के किसान डाइवर्स फार्मिंग ज्यादा करते हैं मतलब एक ही बार में बहुत सारे फसल को उगाते हैं. हमारे यहां फसल की डाइवर्सिटी ज्यादा है. आने वाले समय में डाइवर्स फार्मिंग सिस्टम ही क्लाइमेट रेजिलिएंट होगा. मतलब बदलते मौसम के अनुकूल वही फार्म होगा जहां के फसल में विविधता होगी. सरकार को रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन पर खास ध्यान देना चाहिए.
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