मधुबनी. बैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि शुक्रवार को रांटी स्थित एक होटल में भगवान परशुराम की जयंती समारोह भक्ति भाव से मनाया गया. समारोह में मुख्य अतिथि विधायक विनोद नारायण झा सहित सैकड़ों की संख्या में लोगों ने भाग लिया. समारोह की अध्यक्षता अरुण कुमार झा व मंच संचालन राम नरेश ठाकुर ने किया. समारोह का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया. अतिथियों ने भगवान परशुराम की आदमकद प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित किया. समारोह में अतिथियों को पुष्प माला एवं मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया. मुख्य अतिथि विधायक विनोद नारायण झा ने कहा कि भगवान परशुराम भार्गव वंश में जन्मे भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं. उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था. अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी. उन्होंने कहा कि भगवान परशुराम हमारे आदर्श हैं. भगवान परशुराम अवतरित होने के बाद अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया. वे शस्त्र लेकर चलते थे और ज्ञान के भंडार थे. उन्होंने कहा कि अब प्रत्येक वर्ष भव्यता के साथ परशुराम जयंती मनाया जाएगा. इस अवसर पर डॉ. राम शृंगार पांडेय ने कहा कि भगवान परशुराम का जन्म धरती पर अनीति के विरुद्ध लड़ाई लड़ने के लिए हुआ था. उन्होंने कहा कि समाज में उनकी बहुत जरुरत है. उनके सिद्धांतों को हमलोगों को अपनाना चाहिए. उन्होंने कहा कि मान्यता यह भी है कि उनकी मृत्यु नहीं हुई है. हमलोग उन्हें स्थूल रूप से तो नहीं देख सकते हैं. लेकिन वे आज भी किसी न किसी रूप में बिराजमान है. इस अवसर पर जितेन्द्र कुमार झा उर्फ बीरु झा, पवन झा, रत्नेश्वर ठाकुर, सुधीर ठाकुर, सुरेश चंद्र चौधरी, अनुपम राजा, संजय पांडेय सहित दर्जनों की संख्या में परशुराम वंशज शामिल थे. कौन हैं भगवान परशुराम भगवान परशुराम भार्गव वंश में जन्मे भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था. अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी. भगवान परशुराम भगवान शिव और भगवान विष्णु के संयुक्त अवतार माने जाते हैं. शास्त्रों में उन्हें अमर माना गया है. दरअसल भगवान परशुराम श्री हरि यानि विष्णु ही नहीं बल्कि भगवान शिव और विष्णु के संयुक्त अवतार माने जाते हैं. शिवजी से उन्होंने संहार लिया और विष्णुजी से उन्होंने पालक के गुण प्राप्त किया. भगवान शिव से उन्हें कई अद्वितीय शस्त्र भी प्राप्त हुए, इन्हीं में से एक था भगवान शिव का परशु जिसे फरसा या कुल्हाड़ी भी कहते हैं. यह इन्हें बहुत प्रिय था वे इसे हमेशा साथ रखते थे. परशु धारण करने के कारण ही इन्हें परशुराम कहा गया.
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