रांची. एक कहावत है कि भगवान हर जगह नहीं हो सकते हैं, इसलिए उन्होंने मां को बनाया है. वैसे भी मां का दर्जा भगवान से कम नहीं होता है. इस बात को राजधानी की हरमू निवासी एक मां उषा सिंह ने सच कर दिखाया. इस मदर्स डे पर आज हम आपको उनकी त्याग और तपस्या की कहानी से रूबरू करा रहे हैं. उषा सिंह ने बेटी की दोनों किडनी फेल होने पर अपनी किडनी दानकर दी और उसकी जान बचायी. आज उनकी बेटी शिखा हंसी-खुशी अपनी जिंदगी जी रही हैं.
बेटी की दोनों किडनी हो गयी थी फेल
साल 2018 का सितंबर का महीना उषा के परिवार के लिए त्रासदी भरा था. परिवार में पति और दो बच्चे बड़ा बेटा और छोटी बेटी शिखा थी. उषा पेशे से शिक्षिका रही हैं. उषा बताती हैं कि 24 सितंबर को उन्हें पता चला कि उनकी 22 वर्षीया बेटी शिखा की दोनों किडनी 95% तक खराब हो चुकी है और उसे तुरंत डायलिसिस की जरूरत है. उस समय उसका हीमोग्लोबिन 2.5 था. यह ब्लड रिपोर्ट उनके लिये आसमान से बिजली गिरने जैसा था. बेटी के चेहरे पर दाग और छोटे-छोटे दाने देखकर लगा कि कुछ तो गड़बड़ है. उषा बताती हैं कि करीब तीन-चार महीने पहले से ही बिटिया के चेहरे का रंग पूरी तरह उड़ चुका था. चेहरा पूरी तरह काला पड़ चुका था और चेहरे पर दाग और छोटे-छोटे दाने आने लगे थे. राज हॉस्पिटल के डॉक्टर से दिखाने के बाद ब्लड टेस्ट किया गया. जिसमें क्रिएटिनिन 19, यूरिया 300 और हीमोग्लोबिन 2.5 जैसी रिपोर्ट सामने आयी. इसके बाद वह लोग वेल्लोर गये और वहां पर भी डॉक्टर ने कहा कि उनकी बेटी शिखा को ट्रांसप्लांट की जरूरत है, अन्यथा उसका बचना मुश्किल है.
पीजीआइ चंडीगढ़ में हुआ ट्रांसप्लांट
उषा सिंह की बेटी शिखा ने आगे बताया कि वेल्लोर में फाइनल रिपोर्ट के बाद वह लोग सीधा पीजीआइ चंडीगढ़ गये और वहां पर उनका ट्रांसफर प्रोसेस स्टार्ट हुआ.लेकिन सामने बड़ी चुनौती थी कि उनका और उनकी मां का ब्लड ग्रुप अलग-अलग था.मां का बी पॉजिटिव था, तो उनका ओ ग्रुप था. इसके बाद उनका एक एंटी टाइंटर टेस्ट हुआ. जिसमें यह पता चला कि हम दोनों ब्लड में कुछ बहुत ज्यादा असमानता नहीं है. शिखा ने बताया कि इसके बाद एक प्लाज्मा थेरेपी हुई और पीजीआइ के वरिष्ठ नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ राजा रामचंद्रन व डॉ आशीष शर्मा की टीम ने 13 नवंबर 2019 को ट्रांसप्लांट किया. ट्रांसप्लांट सफल रहा. लेकिन इससे पहले भी एक चुनौती थी कि उनकी मां का वजन करीब 87 केजी था और डॉक्टर ने ट्रांसप्लांट कैंसिल करके कहा था कि हम छह महीने बाद ऑपरेशन करेंगे. पहले 12 केजी वजन कम करके आइये. उनकी मां ने इस चुनौती को भी जीत लिया और अपना वजन समय रहते कम कर लिया. शिखा कहती हैं कि उनकी मां ने उनके लिये जो किया है, उसका कर्ज कभी भी अदा नहीं किया जा सकता है. बस यही कामना है कि उनकी मां हमेशा स्वस्थ रहे.
मां ने 15 दिन में 10 केजी वजन कम किया
उषा सिंह ने बताया कि उनके लिये सबसे बड़ी चुनौती कम समय में वजन कम करने की थी. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 15 दिन सिर्फ एक ग्लास दूध पी कर रहीं. 15 दिन में ही 11 कलो का वजन कम कर लिया. डॉक्टर्स भी अंचभित थे. इसके बाद एक महीने के अंदर किडनी ट्रांसप्लांट हो गया. ऑपरेशन सफल रहा. अब दोनों मां-बेटी स्वस्थ हैं. फिर तीन महीने के बाद रांची लौटना हुआ. मां ने बेटी की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी.
हिम्मत और संयम हो, तो सब मुमकिन
उषा सिंह बताती हैं कि करीब 13 महीने तक उनकी बेटी शिखा डायलिसिस पर रही और ट्रांसप्लांट के बाद वापस आकर वह न्यूज 18 में पत्रकार के रूप में काम कर रही हैं. अभी पिछले चार साल से वह बिलकुल फिट हैं. पत्रकारिता जगत में भाग-दौड़ की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं. लेकिन करीब डेढ़ साल का समय काफी मुश्किल और चुनौती भरा रहा. ईश्वर ने भी चमत्कार किया. दोनों का ब्लड ग्रुप अलग-अलग होते हुए भी डॉक्टरों ने तकनीक के दम पर से उनकी बेटी की जिंदगी बचा ली. उन्होंने ठान लिया था कि कुछ भी हो जाये, वह अपनी बेटी की जिंदगी बचाकर रहेंगी. भगवान के आशीर्वाद से अब दोनों मां-बेटी स्वस्थ हैं.
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