रांची़ रांची विवि अंतर्गत स्कूल ऑफ मास कम्यूनिकेशन में शनिवार को भारतीय ज्ञान परंपरा पर विशेष कक्षा का आयोजन किया गया. मौके पर रांची विवि की पूर्व डीन व वर्तमान में एसबीयू की डीन डॉ नीलिमा पाठक ने कहा कि भारतीय पुरातन काल से विद्या रूपी प्रकाश को प्राप्त करने में लीन रहे हैं. विदेशी इतिहासकार अलबरूनी ने कभी भारतीयों के बारे में कहा था कि भारतीयों को तीन बातें विश्व से अलग करती हैं. इनमें भारतीय को अपने ज्ञान का बहुत अभिमान है. मौत से नहीं डरते हैं और भारतीय कभी झूठ नहीं बोलते. डॉ पाठक ने कहा कि आज इन तीनों चीजों में हम भारतीयों में कमी आयी है. क्योंकि हमने भारतीय ज्ञान परंपरा को उपेक्षित कर मैकाले की शिक्षा को अपनाया है. पाश्चात्य देशों में ज्ञान शक्ति का परिचायक है. लेकिन भारत में ज्ञान विनयशीलता की पहचान है. उन्होंने कहा कि मैकाले कि शिक्षा से हम व्यक्ति राष्ट्र और सुशिक्षित समाज का निर्माण नहीं कर सकते. भारतीय ज्ञान परंपरा की अवधारणा रही है कि हर व्यक्ति राष्ट्र की संपत्ति है. व्यक्ति का गुणी होना यानी राष्ट्र का विकसित होना होता है. हमारे हजारों ग्रंथ ऐसे हैं, जो हमारे दैनिक जीवन की आवश्यकताओं से जुड़े हुए हैं. डॉ पाठक ने कहा कि हमारे दर्शन में जीवन के चार लक्ष्य हैं. इनमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष शामिल हैं. भारतीय ज्ञान परंपरा की ही देन है कि भारत ने विश्व को योग, आयुर्वेद नाट्यकला, पंचतंत्र ,व्याकरण और संस्कृत जैसी भाषा दी. इससे पूर्व निदेशक डॉ बीपी सिन्हा ने डॉ पाठक का सम्मान किया. स्वागत संतोष उरांव तथा धन्यवाद ज्ञापन मनोज कुमार शर्मा ने किया. इस अवसर पर विभाग के उपनिदेशक डॉ विष्णु चरण महतो, पीएस तिवारी सहित अन्य शिक्षक व विद्यार्थी उपस्थित थे.
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